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उत्तम शौच धर्म (शुक्रवार, 03 फरवरी 2017) पर्युषण पर्व
जय जिनेन्द्र!
पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर हम १०८ मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप प्रस्तुत कर रहे हैं। पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रेषित पुस्तक में उपलब्ध हैं। हमें आशा है कि इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठाएंगे और इसे पसंद भी करेंगे।
इसी श्रृंखला में आज "उत्तम शौच" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं:
शौच धर्म:
हम आनंद लें उस चीज़ में जो हमें प्राप्त हैं| यह ना देखें की दूसरे के पास क्या है। जो हमारे पास है, उसमें खुश रहे अन्यथा मुश्किलें पैदा होती हैं| अपनी ऐसी ही मुश्किलों को आसान करने के लिए हमारे मन में सरलता होना चाहिए। ईमानदारी होना चाहिए। हमारे भीतर उन्मुक्त हृदयता होनी चाहिए और इतना ही नहीं हम स्पष्टवादी होवें, बहुत सीधा-सादा जीवन जीने का प्रयास करें, जितना बन सकें भोलापन लावें| बच्चों में भी होता है भोलापन, पर वह अज्ञानतापूर्वक होता है| लेकिन ज्ञान हासिल करने के बाद का भोलापन ज्यादा काम का होता है| निशंक होकर, बहुत सहज होकर, भोलेपन से जियें तो हमारा जीवन बहुत ऊँचा और बहुत अच्छा बन सकता है | जो मलिनताएँ हमारे भीतर हैं उन्हें कैसे हटायें और कैसे हम अपने जीवन को, अपनी वाणी को, अपने मन को, अपने कर्म को पवित्र बनाएँ?
जो आंतरिक सुचिता या आंतरिक निर्मलता का भाव है वही शौच धर्म है| लोभ के अभाव में शुचिता आती है| हम लोभ के कई प्रकार देखते है:-
पहला है वित्तेषणा -> यह है धन- पैसे का लोभ| धन कितना ही बढ़ जाए कम ही मालूम होता है| धन का लोभ कभी रुकता नहीं है, बढ़ता ही चला जाता है|
दूसरा है पुत्रेषणा-लोकेषणा -> यह है अपने पुत्र और परिवार का लोभ।
तीसरा है समाज में अपनी पप्रतिष्ठा का लोभ |
यह तीन ही प्रकार के लोभ होते हैं, इन तीनों का लोभ हमें मलिन करता है| बस इन तीनों पे नियंत्रण पाना ही हमारे जीवन को बहुत निर्मल बना सकता हैँ| लोभ की तासीर यही है कि आशायें बढ़ती हैं, आश्वासन मिलते है और हाथ कुछ भी नहीं आता| जो अपनेपास है वह दिखने लगे तो सारा लोभ नियंत्रित हो जायेगा| व्यक्तिगत असंतोष, पारिवारिक असंतोष, सामाजिक असंतोष - कितने तरह के असंतोष हमें घेर लेते हैं| अगर हम समझ लें दूसरे के पास जो है वह उस में खुश है, और जो अपने पास है उस में हम आनंद लें तो जीवन का अर्थ मिल जायेगा |
जीवन में निर्मलता के मायने हैं - जीवन का चमकीला होना| निर्मलता के मायने हैं - मन का भीगा होना| निर्मलता के मायने हैं- जीवन का शुद्ध होना| निर्मलता के मायने हैं -जीवन का सारगर्भित होना| निर्मलता के मायने हैं - जीवन का निखालिस होना| इतने सारे मायने हैं पवित्रता के, निर्मलता के| जब मुझे मलिनतायें घेरें तो उनपे मियंत्रण रखना ज़रूरी है | हमारा मन जितना भीग जाता है उतना ही निर्मल हो जाता है|
अगर किसी की आँख भर जाए तो वह कमज़ोर माना जाता है| आज कोई रोने लगे तो बिल्कुल बुद्धू माना जायें| आज अगर मन भीग जाए तो हम आउट ऑफ डेट माने जायें| बहुत कठोर हो गए हैं हम, हमारी निर्मलता हमारे कठोर मन से गायब हो गई| जबकि हमारा मन इतना निर्मल होना चाहिए था कि दूसरों के दुःख को, संसार के दुखों को देखकर द्रवित हो जाएँ उसमें डूब जाएँ| इसी तरह हमें जो प्राप्त है हम उसमें संतुष्ट होंगे और जो हमें प्राप्त नहीं है उसे पाने का शांतिपूर्वक सद्प्रयास करेंगे तो हम जीवन में सदैव आगे बढ़ते जायेंगे |
गुरुवर क्षमासागरजी महाराज की जय!
उत्तम शौच धर्म की जय!
पर्वराज पर्युषण की जय!
