News in Hindi
ये पेज 55,000 Likes cross कर रहा हैं.. जैन धर्मं का 'अनेकान्तवाद' नाम से एक सिद्धांत हैं जिससे समस्यायों का Solution होता हैं इसी Solution को आचार्य विद्यासागर जी ने मूक-माटी महाकाव्य में Explain किया हैं आओ समझे.. और अपनी LIFE को Ideal अवस्था में ले जाने का प्रयास करले:) आचार्य श्री समझाने का प्रयास करते हैं की जो व्यक्ति सिर्फ अपने को 'ही' सब कुछ समझता हैं, दुसरे को तुच्छ समझता हैं निचा समझता हैं, और सोचता हैं जो मैं करता/सोचता हूँ वह 'ही' सत्य हैं दुसरे जो सोचते/करते हैं वो गलत हैं उस व्यक्ति की समझ अभी सही नहीं हैं! *दूसरी और एक व्यक्ति जो कहता हैं हम 'भी' सही सोचते हैं तथा दूसरा व्यक्ति 'भी' [ उसका नजरिया ] सही हो सकता हैं वो व्यक्ति हमेशा शांत तथा सुलझा हुआ रहता हैं और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ जाता हैं:) #Mookmati
भेट हो 'भी' से.... न की 'ही' से... [ मूक-माटी महाकाव्य से ली गयी पंक्तिया ]
'ही' एकान्त्वाद का समर्थक है
'भी' अनेकांत, स्यादवाद का प्रतिक है ।
हम 'ही' सब कुछ है
यु कहता है 'ही' सदा,
तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो!
और,
'भी' का कहना है की
हम 'भी' हैं
तुम 'भी' हो
सब कुछ!
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgranth #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri
Source: © Facebook