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गुरुवार 02/Feb/2017
"उत्तम आर्जव" पर्युषण पर्व: तृतीय दिवस
प्रस्तुत शृंखला मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप है. पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक में उपलब्ध हैं. हमेंआशा है की इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठा रहे होंगे और इसे पसंद भी कर रहे होंगे.
इसी शृंखला में आज "उत्तम आर्जव" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं.
जय जिनेन्द्र!
"उत्तम आर्जव"
जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं. हमारी कमजोरियां जो मजबूरी की तरह हमारे जीवन में शामिल हो गयी हैं, उनको अगर हम रोज़ -रोज़ देखते रहेऔर उन्हें हटाने की भावना भाते रहे तो बहुत आसानी से इन चीज़ों को अपने जीवन में घटा बढा सकते हैं. हमारे जीवन का प्रभाव आसपास के वातावरण पे भी पड़ता है.जब हमारे अंदर कठोरता आती है तो आसपास का परिवेश भी दूषित होता है. इसीलिए इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए की हमारे व्यव्हार से किसी को कष्ट न हो.
दुसरे के साथ हम रूखा व्यव्हार करेंगे, दुसरे के साथ छल -कपट करेंगे, धोखा देंगे और इसमें आनंद मानेंगे तो हमारी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता दोनों ही धीरे -धीरेकरके ख़तम हो जायेगी. वर्तमान में ये ही हो रहा है. हम कृत्रिम हो गए हैं,दिखावा करने लगे हैं जिससे लोगों के मन में हमारे प्रति विश्वास नहीं रहा,एक -दुसरे के प्रतिसंदेह ज्यादा हो गया, यहाँ तक की परिवार में भी एक -दुसरे के प्रति स्नेह ज्यादा है -विश्वास कम है. लेकिन रिश्ते तो सब विश्वास से चलते हैं. रिश्ता चाहे भगवान् से होया संसार के व्यक्तियों से या वस्तुओं से, सभी विश्वास और श्रध्दा के बल पे ही हैं. यदि हम श्रध्दा और विश्वास बनाये रखना चाहते हैं तो हमारा फ़र्ज़ है की हम आडम्बरसे बचें, अपने मन को सरल बनाने की कोशिश करें.
सरलता के मायने हैं - इमानदारी,सरलता के मायने हैं - स्पष्टवादिता,सरलता के मायने हैं - उन्मुक्त ह्रदय होना, सरलता के मायने हैं - सादगी, सरलता के मायने हैं -भोलापन, संवेदनशीलता और निष्कपटता.
हमें इन बातों को धीरे -धीरे अपने जीवन में लाना होगा, या फिर इनसे विरोधी जो चीज़ें हैं उनसे बचने का प्रयास करना होगा. इमानदार और सरल होने पे यह मुश्किलखड़ी हो सकती है की लोग हमें हानि पहुंचायें. यह मुश्किल थोडी बढेगी पर इसके बाद भी हमें अपनी इमानदारी बनाये रखना है. किसी ने हमको ठग लिया तो हम भी उसेठग लें यह बात गलत है. यह बात मनुष्य जीवन में सीख लेना है की -
"कबीरा आप ठगाइए,और न ठगिये कोए
आप ठगाए सुख उपजे,पर ठगिये दुःख होए "
कोई अपने को ठग ले तो कोई हर्ज़ नहीं पर इस बात का संतोष तो रहेगा की मैंने तो किसी को धोका नहीं दिया. एक बार धोका देना,या छल -कपट करने का परिणाम हमेंसिर्फ इस जीवन में नहीं बल्कि आगे आने वाले कई भवों तक भोगना पड़ेगा.
बाबा भारती के घोडे की बात तो सबको मालूम है. बाबा भारती से डाकू ने घोड़ा छीन लिया लेकिन बाबा भारती ने डाकू से यही कहा की -'यह बात किसी से कहना मत नहींतो लोगों का विश्वास उठ जायेगा की दीन -हीन की मदद नहीं करना चाहिए '. एक बार हम धोखा दे देते हैं तो हमारी इमानदारी पर संदेह होने लगता है,इसलिए सरलतावही है जिसमें हम इमानदार रहते हैं, दूसरों के साथ छल नहीं करते, विश्वास और प्रमाणिकता बनाये रखते हैं. हम कहीं भी हो,हमारा ह्रदय उन्मुक्त होना चाहिए.
गुरुवर क्षमासागरजी महाराज की जय!
