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#Life_Lesson रयणमंजुषा टीका में महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज सत्याणुव्रत के अतिचार के विषय में लिखते ह #AcharyaVidyaSagar
कभी धरोहर डकार जाना
अहित पंथ को हित कहना,
नर-नारी के गुप्त प्रणय को
प्रकटाना-चुग़ली करना ।
ईर्ष्यावश, नहिं किए कहे को
किये कहे यों लिख देना,
स्थूल-सत्यव्रत के ये दूषण,
इनका रस ना चख लेना ।।५६।।
१)किसी की रखी हुई धरोहर को हजम कर जाना।
२) जो पथ(रास्ता) हितकर नहीं है - कल्याणकारी नहीं है उस पथ को ही हितकर करते हुए उसका प्रचार करना ।
३) स्त्री पुरुष के गुप्त प्रणय(प्रेम) सम्बन्धों को उजागर कर देना।
४) ईर्ष्यावश चुगली करना।
५) दूसरे ने कुछ कहा नहीं, किया नहीं फिर भी छल पूर्वक यों ही लिख देना ।
ये सभी सत्याणुव्रत के अतिचार हैं।
हे श्रावक! इन अतिचारों के रस को कभी मत चखना- सदा इनसे दूर रहना।
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#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence
Source: © Facebook
News in Hindi
इन्हें आवारा समझ कर दुत्कारिये नहीं.. इनके दर्द को भी समझिये..ये देर रात को रोते हुए सुनाई दे तो..सहमे या डरे नही..इनके दर्द को समझिये..ये दर्द उस भूख का भी हो सकता है जो पेट में कुछ न होने के कारण उठा हो । मै प्रत्यक्ष गवाह हूँ इनके दर्द का..इन दिनों स्वच्छ्ता अभियान के चलते न सड़कों और न गलियों में कोई कुछ फेंक रहा है । व्यवस्था में लगी कचरे ले जाने वाली गाड़ियों में कुछ भोजन इन्ही मूक पशुओं का भी होता है जो अब इन्हें मिलता नहीं है । इनका कोई मालिक नही है । अभियान अच्छा है उसमें सहभागिता निभाते हुए शहर को साफ़ रखना हमारी जिम्मेदारी है लेकिन उसके अलावा हमारा फ़र्ज़ और मानवीयता इन मूक पशुओं के दर्द को भी समझने की है । आप बस इतना कीजिये आपके घर, गली, मोहल्ले, कॉलोनी में कही ऐसे आवारा श्वान दयनित हालात में नज़र आएं तो उन्हें कुछ खाने को जरूर दे दें । आग्रह है स्वीकारना या न स्वीकारना आपके विवेक पर निर्भर करता है । #StreetDog #AnimalFeelPain #AnimalHaveSoul
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प्रसंग वैज्ञानिक संत श्री जिनेन्द्र वर्णीजी की सल्लेखना का है, अवश्य पढ़े व शेयर करे। जब आचार्य विद्यासागर जी अचानक विहार कर गए.. #AcharyaVidyaSagar #JinendraVarni
जिनेन्द्र वर्णी ने अंत समय में आचार्य महाराज को अपना गुरु बनाकर उनके श्रीचरणों में समाधि के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था।सल्लेखना अभी प्रारंभ नहीं हुई थी,इससे पहले ही एक दिन अचानक संघ सहित आचार्य महाराज बिना किसी से कुछ कहे ईसरी से नीमिया-घाट होकर पार्श्वनाथ टोंक की ओर वंदना के लिए निकल पड़े।सारा दिन वंदना में बीत गया,ईसरी आश्रम आते-आते शाम हो गई। चूँकि बिना किसी पूर्व सूचना के यह सब हुआ,इसलिए वर्णी जी दिन भर बहुत चिंतित रहे कि पता नही आचार्य महाराज कब लौटेंगे।जैसे ही ईसरी आश्रम में आचार्य महाराज लौटकर आए,वर्णी जी ने उनके चरणों में माथा रख दिया।आँखों में आँसू भर आए।अवरुद्ध कंठ से बोले कि *"महाराज आप मुझे बिना बताए अकेला छोड़कर चले गए।मन बहुत घबराया।मुझे तो अब आपका ही सहारा है।मेरे जीवन के अंतिम समय में अब सब आपको ही सँभालना है।
आचार्य महाराज क्षण भर को गम्भीर हो गए,फिर मुस्कुराकर बोले कि *"वर्णी जी सल्लेखना तो आत्माश्रित है।अपने भावों की सँभाल आपको स्वयं करनी है।अपने उपादान को जाग्रत रखिए,मैं तो निमित्त मात्र हूँ। इस तरह अपने प्रति समर्पित हर शिष्य को सँभालना,सहारा देना,संयम के प्रति जाग्रत रखना और निरन्तर आत्म-कल्याण की शिक्षा देते रहना;परन्तु स्वयं को इस सबसे असम्पृक्त रखना,यह उनकी विशेषता है।
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