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जिज्ञासा समाधान- मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महामुनिराज #MuniSudhaSagar #AcharyaVardhmanSagar
सुखी द्रव्य से पूजा करने का कोई उल्लेख कहीं नही मिलता। पूजन हमेशा शुद्धि पूर्वक गीले द्रव्य से ही करनी चाहिए।*
☄ *मूर्ति और मुनिराज की परछाई का सम्मान करते हैं, तो उसमें पूण्य बंध होगा ही।* परन्तु अगर इसका ध्यान नही रखा जाए तो कोई दोष भी नही है।
👉 *जैन साधु ने अपना मन इतना पवित्र और पावन कर लिया है, कि उनके प्रत्येक अंग से वीतरागता और पवित्रता ही झलकती है।*
☄ *सामान्य व्यक्ति जिन असाता कर्मों से पाप का बंध करता है, मुनिराज उन्ही असाता कर्मों से अपने कर्मों की निर्जरा कर लेते हैं।* ज्ञानी पुरूष कैसे भी निमित्त मिल जाएं, उनसे अपने कर्मों की निर्जरा कर ही लेता है।
☄ प्रार्थना और विनय में बस इतना ही अंतर है, प्रार्थना में गुणानुवाद और अनुराग होता है, और विनय में उन गुणों की प्राप्ति का भाव होता है। *भगवान के तदरूप होने की प्रार्थना ही विनय भाव है।*
👉 *जो बस्तु, व्यक्ति हमारे अच्छे कार्यों में बाधक बने एवं कषाय भाव जागृत हों, हमारे परिणाम विकृत हों। समझ लेना वह हमारे पूर्व भव का बैरी है।* और *जिसे देखकर परिणाम निर्मल, और शांत हो जाएं उस निमित्त को उपकारी मानना चाहिए।*
☄ *स्पर्धा में हमेशा अपनी योग्यता देखना चाहिये। अपनी क्षमता से ज्यादा कभी स्पर्धा नहीं करनी चाहिए, इससे कभी भी संक्लेश प्राप्त नही होगा।* हमेशा अपने से नीचे वाले से स्पर्धा करो, सफलता अपने आप मिलती चली जायेगी।
👉 *असफलता से घबराकर कभी पीछे नही हटना चाहिये। यह हमें आगे बढ़ने की शिक्षा देती है। हर परिस्थिति में समता भाव धारण करना ही श्रेष्ठ व्यक्ति की निशानी है।*
☄ छोटे छोटे नियम भी बड़े काम के होते हैं। जिन बस्तुओं को हम उपयोग नही करते उनका त्याग कर देना चाहिए। नियम कितने भी समय का लिया जा सकता है, इसमें कोई बाधा नही।
👉 *अनहोनी होना हमारे किसी पूर्व संचित कर्म का ही परिणाम है। बिना पूर्व कर्मों के हमें कोई फल नही मिलता।*
☄जिनक रात्रि भोजन त्याग है, उन्हें इसकी अनुमोदना भी नहीं करनी चाहिए। न रात्रि में भोजन बनाना चाहिए, और न ही परोसना चाहिए।
🔺 *विशेष- कल 4 जनवरी को प्रातः पूज्य मुनिराज ससंघ का विजयनगर में मंगल प्रवेश होगा। जहाँ आगामी 14 जनवरी से 19 जनवरी तक भव्य पंचकल्याणक पूज्य मुनिराज के सान्निध्य में होंगे।*🔺
*नोट- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।*
*पूज्य गुरुदेव का जिज्ञसा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये- जिनवाणी चैनल पर*
*सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से*
*संकलन- दिलीप जैन शिवपुरी।*
*प्रस्तुति-अनिल बड़कुल, गुना*
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मन की गंदगी साफ करने पर होगी आनंद की अनुभूति @सिलवानी -आचार्य विद्यासागर जी
उपयोग में लाए जा रहे वस्त्रों को गंदा होने पर साफ किया जा सकता है। वह भले ही गंदा हो गया हो लेकिन धोने से वह न केवल साफ दिखाई देने लगता है बल्कि साफ होकर वस्त्र पुनः कार्य में लेने के योग्य हो जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि श्रावक कपड़ा रूपी मन पर राग द्वेष की गंदगी को जमा न होने दे, बल्कि आत्म ध्यान में मन को लगाकर धोता रहे ताकि मन मलिन न होने पाए। कषाय रूपी मन को धोने से आनंद की अनुभूति होती है।
यह उपदेश आचार्य विद्यासागर महाराज ने बुधवार को नियमित व्याख्यान के तहत विश्वास शब्द को विस्तार से विस्तारित कर आत्म ध्यान का मर्म समझाते हुए दिए। प्रारंभ में श्रावकों ने आचार्य पूजा की । आचार्य श्री ने कहा कि किसी व्यक्ति और वस्तु पर विश्वास करना तथा विश्वास की भावना को जगाना पड़ेगा। विश्वास कर किए गए कार्य से आनंद की अनुभूति होती है, साथ ही कार्य में निखार भी आता है। आचार्य श्री ने श्रावकों से टेढ़ा-मेड़ा मार्ग न अपनाने की सीख देते हुए बताया कि वायुयान का मार्ग सीधा होता है, वह टेढ़े मेढ़े मार्ग पर नहीं चलता है। श्रावक को भी वायुयान जैसे मार्ग को आत्मसात कर टेढ़े-मेढ़े मार्ग पर आवागमन करना छोड़ना होगा। एेसा करने से जीवन सफल सफल होता जाता है। अवरोध नहीं आते हैं, और न ही अंधे मोड़ की चेतावनी वाले संकेतक बोर्ड की तरफ नजर जाती है। संसारी कार्य में लगे हुए लोगों को कार्य के दौरान विश्वास करना होगा। विश्वास से ही कार्य पूर्ण होता जाता है। उन्होंने कहा कि किसी ने भी भगवान को आंखों से नहीं देखा, लेकिन विश्वास है कि भगवान हैं।
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#सिलवानी, तोड़ने की नहीं, जोड़ने की बात करो -आचार्य भगवन श्री #विद्यासागर जी
पहले जोड़ने की बात होती है फिर छोड़ने की बात, लेकिन जिसने जोड़ा ही नहीं उससे छोड़ने को कहा ही नहीं जा सकता। युवाओं को समझाना कठिन हो सकता है, लेकिन वृद्ध लोगों को जल्द समझाना चाहिए, क्योंकि युवकों की अपेक्षा वृद्ध लोगों में अधिक समझ होती है। धर्म के मार्ग पर चलने के लिए युवकों को प्रेरित किए जाने के लिए उम्र दराज लोगों को आगे आकर पथ प्रदर्शक बनना होगा, तभी युवा धर्म के पथ का अनुशरण कर पाएंगे।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने बताया कि जिस व्यक्ति के जीवन में घटना घटित होती है, उसे उपदेश की जरूरत नहीं होती है। वह अनेक लोगों की समस्याओं का समाधान सुंदर ढंग से दे सकता है, उसका जीवन बना रहना आवश्यक रहता है। पूज्यवर ने बताया कि महापुरुष जिसके यहां जन्म लेते हैं, वे बाल्या अवस्था में ही घर के बड़े सदस्यों को उपदेश देने लगते हैं। राग द्वेष व आकुलता को नियंत्रित रखे जाने के लिए घर में अनुभवी होना परम आवश्यक है। अनुकूलता पर अंकुश हो तो सब कुछ ठीक हो जाता है।
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