मुनिश्री के उत्तम शौच धर्म के ऊपर दिए गए प्रवचन को देखने के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें:-
https://www.youtube.com/watch?v=vuOvp60OTek
मुनिश्री के उत्तम शौच धर्म के ऊपर दिए गए प्रवचन को सुनने के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें:-
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मैत्री समूह
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आज का जिज्ञासा समाधान @मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी #MuniSudhaSagar #AcharyaVidyaSagar
गुरु मुख से जो भी निकल जाए वह शुभ की कोटि में आता है।अगर कोई मुहूर्त न मिले, तो गुरु जो महूर्त करें कहें उसे मान लेना चाहिए। मूर्ति प्रतिष्ठा के समय उसमें जो मूल गुणों का आरोपण किया जाता है, उसका मुनिराज पहले स्वयं ध्यान करते हैं। तभी मूर्ति प्रतिष्ठित होती है, और अतिशयकारी होती है। एक धागा भी जिसके पास है, उसे मूर्ति प्रतिष्ठा करने का अधिकार नहीं है।
जितने भी मंद बुद्धि लोग हैं ये वो लोग हैं जिन्होंने पूर्व जन्म में अपनी बुद्धि का उपयोग दूसरों को लूटने में, परेशान करने में किया होगा।* अतः पूर्व जन्म में किए गए पाप का फल उन्हें इस जन्म में मंदबुद्धि होकर भुगतना पड़ रहा है।
व्यक्ति को नवीन स्त्रोतों की अपेक्षा प्राचीन स्त्रोतों को ही पढ़ना चाहिए। वही अतिशय कारी होते हैं । *प्राचीन आचार्य-मनीषियों ने जो उपदेश दिए हैं, उनका ही अनुसरण करना चाहिए अन्यथा सम्यग्दर्शन जा सकता है।
णमोकार मंत्र प्रत्येक परिस्थिति में प्रत्येक अवस्था में स्मरण या उच्चारण किया जा सकता है।* परंतु पूजन या जाप मात्र शुद्ध स्थान पर शुद्धि पूर्वक ही कर सकते हैं।
यात्रा के समय जिनवाणी साथ में लेकर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि वहां उसकी यथायोग्य विनय नहीं हो पाएगी।* गाड़ी में बैठ कर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। पाठ आदि करने में कोई बाधा नहीं है।_
नियम लेने के लिए गुरु का अपना महत्व होता है,* क्योंकि यदि नियम लेने पर भविष्य में कोई दुर्घटना हो जाए, या नियम में दोष लग जाए तो गुरु उसे संभाल सकते है। प्रायचित्त आदि दे सकते है।
पूण्य फल और पूण्य क्रिया दोनों अलग-अलग हैं।* पूण्य क्रिया अपनी आत्मा के उत्थान के लिए की जाती है। जिसका पूण्य फल हमें आत्म कल्याण के रूप में प्राप्त होता है।
पंचकल्याणक में जो संस्कार विधि-नायक प्रतिमा पर किए जाते हैं, वही संस्कार प्रत्येक मूर्ति पर किए जाते हैं।* विधि-नायक प्रतिमा मात्र प्रदर्शन के लिए होती है।
हर वस्तु का अपना अपना स्वभाव होता है, प्रत्येक वस्तु को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।यदि प्रत्येक वस्तु का स्वभाव हमे समझ में आ जाए तो हमें बुरा नही लगेगा, और आर्त-रौद्र ध्यान से हम बच जाएंगे।
वर्तमान में अगर माता-पिता सुधर जाएं तो बच्चे अपने आप सुधर जाएंगे। माता पिता को अपने बच्चों को ऐसे स्थान पर कदापि नहीं भेजना चाहिए, जहां उनके संस्कार प्रभावित होने का खतरा हो।वर्तमान में कॉन्वेंट स्कूलों की पढ़ाई सबसे ज्यादा खतरनाक है, जहाँ बच्चों के संस्कार बिगड़ रहे हैं, इसमें बच्चों का भविष्य गर्त में चला जाएगा।
जैन ध्वज में पांच रंग पंच परमेष्ठीका प्रतीक होते हैं।* प्रत्येक रंग का अपना अलग अलग प्रभाव होता है। सिद्धों का लाल, अरिहंत का सफेद, आचार्य का पीला, उपाध्याय का हरा और नीला रंग साधु परमेष्ठी का प्रतीक होता है।
पड़गाहन होने के बाद भी यह आवश्यक नहीं कि आपके यहां साधु का आहर हो ही जाए।* मुनि महाराज और भी अन्य नियम लेकर जाते हैं, उसके पूर्ण न होने पर मुनि महाराज आपके चौके से बापस आ सकते हैं या अंतराय भी कर सकते हैं।
नोट*- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी को किसी सम्बंध में कोई शंका हो तो कृपया सुधाकलश app या youtube पर आज का वीडियो देख कर अपना समाधान कर सकते हैं। *किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।
पूज्य गुरुदेव का जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये - जिनवाणी चैनल पर सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से
संकलन
*🏵दिलीप जैन, शिवपुरी 🏵*
*9425488836*
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बस नाम ही काफ़ी हैं... श्रद्धा ख़ुद उमड़ कर आती है..
