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पंचकल्याणक महोत्सव -इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने गर्भकल्याणक के सन्दर्भ में कहा कि... @ भानपुर, भोपाल!!
जब कोई पुण्यशाली जीव तीर्थंकर की प्रकृति लेकर माता के गर्भ में आता है तो तीनों लोकों में हर्ष व्याप्त हो जाता है, सभी इंद्रगण भी खुशियां मनाने लगते हैं। पुण्य की प्रबल भावना ही भक्त को भगवान बनाती है और पुण्य की ये भावना परमात्मा की भक्ति से ही आती है, आप सभी यहाँ प्रभु की भक्ति कर रहे हैं, ये भक्ति ही आपके लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करेगी।
शिक्षक का सम्मान शिक्षा की मूल अवधारणा पर कायम रहने से होता है। जो विद्यार्थी इतिहास से शिक्षा लेकर आगे बढ़ते हैं बे सफलता को प्राप्त करते हैं। आज की शिक्षा संस्कारों के आभाव की शिक्षा है, विदेशी प्रभाव से युक्त है। संस्कार एक पौधे की तरह होता है, जैंसे बीजारोपण के समय उसे सही देखभाल मिलती है तो वो एक वट बृक्ष बनता है। छात्र वो होता है जो राष्ट्र का छत्र बनने बाला होता है। विद्यार्थी का अर्थ ही है कि मात्र विद्या को ग्रहण करना। संस्कारों की सुगंध से ही विद्यार्थी का जीवन महकता है उन्होंने कहा कि भारत के विश्वविद्यालय, विद्यार्थी, शिक्षक इस बात को समझ लें कि जीवन का मूल्य और संस्कार होता है। आज करोडों रुपयों की लागत से विश्वविद्यालय सीमेंट के जंगल की तरह हो गए हैं उनमें संस्कार और ज्ञान रुपी प्राणों का अभाव है।आज बोध तो है परंतु दिशाहीन बोध है, ज्ञान के ऊपर अज्ञान का आवरण डाल दिया गया है। आज विद्यार्थी अपनी दिशा से भटक गया है, व्यसनों का आदी होता जा रहा है,खानपान उसका बिगड़ता जा रहा है, मन और मस्तिष्क भटक रहा है। आज शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण रूपी बुराई भी प्रवेश कर गई है जो भविष्य के लिए घातक है। पूर्व के शिक्षाविदों ने हमें सरस्वती की उपासना का जो मार्ग दिया है उस मार्ग पर चलकर ही शिक्षा को ऊँचाई दी जा सकती है।_
*_उन्होंने कहा कि एजुकेशन का अर्थ है जिसके द्वारा हमारा मन और चारित्र सुरक्षित बने। जो विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के बाद मन को संयत नहीं कर पाये,सज्जनता को कायम नहीं रख पाये, जो इन्द्रियों को काबू में नहीं रख पाये बो देश का गौरब नहीं हो सकता है। गुरु द्वारा शिष्य को सही दिशा का ज्ञान कराना ही गौरव होता है। अपने अभिमत की सही कीमत को कोई भी जान नहीं पा रहा है। चुनाव लड़ने का नाम नहीं होता है बल्कि ये तो लोकतंत्र की मजबूती का उपक्रम होता है। जब प्रशंशा के फूल मिलते हैं तो व्यक्ति फूल जाता है और अपने अस्तित्व को ही भूल जाता है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने कौशल की बात कही है परंतु आज गलत कार्यों में कार्यकुशलता में सभी आगे हैं और अपनी स्वयं की कार्यकुशलता को भूले जा रहे है। आज भारत की उन्नति तभी हो सकती है जब मेधावी छात्रों को शिक्षक बना कर आगे लाया जाय। आज का विद्यार्थी धन लोलुप नहीं बने इस दिशा में प्रयास होना चाहिए। जीवन के मूल्यों को संस्कारित करना जरूरी है। यदि दिशा दे दी और बोध नहीं है तो फिर दिशा बोध दिशाहीन हो जाता है। आज नोकरी के बड़े बड़े पैकेज छोड़कर विदेश गए विद्यार्थी अपनी माटी की सुगंध पाने भारत बापिस लौट रहे हैं। भारत की शिक्षा में अमूल चूल परिवर्तन की जरूरत है। जो सो रहा है उसे जगाना आसान है परंतु जो सोने का नाटक कर रहा है उसे कैंसे जगाऊँ। जिस तरह आज गर्भकल्याणक में बालक तीर्थंकर को गर्भ संस्कार दिए जा रहे हैं उसी प्रकार विद्यार्थियों को भी आज संस्कार रोपित करने की जरूरत है।
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