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जिज्ञाषा_समाधान -मुनिपुंगव श्री #सुधासागरजी महामुनिराज #MuniSudhasagar
अगर कोई व्यक्ति नित्य पूजन अभिषेक करता है, तथा जिस घर में पूजन के धोती-दुपट्टे सूखते रहते हैं। उस घर में कभी भूत-व्यंतर आदि कभी परेशान कर ही नहीं सकते।
👉 वर्तमान में जो दीक्षार्थी की विनोली आदि निकाली जाती है, यह आगम सम्मत नहीं है। जो व्यक्ति संसार से विरक्त हो रहा है, उसके लिए ज्यादा प्रोपेगेंडा ठीक नही है।
☄ *छोटे बच्चों को अपना ध्यान खेलकूंद से हटाकर पढ़ाई में लगाना चाहिए। सदा अपने से अच्छे की संगति करना चाहिए और स्वयं को उसके अनुसार ढालने का प्रयास करना चाहिए। अपने आचार-विचार अच्छे रखते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। सफलता आपको अवश्य मिलेगी।
👉 जिनके छोटे बच्चे होते हैं, उनका कर्तव्य है, वो अपने बच्चों का हर समय ध्यान रखें। 8 वर्ष तक के बच्चे के अच्छे व बुरे कार्यों का फल उसके माता- पिता को भी मिलता है। अतः *प्रथम कर्तव्य आपका अपने बच्चे के प्रति है, बाद में धर्म कार्य करना चाहिए।
☄ *कानून और जैन धर्म एक ही है। मूल कानून जो बनाया गया उसमे 12 जैन लोग थे। अम्बेडकर भी जैन धर्म के समर्थक थे।* भगवान ऋषभदेव के द्वारा बहुत अच्छी व्यवस्था दी गई है।
हिन्दू लॉ के अनुसार मंदिरों में पूजन पद्दति भक्तों के अनुसार होती है, जबकि अल्पसंख्यक लॉ में मंदिरों की आम्नाय के अनुसार पूजन का प्रावधान है। इसी कारण धर्म दृष्टि से जैनों को अल्पसंख्यक होना पड़ा। *इस बात को समझने के लिए डॉ रमेशचन्द जी द्वारा लिखित जैन धर्म की मौलिक विशेषताएं किताब अवश्य पड़नी चाहिए।*
☄ सामने वाला सुखी दुःखी हो रहा है, इसका नाम हिंसा - अहिंसा नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सामने वाले का भाव क्या है?
👉 पूर्व दिशा और उत्तर दिशा प्राकृतिक रूप से मांगलिक होती हैं जिनसे हमें एनर्जी मिलती है।
👉 मंदिर से घर की दिवार से दिवार मिली है, तो इससे परिवार में कुछ न कुछ अहित जरूर होता है। मंदिर किसी का अहित नहीं करता, बल्कि हम मंदिर की शुद्धि का ध्यान नहीं रख पाते इस कारण हमारा अहित होता है।
☄ *जो बच्चा- बच्ची बड़े होने के बाद बिगड़ रहे हैं, इसमें 90% माता- पिता का दोष है।* माता पिता जवान बच्चों को को-एजुकेशन में पड़ने भेजते हैं, तो वह आग और घी का ही सहयोग करा रहे हैं। जब एक शादी शुदा विपरीत लिंगी से प्रभावित हो जाता है, तो बच्चे तो अभी जवान हैं, वो कैसे इस आकर्षण से बच पाएंगे। अतः को-एजुकेशन सिस्टम को खत्म करना चाहिए।
*नोट- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी को किसी सम्बंध में कोई शंका हो तो कृपया सुधाकलश app या youtube पर आज का वीडियो देख कर अपना समाधान कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।*
पूज्य गुरुदेव का जिज्ञाषा समाधान कार्यक्रम
प्रतिदिन लाइव देखिये- जिनवाणी चैनल पर
सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से
संकलन- दिलीप जैन शिवपुरी।
अग्रेषित-अनिल बड़कुल, गुना।
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ये सारा संसार कर्म प्रधान है, जो जैसा यहाँ कर्म करता है वो वैसा फल पता है. वैसा फल उसे चखना पड़ता है. जो हम विचार करते हैं वो हमारे मन का कर्म है. जो हम बोलते हैं वो हमारी वाणी का कर्म है, जो हम क्रिया करते हैं या चेष्टा करते हैं वो हमारे शरीरका कर्म है और इतना ही नहीं जो हम करते हैं वह तो कर्म है ही, जो हम भोगते हैं वह भी कर्म है और जो हमारे साथ जुड़ जाता है, संचित हो जाता है, वह भी कर्म है. इस तरह यह सारा संसार हमारे अपने किये हुए कर्मो से हम स्वयं निर्मित करते हैं और यदि हम अपने इस संसार को बढ़ाना चाहें तो इन दोनों की ज़िम्मेदारी हमारी अपनी है। -- श्री क्षमासागर जी महाराज
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