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*जिज्ञासा समाधान - 26 Dec. 2016*
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1. स्वास्तिक आदि को अनादर के भाव से मिटाना गलत है लेकिन बर्तन माजने आदि के कार्य में कोई दोष नहीं है क्योंकि यहाँ भाव अगल है ।
2. *कांच के टुकड़े मंदिर जी या कही भी नहीं लगाना चाहिए यानि कि जिस में अपना या भगवान् का खंडित प्रतिबिम्ब दिख रहा हो, वह अमंगल है ।* कांच लगाना हो तो बड़ा लगवाएं जिसमे पूरा प्रतिबिम्ब दिखे ।
3. 11 वीं प्रतिमा के नीचे आगम में कोई भेष का वर्णन नहीं है । लावारिश ब्रम्हचारी और त्यागी वृति बहुत खतरनाक होते हैं । श्रावकों को बहुत सावधानी रखने की जरुरत है । कहीं ऐसा ना हो तो कि धर्म की आड़ में वो अपना घर भर रहे हों । आप उनका सम्मान पूरा करे, लेकिन पैसा देने में सावधानी रखे । यातो उनके आश्रम को दें या फिर अच्छी जांच पड़ताल कर लें कि उस व्यक्ति को सही में सहयोग कैसे दिया जा सकता है । असावधानी का दोष श्रावक को ही पड़ेगा ।
4. जिन विदेशियों ने देश को कुचल दिया, जिनसे स्वतंत्र होने के लिए लाखों लोगों ने बलिदान दिया । *विदेशी संस्कृति अनुसार 1 जनवरी को नया साल मनाना, भारत देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है । इस दिन दुनिया में सबसे ज्यादा अनाचार, व्यसन, हिंसा, नॉन वेज का सेवन होता है ।* इस दिन छुट्टी मिलती है तो उसका उपयोग धार्मिक क्रियाओं में करें ।
5. नारी के सोलह श्रृंगार, लोक मंगल का प्रतीक है, उसको उसी अनुरूप लेना चाहिए । लेकिन *शास्त्रानुसार नारी के ये सारे 16 श्रृंगार स्वर्ण मयी हैं नाकि आजकल के समय के प्रचलित लेप रूपी ।*
*- प. पू. मुनि श्री १०८ सुधा सागर जी एवं श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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धर्म पर आस्था रख सादगी से जियें जीवन -आचार्य श्री विद्यासागर जी
भक्ति, निष्ठा तथा लगनशीलता के साथ किया गया कार्य मंजिल तक पहुंचाकर सफलता के सोपान तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जबकि हतोत्साहित होेकर बे मन से किया गया कार्य सफलता में बाधक बनता है। अतः कार्यों को पूर्ण निष्ठा, भक्ति तथा समर्पण भाव से करना चाहिए। यह उपदेश आचार्य श्री विद्या सागर महाराज ने दिए।
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अनोखा वात्सल्य... वैयाव्रत्ती करते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी की बगिया के कुछ पुष्प महकते हुए.. चहकते हुए.. वितराग धर्म की सुगंधी फैलाते हुए.. मुनि सुधासागर जी, मुनि प्रमाणसागर जी, मुनि महासागर जी, मुनि विराटसागर जी, मुनि निष्कंपसागर जी, क्षुल्लक धीरसागर जी, क्षुल्लक गम्भीरसागर जी:)) #MuniSudhaSagar #MuniPramaanSagar
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