Video: https://www.youtube.com/watch?v=ccTYQvy0LDs
Audio: http://www.maitreesamooh.com/jdownloads/Pravachans%20Cleaned/Dashlakshan/uttamaarjav20sep04.mp3
_*आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य समाधिस्थ मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज के दसलक्षण धर्म के प्रवचन प्राप्त करने के लिए हमें 👇लिखें*_
जय जिनेंद्र!
*मैत्री समूह*
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#must_read दमोह जिले के सबसे रईस खानदानी श्री सिंघई के पुत्र.. श्रवण सिंघई (M.com, CA) जिनकी शादी होने वाली थीं, रिश्ता भी लगभग पक्का हो चुका था, बस लड़के के हाँ करने की देरी थी..! पर लड़के को आगया वैराग.. ओर लेलिया ब्रह्मचर्य व्रत #AcharyaVidyasagar
पुराण ग्रन्थों में भगवान नेमिनाथ के वैराग्य कथानक का वर्णन मिलता है युवराज नेमिकुमार की बारात सजी थी,कुछ ही समय पश्चात जूनागढ़ की राजकुमारी राजुल (राजमति जी) से परिणय होने वाला था सहसा भगवान को पशुओं का क्रन्दन सुनाई पड़ा जानकारी ली तो पता चला आपके विवाह में सम्मिलित राजाओं के भोजन हेतु इन पशुओं को लाया गया है,ज्यों ही नेमिकुमार ने यह शब्द सुने झट से वैरागित हो गए व गले में पहने हार,कांकण-डोरा आदि सब आभूषण उतार दिए व रथ को गिरनार पहाड़ की ओर मोड़ दिया वहाँ जाकर वस्त्राभूषण उतारकर वीतरागी दिगम्बर हो गए, इस कथा ने कोटि लोगों को प्रेरणा दी,व इसे सुनने मात्र से लोग संसार के आल-जाल से मुक्त होकर निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर लेते थे पर यह बात चौथेकाल की!
हाँ ऐसा ही वाकया हुआ..!! हम सभी जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी से तो परिचित ही है उनकी चर्या,त्याग,तपस्या के प्रभावस्वरूप आज पंचमकाल में ऐसी-ऐसी बातें देखी जाती है जिनके बारे में सोचना भी असंभव है बुंदेलखंड का दमोह जिला जिसे पूज्य बड़े बाबाजी का आशीष हजारों सालों से प्राप्त है उसी श्रीक्षेत्र कुंडलपुर के अध्यक्ष सर्व श्री संतोष जी सिंघई-जिनका जीवन वास्तव में प्रेरणादायक है दमोह जिले के सबसे रईस खानदानी होते हुए भी पूज्य बड़े बाबा जी व छोटे बाबा जी के प्रति अहर्निश समर्पित।श्री सिंघई जी ने परिवार को बचपन से ही ऐसे संस्कार दिए कि बच्चे देव-शास्त्र-गुरु के भक्त रहे व कभी बच्चों ने कोई ऐसा कार्य किया जो धर्मविरुद्ध हो।
सिंघई जी के सबसे छोटे सुपुत्र श्री श्रवण कुमार सिंघई(लकी सिंघई)आयु 30 वर्ष शिक्षा M.Com/C.A.(final) दमोह में श्री विद्या ट्रेडर्स के नाम से सबसे बड़ी हार्डवेयर की दुकान श्रवणकुमार की विवाह की तैयारियाँ चल रही थी लड़की देख ली गई, सबकी तरफ से हाँ हो गई, जिनसे विवाह होना था उनका भी 60 लाख का पैकेज बस श्रवण के हाँ करने की देर थी। 25 तारीख को सुबह के समय अचानक लकी भैय्या बोले पापा आचार्य श्री के दर्शन करने चलना है टडा में।पिताजी आश्चर्यचकित..!! पर आचार्यश्री के दर्शनों का नाम सुनते ही तैयार हो गए।टडा पहुँचते ही आचार्यश्री के दर्शन किए व श्रवणकुमार ने जिज्ञासा प्रगट की-हे आचार्य देव! मुझे ब्रह्मचर्य व्रत देकर कृतार्थ कीजिए ताकि अपनी पर्याय को सार्थक कर सकूँ।आचार्य श्री नीचे देखकर मुस्कुरा दिए पिताजी पत्थर की तरह अटल हो गए झटका सा लगा,कि जिसकी विवाह की तैयारियाँ चल रही थी वह श्रवण अब श्रमण बनेंगे पर कर भी क्या सकते थे,पुत्र के दृढ़-निश्चय के आगे पिता की एक न चली व इसी दृढ़ता को देखते हुए आचार्यश्री ने भी एक ही बार में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत दे दिया व श्रवणकुमार का मोक्षमार्ग प्रशस्त कर दिया।
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