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जैन धर्म तथा भगवान आदिनाथ / ऋषभ देव तीर्थंकर ओर प्राचीनता.. worthy read write-up!!!
महावीर भगवान् के समय जैन धर्म मूल संघ के नाम से जाना जाता था । फिर विदेशी यात्रियों ने इसे निर्ग्रंथ धर्म कहा है जो आज जैन या आर्हत कहते हैं ।*
*जर्मन विद्वान स्व. डॉ. हर्मन याकोबी लिखते हैं कि जैन परम्परा प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव से अपने धर्म का संस्थापक मानने में एकमत है ।
*डॉ. सर राधाकृष्णन् कुछ विशेष जोर देकर लिखते हैं - जैन परम्परा वृषभदेव से अपने धर्म की उत्पत्ति होने का कथन करती है जो बहुत सी शताब्दियों पूर्व हुए हैं । इस बात के प्रमाण पाये जाते हैं कि ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव की पूजा होती थी । इसमें कोई संदेह नहीं कि जैन धर्म वर्धमान और पार्श्वनाथ से भी पहले प्रचलित था । यजुर्वेद में वृषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों के नामों का निर्देश है । भागवत पुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि वृषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे ।*
*श्रीमद् भागवत के पाँचवे स्कंध के अध्याय 2 - 6 में वृषभदेव का सुंदर वर्णन है । वृषभदेव और भरत दिगम्बर वेश में नग्न विचरण करते थे । उन्हीं के उपदेश से जैन धर्म की उत्पत्ति बतलाई है ।*
*जैन परम्परा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव इस अवसर्पिणी काल के तीसरे भाग (काल) में हुए हैं और अब पंचम काल चल रहा है ।*
*मेजर जनरल जे. सी. आर. फालोंग महोदय अपनी द सार्ट स्टडी गन साईन्स ऑफ कम्परेटिव रीलिजन नामक पुस्तक में लिखते हैं -*
*ईसा के अगणित वर्ष पहले से जैन धर्म भारत में फैला हुआ था । आर्य लोग जब भारत आये तब यहाँ जैन धर्म मौजूद था ।*
*नाभि पुत्र वृषभ और वृषभ पुत्र भरत की चर्चा प्रायः सभी हिंदू पुराणों में आती है । जैसे:-*
*१ मार्कण्डेय पुराण पु. आ. ९०*
*२ कर्म पुराण - अ ४१*
*३ वायु पुराण - अ ३३*
*४ गरुड़ पुराण - अ १*
*५ ब्रह्मांड पुराण - अ १४*
*६ बाराह पुराण - अ ७४*
*७ लिंग पुराण - अ ४७*
*८ विष्णु पुराण - अ १*
*९ स्कन्ध पुराण - कुमार खंड अ ३७*
*में ऋषभदेव का वर्णन आता है । इन सभी में ऋषभदेव को नाभि और मरु देवी का पुत्र कहा गया है ।
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जिज्ञासा समाधान, मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महामुनिराज #MuniSudhaSagar #AcharyaVidyaSagar
● मुनि महाराज आहार के लिए कोई भी विधि लेकर निकल सकते हैं। ये उनका स्वंय का विवेक होता है। इस बारे में न तो वो बताते हैं, और न किसी को पूछना चाहिए। इसी प्रकार किस प्रकार का अंतराय आया है, यह बताना भी आवश्यक नहीं है।
● पूज्यवर माघनंदी जी महाराज की शांतिधारा ही प्राचीन, अतिशयकारी और बीजाक्षरों से परिपूर्ण है। इसमें श्रावकों के लिए बहुत शक्ति भरी हुई है। अतः इसे ही करना चाहिए।
यंत्र पर शांतिधारा नहीं करना चाहिए। भगवान के मस्तक पर या चरणों पर ही शान्तिधारा करनी चाहिए।
● बड़ों को हमेशा छोटों की भावनाओं की कद्र करना चाहिए। उनके प्रति उपकारी भाव रखना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर छोटों के काम आना चाहिए। और बड़ों को अपनी गलती स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि वो छोटे ही हैं, जिनने तुम्हे बड़ा बनाया है।
● आत्मा और परमात्मा के बीच कोई पर्दा नहीं है। परंतु हमारी आंखों पर जो मोहिनी कर्म का पर्दा पड़ा है, उसके कारण भगवान का दर्शन नहीं हो पाता। जैसे ही मोहनी कर्म रूपी नशा हटेगा साक्षात भगवान का दर्शन ही नही होगा, बल्कि आत्मा स्वयं भगवान बन जाएगी।
● भक्तों की भावना यदि पवित्र हो, और ऐसा पवित्र गुरु मिल जाए जिसकी साधना पवित्र हो, तो गुरु भी अतिशयकारी होते हैं । मन, वचन, काय के समर्पण के बिना कभी कोई अतिशय नहीं होते।
● जैन कुल में जन्म लेकर भी और मुनियों के उपदेश सुनने के बाद ही जिसे सम्यक दर्शन नहीं हो रहा है, तो वह नियम से उसके पुरुषार्थ की कमी है। ऐसे जैनी को नियम से दुर्गति का पात्र बनना ही पड़ेगा।
● गुरुओं की तरफ कभी पैर करके, कुर्सी आदि पर नही बैठना चाहिए। यह महान असाता का दोष है। ऐसे व्यक्ति को आगामी भवों में अपंग पैदा होना पड़ सकता है। अगर बिल्कुल ही लाचार हो, डॉक्टर ने मना किया है तो कम से कम सामने एक टेबल पर पर्दा होना चाहिए, जिससे गुरु की असाता न हो।
● अभिषेक के धोती-दुपट्टे बिलकुल अलग होना चाहिए। घर से धोती दुपट्टे पहनकर, बिना चप्पल पहने पैदल मंदिर जाकर ही अभिषेक करना श्रेष्ठ है। मैले और फटे बस्त्र पहनकर अभिषेक करना दरिद्रता को आमंत्रण देना है। मंदिर के धोती दुपट्टों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
*नोट- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी को किसी सम्बंध में कोई शंका हो तो कृपया सुधाकलश app या youtube पर आज का वीडियो देख कर अपना समाधान कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।*
*पूज्य गुरुदेव का जिज्ञसा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये- जिनवाणी चैनल पर*
*सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से*
*संकलन- दिलीप जैन शिवपुरी।*
*अनिल बड़कुल, जैन न्यूज़ सेवा, गुना*
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Jainism -the Philosophy does not believe in a creator God, however this does not mean that Jainism is an atheistic religion. Jains (the follower of Jainism called Jain) believe in an infinite number of Jinas (Gods) who are self-realized omniscient individuals who have attained liberation from birth, death, and suffering.
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News in Hindi
आचार्य श्री विद्यासागर जी के चरणों में माँगीतुंग़ी से रवींद्रकीर्ति स्वामी जी:)) #AcharyaVidyaSagar #RavindraKirti #MangiTungi #AryikaGyanMati
आचार्य देव श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने आज सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी जी से स्वस्ति श्री रवीन्द्र कीर्ति स्वामी जी पधारे, स्वामी जी ने आचार्यश्री ससंघ के दर्शन किए व आर्यिका ज्ञानमति जी ससंघ की तरफ से आचार्यश्री ससंघ को नमोस्तु भी किया* साथ ही आचार्य श्री जी को मांगीतूंगी पधारने का निमंत्रण भी किया।आचार्य भगवन्त ने मुस्कुराते हुए स्वामीजी को आशीर्वाद दिया!!
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