Update
Video
Source: © Facebook
गुरू वंदना must listen -आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य मुनि श्री 108 प्रयोगसागर् जी द्वारा..मनभावन आवाज़ में!!! शांति पथ की ओर....:) #MuniPrayogSagar #AcharyaVidyaSagar #JainDharma #DigambarMuni
अलवर (राजस्थान) से एक युवक, जिसकी उम्र 24 साल है, नाम विशाल जैन, आचार्य श्री विद्या सागर जी के दर्शन हेतु चल पड़े सिलवानी की ओर... अलवर(राजस्थान) से सिलवानी मध्यप्रदेश दुरी लगभग 800 से 850 किलोमीट
⬛ *भक्त को अपने गुरु के दर्शन करने की चाह*
⬛ *विशाल जी ने फोन पर कहा मुझे गुरु के दर्शन करना है*
◼ *और मेरी इच्छा है में गुरु के पास दर्शन करने पैदल पहचु*
⬛ *उन्होंने गुरुदेव से पद यात्रा* *चालू करने के पूर्व आशीर्वाद की इक्छा जाहिर की*
⬛ *अलवर राजस्थान के यह युवा ने अपनी यात्रा आज दिनाक 24~12~2016 से प्रारंभ की*
⬛ *इस प्रकार के भक्त के लिए हम*
*सव भी कामना करे ओर उनके भावो की अनुमोदना करे उनकी यात्रा पूर्ण हो*
⬛ *अलवर(राजस्थान) से सिलवानी मध्यप्रदेश दुरी लगभग 800 से 850 किलोमीटर*
सुचना विशाल जैन अलवर*
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri
Source: © Facebook
News in Hindi
शब्द सामने हों तो अर्थ गौण हो जाते हैं: आचार्यश्री
एक व्यक्ति को कुछ समझाया जा रहा है, दिखाया नहीं जा रहा है। जिसके बारे में समझाया जा रहा है उसका तब तक कोई परिचय नही होता, जब तक वह सब कुछ न समझ ले। समझ में आने के बाद वह सभी से परिचित हो जाता है। ये विचार आचार्य विद्यासागर महाराज ने श्रावकों को उपदेश देते हुए व्यक्त किए। वह शुक्रवार को आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में परिचित व अपरिचित की व्याख्या को विस्तार सेे बताया। आचार्यश्री ने बताया कि अर्थ बताया जाना उस समय महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जब शब्द सामने नहीं होते हैं, लेकिन शब्दों के सामने आते ही अर्थ गौण हो जाता है। जब तक कोई परिचय नहीं होता है तब तक बात समझ में नही आती है, लेकिन शब्दों से परिचय होते ही अपरिचित भी परिचित हो जाता है, परिचित व अपरिचित का यही एक मात्र भेद है।
उन्होंने कहा कि समझ में आना और समझाना दो अलग-अलग पहलू होते हैं। समझ में आने के बाद समझाना नहीं पड़ता है, जब समझाया जाता है तब वह ना समझ होता है। आपने कहा कि समझदार सवाल नहीं करते हैं, जबकि सवाल करने वाले को समझदार नहीं समझा जा सकता है।
शिक्षक कक्षा में पढ़ने वाले नासमझ बच्चों को समझाता है, क्योंकि शिक्षक की भावना रहती है कि ना समझ बच्चों को समझाया जाएगा तो उसकी ललक पढ़ने के प्रति बढ़ेगी और वह जल्द ही विषयों को समझ लेगा। आपने भीतरी भावों को समझ कर हितकारी भाव अपना कर बंधुत्व का निर्वाह करने वालों का भाव दूसरी तरफ प्रेषित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #Rishabhdev #AcharyaVidyasagar #Ahinsa #Nonviolence #AcharyaShri
Source: © Facebook