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1993 मे आचार्यश्री का चातुर्मास रामटेक मे चल रहा था देश के जाने माने राजनेता उधोगपति आचार्यश्री के दर्शनार्थ रामटेक आते थे।
एक दिन एक बहुत बड़े हाई प्रोफाइल तांत्रिक बाबा जिनका भारतीय राजनीति मे भी अच्छा दखल रहता था वे आचार्यश्री के दर्शनार्थ रामटेक आये थे। उनकी वेशभूषा सफेद चमकदार रेशमी धोती कुर्ता चमकते माथे पर तिलक पूरे शरीर मे चमेली के फूलो का इत्र महक रहा था उनके हाथो मे चमेली के फूल थे कुल मिलाकर उनका एक आकर्षक व्यक्तित्व था।
सामायिक के बाद वे आचार्यश्री के दर्शनार्थ आचार्यश्री के कक्ष मे पहुचे और आचार्यश्री के दर्शन कर वही बैठ गए शायद उन्हें लगा आचार्यश्री उनसे कोई चर्चा करेंगे। आचार्यश्री अपने लेखन मे व्यस्त थे। आधे घण्टे बाद वे कक्ष से बाहर निकल आये और जहां पड़ोस के कक्ष मे परमपूज्य प्रमाणसागर जी एवम् दो मुनिराज भी विराजित थे उनके कक्ष मे ये तांत्रिक बाबा पहुचे थोड़ी देर बाद तांत्रिक बाबा ने कहा आपके आचार्यश्री के पास मैं आधा घण्टा बैठा रहा मैंने महसूस किया कि इनके चरणों के पास ऐसी ऐसी दिव्य शक्तिया बैठी होती है जिन्हें सिद्ध करने मे हमारा पूरा जीवन निकल जाता है और हम उन्हें जीवन भर मे भी नही पा सकते है। लेकिन आचार्यश्री इन दिव्य शक्तियो की ओर नज़र उठा कर भी नही देखते है।
आचार्यश्री बहुत बड़े सिद्ध बाबा है मैंने अपने जीवन मे पहली बार ऐसे निर्मोही बाबा के दर्शन किये जो अपने पास दिव्य शक्तियो की ओर नज़र तक नही उठाते। आज ऐसे बाबा के दर्शन कर मन को बड़ी शांति मिली।
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📝इस संस्मरण का उल्लेख परमपूज्य प्रमाणसागरजी महाराज अपने प्रवचनों मे अक्सर करते है।
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