बस याद ही काफ़ी हैं.. सपने में भी वही नज़र आते हैं..
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Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt
दिगंबर सरोवर के राजहंस आचार्य श्री विद्यासागर जी -De facto follower of Jainism who believe in Rational Perception, Rational Knowledge and Rational Conduct
Important News: एक अच्छी खबर #Handloom #Hatkardha #हतकरधा
सभी को सूचित किया जाता है की वसन्त पंचमी 1/2/2017 को दोपहर 12:00 बजे जबलपुर मैं हथकर्घा प्रक्षिशण केन्द्र का प्रारंभ हो रहा है.. जो भी लोग इस महान और बहुउपयोगी योजना से जुड़कर लाभ उठाना चाहे,सम्पर्क करे
👉हथकर्घा की कुछ संक्षेप मैं जानकारी
1⃣ आत्मनिर्भर बनने की एक गुरूमार्ग दर्शन में चलने वाली प्रथम योजना
2⃣बेरोजगार युवकों को सरल और सस्ता रोजगार उपलब्ध कराने वाली योजना
3⃣पूर्णत:स्वदेशी उत्पादन और सदा निजी लाभ कमाने हेतु योजना
5⃣सीखने का दौरान उचित भत्ता दिया जयेगा
6⃣इसके बाद आप चाहे तो लगातार काम कर सकते है या सीखने के बाद अपना उद्योग लगा सकते हैं.
मात्र 1-2 लाख की लागत से आप 50000-60000
रुपया हर माह तक कमा सकते हैं और साथ ही 10-12 लोगों को रोजगार भी दे सकते हैं
7⃣इसमें प्रवेश लेने हेतु योग्यता निम्न है 🙏🏻
👉आपका युवा होना 15-40 साल का होना आवस्यक है (अभी)
👉आप जैन और अजैन कोई भी हों,प्रवेश ले सकते हैं,मात्र नशामुक्त,और शुद् शाकाहारी हों.
👉अपराधी या विचारधीन मुल्जिम ना हों
👉सबसे जरुरी आपका साक्षात्कार होगा,आपका उसमैं चयन होना जरुरी है
👉अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करें शीघ्र:-
🎗रौनक जबलपुर
8602162696
नरेंद्र भाई साहब शहपुरा
7804071579
हथकर्घा महायोजना के तहत केंद्र
1.=कुंडलपुर
2.=दक्षिण भारत मैं तीन केंद्र
3,=महाराष्ट मैं,दो केंद्र
4,=डोगरगड़ मैं,एक केंद्र -बालिकाओं के लिये)
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News in Hindi
ब्रह्मचर्य के दुर्लभ मोती, बाँट रहे गुरु.. भर लो झोली ।
रिकार्ड 40 बहनें बनी ब्रह्मी-सुंदरी -हुआ आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत, भगवान आदिनाथ की दो पुत्रियां ब्रह्मी और सुंदरी बनने का सौभाग्य नगर की 40 बहनों को मिला। इस दौरान उन्होंने गत दिवस आचार्यश्री से आशीर्वाद लेकर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत को धारण किया। #AcharyaVidyasagar #Bramhcharya
उल्लेखनीय है कि जैन आगम के अनुसार राजा ऋषभदेव की दो बेटियां क्रमश: ब्रह्मी और सुंदरी थीं। विवाह के बाद पिता का सिर न झुके, इसलिए उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किया।
इनमें ब्रह्मी बनने का सौभाग्य ज्योति जैन, शिल्पी जैन, प्रीति जैन, दीपिका जैन, सोनल जैन, मोना जैन, अंशी जैन, रूचि जैन, आकांक्षा जैन, शेफाली जैन, नविता जैन, शांतला जैन, मोना जैन, सोनल जैन, पूनम जैन, प्राची जैन, अनामिका जैन, सपना जैन, तरु जैन, प्रियंका जैन को मिला*। वहीं गरिमा जैन, शिखा जैन, लकी जैन, निधि जैन, मीनल जैन, सोनिया जैन, ऋचा जैन, प्रतिभा जैन, रीना जैन, शालिनी जैन, प्रांजल जैन, साक्षी जैन, सुनयना जैन, सिम्मी जैन जामनेर, निकिता जैन, मंजू जैन, पूजा जैन, रिया पूजा जैन, काजल जैन, पूजा जैन आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत के साथ सुंदरी बनाया गया*।
*विशेष*--- इसमे एक ही परिवार, चौधरी परिवार से 8 बहनें शामिल है। इनमे सोनल जैन-मीनल जैन, प्रियंका जैन-काजल जैन, प्राची जैन-मंजू जैन, शांतला जैन-साक्षी जैन एवम ऋचा जैन-अंशी जैन शामिल है।
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