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Jain Restaurant @ Canada.. no food available after sunset!! कनाडा में शाकाहारी जैन रेस्टरंट जो शाम को 7 बजे बंद हो जाता हैं.. #CanadaRestaurant #JainFoodCanada #JainInCanada #VegetarianCanada #KalaKitchen
आज हमारे भोजन का विवेक ख़तम होता जा रहा है। कभी भी कहीं भी और कैसा भी भोजन लेने के चलन से अधिकांश लोग अछूते नहीं रहे। जहां एक ओर हम पश्चातय सभ्यता को अपना कर अपने विज्ञान आधारित धर्म का केवल मंदिरो, Whatsapp के message और facebook पर अनुकरण कर रहे हैं वहीं कनाडा देश में एक restaurant (kala's kitchen www.kalaskitchen.com) भी है जो शाम 6 बजे के बाद भोजन का कोई भी order नहीं लेता और 7 बजे restaurant बंद हो जाता है।
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कहि ऐसा तो नही हम अल्पज्ञ और अति अनुरागी होने के कारण #आचार्यश्रीविद्यासागर जी चर्या में व्यबधान उतपन्न कर रहे हो और आचार्य भगवंत इसे आपके द्वारा होने वाला उपसर्ग मान अपने कर्मो की निर्झरा कर रहे है जैसे कि हम जब भी आचार्य भगवंत के दर्शनों को जाते है तो एक बहुत बड़ी भीड़ का हिस्सा होते है और हमारा प्रयास होता है कि हम किसी भी प्रकार से सभी से आगे निकल कर आचार्य भगवंत के चरणों को छू ले और संसारी होने के नाते हमारा मन जो है इतने में ही नही भरता हम चाहते है कि हम उनके चरण छुए और कोई हमारा फोटो भी खीचे ताकि हम सभी को दिखा सके कि देखिये हमें आचार्य भगवंत के चरण छूने का सौभाग्य मिला था
हमारे इस प्रयास में आपने कभी सोचा भी है कि कैसे सम्हल सम्हल कर चलना पड़ता है उन्हें,क्योंकि वह अपनी ईर्या पथ को कभी नही छोड़ते,वह चलते हुए निकले और आप यकायक उनके पैरों को हाथ लगाने की कोशिश करे तो उनका ध्यान आपके हाथों की और अवश्य जायेगा और उन्हें आपके हाथों से बचने का भी प्रयास करना पड़ेगा, चलते में पैरो को छूने पर गिर जाने का भी डर रहता है तो यकीन मानिये आप पूण्य तो करना चाह रहे है परंतु विवेकहीन क्रिया के साथ तो क्या वह पूण्य आपको हासिल होगा - नही होगा बल्कि पूण्य के विपरीत फल मिलेगा
इसलिये यह हमारा स्वयं का प्रयास होना चाहिये कि आचार्य भगवंत जब भी चलते मिले हम उनके चरणों को छूने का प्रयास नही करेंगे और ना ही ऐसा प्रयास करेंगे कि उसी समय में कोई हमारा फोटो भी ले जिसे हम चार लोगो को दिखा अपनी शान बड़ा सके क्योंकि आपकी वही शान चलते हुए आचार्य भगवंत को कभी कभी बहुत बड़ी चोट दे सकती है । अब दूसरी सबसे बड़ी समस्या आती है आहारों के समय जब हजारो लोगो की भीड़ सामने बहुत तेज शोर करते हुए खड़ी हो और प्रत्येक व्यक्ति के पास अपने अपने मोबाइल के कैमरे से फोटो खींचने की जल्दी हो और प्रत्येक के फलेश की लाइट जब आचार्य भगवंत के चेहरे की और जाती होगी तब उनकी चर्या में कितना व्यबधान होता होगा
आपने क्या कभी सोचा है कि भीड़ में खडा प्रत्येक व्यक्ति फोटो खींचने में जब फ़्लैश का इस्तेमाल करता होगा तो जो रौशनी आचार्य भगवंत की आँखों पर जाकर उन्हें चकाचोंध करती होगी तब वह अपनी चर्या को कितनी मुश्किल से कर पाते होंगे, हम स्वयं सोचे एक तो सभी रसों का त्याग और फिर आप के द्वारा किये जाने वाला उपसर्ग, कहि अल्पज्ञता और अनुराग की अधिकता के कारण हम उनकी चर्या को बाधित कर कोई बड़ा पाप तो नही कमा रहे है । तो आये हम आज प्रतिज्ञा करे कि आचार्य भगवंत जब भी आहारचर्या को जायेंगे तब या जब आचार्य भगवंत चल रहे होंगे तब हम किसी भी प्रकार की कोशिश नही करेंगे की हम उनका फोटो ले और उनकी तीर्थंकर समान चर्या को बाधित करे।
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News in Hindi
मुनिश्री आदिसागर द्वारा संस्मरण.. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी के Photo खिचवाने से सम्बंधित #AcharyaShantisagar #AcharyaVidyaSagar
शेडवाल के (श्री बालगौड़ा देवगौड़ा पाटील) परमपूज्य मुनि आदिसागर महराज का सिवनी में २७ फरवरी, १९५७ को शिखरजी आते समय आगमन हुआ था। उन्होंने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के विषय में मेरी प्रार्थना पर बातें बताई: •फोटो खिंचवाना••
आदिसागरजी ने बताया- "एक बार मैं चिकोड़ी (बेलगाँव) में था। आचार्य महराज उस समय मुनि अवस्था में विराजमान थे। मैंने चिकोड़ी के अनेक गृहस्थों के साथ नसलापुर जाकर महराज से प्रार्थना की कि वे हमें फोटो खिंचवाने की मंजूरी प्रदान करें, जिससे हम परोक्ष में आपके दर्शन लाभ ले सकें। हमारी प्रार्थना स्वीकार हुई।
फोटोग्राफर महराज के पास आया। उसने महराज से कहा- "महराज! अच्छी फोटो के लिए, यह जगह ठीक नहीं है। दूसरा स्थान उचित है। वहाँ चलिए।" इसके साथ ही इस प्रकार खड़े रहिए आदि विविध प्रकार के सुझाव उपस्थित किए गए। महराज अनुज्ञा देकर वचनवद्ध थे। उन्होंने फोटोग्राफर के संकेतों के अनुसार कार्य किया। फोटो तो खींच गई, किन्तु इसके बाद एक विचित्र बात हुई।"
मन को दंड: उस समय महराज आहार में दूध, चावल तथा पानी के सिवाय कोई भी वस्तु आहार में नहीं लेते थे। फोटो खीचनें की स्वीकृति देने वाली मनोवृत्ति को शिक्षा देने के हेतु महराज ने एक सप्ताह के लिए दूध भी छोड दिया। बिना अन्य किसी पदार्थ के वे केवल चावल और पानी मात्र लेने लगे।
महराज ने बताया- "हमारे मन ने फोटो खिंचवाने की स्वीकृति दे दी। इसमें हमे अनेक प्रकार की पराधीनता का अनुभव हुआ। फोटोग्राफर के आदेशानुसार हमें कार्य करना पड़ा, क्योंकि हम वचनबद्ध हो चुके थे। हमने दूध का त्याग करके अपने मन को शिक्षा दी, जिससे वह पुनः ऐसी भूल करने को उत्साहित न हो।" इस प्रकरण से महराज की लोकोत्तर मनस्विता पर प्रकाश पड़ता है।
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