Update
*जिज्ञासा समाधान - 27 Dec. 2016*
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1. युवाओं को चाहिए कि वो अच्छी संख्या में धार्मिक क्रियाओं में सम्मलित हों । इससे बड़े, बूढ़े लोग अपने आप सुधरने लगेंगे ।
2. शास्त्रानुसार हर श्रावक को हमेशा एक मृदु वस्त्र अपने पास रखना चाहिए जीव रक्षा के लिए । जैसे कोई मक्छर शरीर पर बैठ जाए तो उसको हटाने के लिए । और पानी छानने का छन्ना भी हमेशा अपने पास रखना चाहिए ।
मुनियों के उपकरण पीक्षी और कमंडल को कभी भी श्रावकों को अपने प्रयोग में नहीं लानी चाहिए ।
3. *आज हमारा दुर्भाग्य है कि सुबह मंदिरों में भगवान् का प्रथम दर्शन बागवान करता है ।*
4. *पुरे भारत में एक भी जैन संस्था ऐसी नहीं है जो लौकिक शिक्षा में पढ़ाए जा रहे जैनो के गलत इतिहास को ठीक कराने के लिए ध्यान दे ।*
5. चिड़ियाघर आदि में पशुओं को बांधकर रखना आदि सर्वथा गलत है । और उनको देखकर मनोरंजन करना सर्वथा गलत है ।
6. *आगम में क्षत्रियों और जैनियों को नोकरी करने का कोई विधान ही नहीं है । उत्तम खेती, मध्यम व्यापर है ।* नोकरी के चक्कर में बच्चों को होस्टल आदि में जाकर क्या क्या नहीं खाना पड़ता । इसके पीछे 90% माँ बाप ही दोषी हैं । अगर माँ बाप सुधर जाएँ तो बच्चे अपने आप सुधर जाएंगे ।
7. भगवान्, गुरु और माँ बाप से अपेक्षाएं limited रखे ।
8. *विधवा स्त्री को सवा महीने तक मंदिर ना जाने देना रूडी है, आगम में ऐसा कोई विधान नहीं है।* सूतक का पालन करिये लेकिन बाहर से दर्शन कराया जा सकता है ।
9. बच्चों को हमेशा माँ बाप के ऋणों को याद करना चाहिए । तब फिर वो कभी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता ।
*- प. पू. मुनि श्री १०८ सुधा सागर जी एवं श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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मुनि श्री 108 प्रशस्तसागर जी,
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चातुर्मास स्थल -दिगम्बर जैन मंदिर गुना सम र्पित कार्यकर्ता संपर्क सूत्र-संजय जैन गुना 9425139847 प्रेषक - पारस जैन पिण्डरई -8871397161
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स्वर्णिम पल... #आचार्यविद्यासागर_जी
27 दिसम्बर 2001.... यूँ लगता है जैसे कल ही की बात हो..आचार्य भगवंत ससंघ अतिशय क्षेत्र कोनीजी में विराजमान थे..हमारा चौका लग रहा था...आहार कराने की तीव्र लालसा मगर क्षेत्र पर स्थान सीमित....क्षेत्र के मुख्य द्वार के बाहर सामने एक ब्राह्मण सम्प्रदाय का नवनिर्मित खपरैल बरामदा जिसमे दरवाजे नही उसे पालीथीन से विभाजित कर चौके का रूप दिया, चौका तक का पहुँच मार्ग भी दोनों और गाय बंधी रहती थी बीच से सिर्फ निकलने का रास्ता...आज 16वा दिन था...पड़गाहन को खड़े हैं और आचार्य भगवंत अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ आन विराजे....कब प्रदिक्षणा हुई कब शुद्धि बोली और चल पड़े चौके की और....पूर्ण नवधा भक्ति के साथ गुरुवर को आहार देने के वह 38 मिनट हमारे जीवन को धन्य कर गये....सिर्फ मन में महामन्त्र का उच्चारण और निरंतराय आहार चर्या सम्पन्न हुई....अहारोपरांत जब संघस्थ शिष्यो के साथ गुरुवर के पास बैठे और गुरुवर ने मुस्कराते हुए सब से बताया की आज हमने " कुटिया" में आहार किये.....सच बताता हूँ वो बात और वो पल ऐंसा लगता है जैसे कल ही की बात है...
इसके बाद अभी 18 फ़रवरी 2016 को पुनः आचार्य भगवंत की आहार चर्या कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..
पूरे परिवार की ओर से गुरु चरणों में त्रिवार नमोस्तु..
- जैन ब्रजेश सेठ, पाटन
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