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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'
📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 198📝
(नवीन छन्द)
*42.*
युग-युग तक चली फली-फूली,
व्यापक संयुक्त-परिवार-प्रथा।
वह छिन्न-भिन्न हो गई आज,
कैसी है उसकी करुण कथा!
जो टूट-फूट हो गई, गई
जो बची सुरक्षित रहे वही,
परिवर्तन-परिष्कार से भी
मिलते जाएं संस्कार सही।।
*अर्थ--* संयुक्त परिवार की परम्परा बहुत प्राचीन है। वह व्यापक रूप में प्रचलित रही है। वह युग-युग तक चली और फलती-फूलती रही। आज वह परम्परा छिन्न-भिन्न हो गई। उसकी कहानी सुनकर मन में करुणा के भाव उमड़ते हैं।
संयुक्त परिवार की प्रथा में जो टूट-फूट हो गई, उसे एक बार छोड़ भी दिया जाए। पर वह जितने अंशों में बची है, उसकी सुरक्षा आवश्यक है। उसमें थोड़ा-सा परिवर्तन और परिष्कार हो जाए तो भी सही संस्कार उपलब्ध हो सकते हैं।
*भाष्य--* समाजशास्त्रियों के अनुसार समाज की प्रारम्भिक इकाई परिवार है। इसे सामुदायिक जीवन का प्रथम प्रयोग माना जा सकता है। परिवार का इतिहास बहुत प्राचीन है। परिवार के साथ संयुक्त शब्द का प्रयोग अधुनाकालिक है। इसको सापेक्ष दृष्टि से समझना आवश्यक है। इसका विकास उदात्त चेतना के आधार पर संभव है। जिस चेतना में स्वार्थ-विसर्जन, सहिष्णुता, सामञ्जस्य, समविभाग की भावना, सेवा या सहयोग की भावना, विनम्रता, वात्सल्य आदि गुणों का विकास होता है, संयुक्त परिवार की परम्परा वहीं आगे बढ़ सकती है। यह व्यावहारिक अहिंसा का एक विशिष्ट प्रयोग है और बड़े संगठनों के लिए आधारभित्ति है। इसके द्वारा सामुदायिक चेतना का विकास किया जा सकता है।
बीसवीं शताब्दी में परिवार-प्रथा में परिवर्तन का दौर शुरू हो गया। वैयक्तिक चेतना की प्रखरता, स्वार्थी मनोवृत्ति, असहिष्णुता, सामञ्जस्य की कमी, सेवाभावना का ह्रास आदि कारणों ने सामूहिक जीवन शैली की रीढ़ पर प्रहार किया। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा, बड़े शहरों में आवास की समस्या, बच्चों की शिक्षा आदि तत्त्व भी पारिवारिक विघटन के निमित्त बने। उसका प्रभाव हर संगठन पर पड़ा। क्योंकि बड़े परिवार में जो शिक्षण मिल सकता था, वह एकल परिवार में नहीं मिल पाता। उसके अभाव में धार्मिक, सामाजिक व राजनैतिक संगठनों में भी सामुदायिक भावना में कमी रहती है।
संयुक्त परिवार में रहने वालों के सामने कुछ कठिनाइयां हो सकती है, पर उससे कई सुविधाएं भी मिलती हैं। वहां एक के लिए दस व्यक्ति तैयार रहते हैं। एकल परिवार में यह स्थिति नहीं बन सकती। संयुक्त परिवार में अपाहिज, रुग्ण और वृद्ध कभी भारभूत नहीं बनते। अब इस स्थिति में भी अन्तर आ गया है। छोटे परिवार में सब लोग व्यस्त रहते हैं। वहां बच्चों को संस्कार देने के लिए किसी के पास समय नहीं होता। परिवार जितना छोटा होता है, व्यक्ति उतना ही अधिक बंध जाता है। परम्पराओं की विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रखने में संयुक्त परिवार की अहम भूमिका रहती है। और भी ऐसी अनेक बातें हैं, जो संयुक्त परिवार की वापसी को आवश्यक मान रही है।
*साथ रहते हुए कभी-कभी हमारे मनों में गलतफहमियों की गांठें पड़ जाती है। वो गांठें कैसे खोलें और कैसे अमृतमय जीवन जीएं?* जानने-समझने के लिए पढ़ें... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः कल।
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 12 किमी का विहार
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दिनांक - 21/01/2017
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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻
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21 जनवरी का संकल्प
तिथि:- माध कृष्णा नवमी
नकारात्मकता डालती पग-पग पर बाधाएं ।
सही सोच बदल देती बुरी से बुरी ग्रह दशाएं ।।
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