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🌱 *जीवन परिचय भावी सिद्धो का*🌱
✊🏼आइए जानते है हमारी आचार्य परम्परा के मुनियों के बारे में✊🏼
🍀 *मुनि श्री १०८ क्षमासागर जी महाराज*🍀
जन्म -20 सितम्बर 1957
जन्म नाम -〰 *श्री वीरेन्द्र जी सिंघई*〰
जन्म स्थान -सागर,म.प्र.
माता का नाम - श्रीमती आशादेवी जी
पिता का नाम - श्री जीवनकुमार सिंघई
शिक्षा -M.Tech.(भूगर्भशास्त्र)
मातृभाषा-हिन्दी
भाषा ज्ञान-〰 *हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत अनेक भाषाएँ*〰
ब्रह्मचर्य व्रत -10 जनवरी 1980,नैनागिरि
क्षुल्लक दीक्षा -10 जनवरी 1980,सिद्धक्षेत्र नैनागिरि जी
क्षुल्लक दीक्षा स्थान - सिद्धक्षेत्र सोनागिरीजी
ऐलक दीक्षा -07 नवंबर 1980,दीपावली
ऐलक दीक्षा स्थान - सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरी जी
मुनि दीक्षा -20 अगस्त 1982,भाद्रपद शुक्ला २
मुनि दीक्षा स्थान -सिद्धक्षेत्र नैनागिरि जी
दीक्षा गुरु - *〰आत्मान्वेषी आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज〰*
संघस्थ-संघ संचालक
समाधि-13 मार्च 2015,मोराजी सागर
विशेष - *मुनि क्षमा सागरजी महाराज वीतराग मुनि थे ।युवा अवस्था में सागर विश्वविद्यालय से भूगर्भ विज्ञान में एम. टेक. की उपाधि ग्रहण की।मात्र २३ वर्ष की आयु में आपने आचार्य विद्या सागर जी के दर्शन के बाद वैराग्य पथ पर कदम रख दिया। आप १ समृद्ध परिवार के लाडले थे।जीवन में न कोई निराशा थी और न कोई हताशा,न कोई असफलता और न कोई विरक्ति प्रेरक घटना।स्वेक्षा और स्व प्रेरणा से आप आत्म कल्याण के लिए प्रेरित हुए।मुनि क्षमा सागर जी जहाँ एक संवेदन शील कवि थे,वही दूसरी और एक श्रेष्ठ विचारक भी।*
आप आचार्य श्री संघ के कोहिनूर थे,◆आपको जिस दिन व्रत मिला था उसी दिन आपकी दीक्षा हुई।◆आपके प्रवचन अंतस् को झकझोर देने वाले होते थे।हृदयस्पर्शी प्रवचनकार,प्रकृतिवादी कवि,उत्कृष्ट लेखक,सरल स्वभावी,कर्म सिद्धांत के प्रकाण्ड विद्वान।आपकी प्रेरणा से मैत्री समूह की स्थापना हुई।
★प्रसिद्ध कृतियाँ-क्षमासागर की कविताएँ, अपना घर, आदि कई कविता संग्रह
*आत्मान्वेषी,अमूर्त शिल्पी(संस्मरण)गुरुवाणी,कर्म कैसे करे?*,जैन पारिभाषिक शब्दकोश आदि कई महत्वपूर्ण कृतियों का लेखन★
*लम्बी बीमारी के पश्चात् आपका समाधिमरण सागर में हुआ।*
ऐसे भावलिंगी संत धरती के देवता भावी सिद्ध के चरणों मे कोटिशः नमन!!
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*🌟🚩पुण्योदय विद्यासंघ 🌟*🚩
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#Deer #Dhyansagarji विहार में क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज श्री जी (शिष्य आचार्य श्री विद्यासागर जी) एक स्कूल में रुके थे, वहॉं का है ।:)
News in Hindi
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सीमा से बाहर जाकर प्रकृति के नियमों से न करें खिलवाड़: #आचार्यविद्यासागर #सिलवानी
सीमा के अंदर रहने से सुख को प्राप्त किए जाने के साथ ही आत्म संतुष्टि तथा शांति का अनुभव प्राप्त होता है। जबकि सीमा के बाहर रह कर कार्य किया तो शारीरिक मानसिक रुप से बीमार होने के साथ ही परिणाम गलत प्राप्त होते है। श्रावक को प्रकृति के द्वारा निर्धारित की गई सीमा के बाहर जाने का दुस्साहस पूर्ण कार्य कर प्रकृति के नियमों का खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
यह बात आचार्य विद्या सागर महाराज ने मंगलवार को श्रावकों को उपदेश देते हुए कही। वह नियमित व्याख्यान में प्रकृत के मापदंड को विस्तारित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धन दौलत को कभी भी सुख व वैभवता का साधन नहीं मानना चाहिए।
धन से विलासिता की सामग्री क्रय की जा सकती है लेकिन आत्म संतुष्टि की सामग्री नहीं खरीदी जा सकती है। आत्म संतुष्टि को पाना है तो धर्म रूपी आचरण को अपना कर सद्मार्ग पर अग्रसर हो, तभी सुख को प्राप्त किया जा सकता है।
आचार्य श्री ने बताया कि वाहन की मशीन डीजल पेट्रोल से चलती है, अन्य मशीनें भी विभिन्न तेल की खुराक से चलती है लेकिन एेसी कोई मशीन दुनिया मे ंनहीं बनी जो शुद्ध घी से चलती हो।
मानव का शरीर भी एक गाड़ी की तरह है लेकिन इस गाड़ी में जरूरत से अधिक तेल भरा जा रहा है, बिना सोचे समझे कि परिणाम क्या होगा आवश्यकता से अधिक भराव घातक सिद्ध होता है। मानव को चाहिए कि वह जरूरत के अनुसार ही सामग्री और धन का संग्रह करे। आपने धन का अपव्यय न करने की सीख देते हुए कहा कि जहां जरूरत हो वही पर धन का व्यय किया जाना चाहिए। विदेशी भूमि पर साधु संतों ऋषि मुनियों को सम्मान नहीं दिया जाता है। लेकिन भारत भूमि पर सभी समुदाय के महापुरुषों का सम्मान भावनात्मक रुप से किया जाता है।
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