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👉 दिल्ली - अणुव्रत का सघन प्रचार प्रसार
👉 बारडोली - जैन संस्कार विधि से सामूहिक जन्मोत्सव कार्यक्रम
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👉 कोलकाता - ज्योत्सना गृह शोभा सेमिनार आयोजित
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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'
📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 214📝
*तेरापंथी श्रावक*
*श्रावक महेशदासजी*
महेशदास जी मूंथा मूलतः किशनगढ़ के रहने वाले थे। बाद में वे जयपुर जाकर बस गए। एक बार आचार्य भारीमालजी किशनगढ़ पधारे। उस समय वहां उनका बहुत विरोध हुआ। विरोधी गतिविधियों में महेशजी अग्रणी थे। उसी वर्ष मुनि हेमराजजी को किशनगढ़ चातुर्मास करना पड़ा। चातुर्मास्य के प्रारंभ में वहां की स्थिति अनुकूल नहीं थी। संवत्सरी को एक भी पोषध नहीं हुआ। धीरे-धीरे कुछ लोग समझे। उन्होंने तेरापंथ की गुरुधारणा की। उनमें महेशजी भी एक थे।
महेश जी स्वयं तेरापंथी बन गए। उनकी पत्नी ने तेरापंथ की श्रद्धा स्वीकार नहीं की। उन्होंने उस पर अपनी श्रद्धा थोपी नहीं, किंतु परिश्रमपूर्वक समझाने का प्रयास किया। पत्नी को समझाने के लिए उन्होंने अनेक उपाय काम में लिए। उनमें एक उपाय था उनके द्वारा बनाया गया गीत। *'गुरु-ओलखाण'* के रूप में प्रसिद्ध उस गीत की कुछ पंक्तियां निम्नलिखित हैं--
*ऐ गुरु मांहरा*
*ऐ गुरु मांहरा, थे करल्यो नीं थांहरा*
*ऐ गुरु मांहरा*
*1.*
थांनै खोटे मारग घालूं नहीं,
म्हारी राखो अन्तरंग परतीत।
लिया व्रत चोखा पालज्यो,
थे तो जास्यो जमारो जीत।।
*2.*
आपां नाता आगै अनन्त करया,
बले भोगव्या अनन्ती बार भोग।
पुण्य तणां संजोग थी,
अबकै मिलियो एहवो संजोग।।
उक्त गीत में तेरापंथ की वेशभूषा, आचार-विचार आदि को विस्तार से बताया गया है। महेशदास जी कवि थे। उनके द्वारा रचित गीतों में *'दिहाड़ो, ऐ गुरु मांहरा भेंट भवि चरण लै शरण'* आदि गीत काफी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने पचासों व्यक्तियों को समझाकर तेरापंथी बनाया, उनमें एक उनकी पत्नी भी थी। इसी कारण वे पत्नी-प्रतिबोधक कहलाए।
*श्रावक गुमान जी लुणावत ने आचार्य भिक्षु का समग्र साहित्य लिपिबद्ध किया। उनकी समर्पित श्रद्धा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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11 फरवरी का संकल्प
तिथि:- फाल्गुन कृष्णा एकम्
शनिवार है आज सामायिक करना न भूलें।
सच्चा श्रावक वही जो गुरु इंगित पर चले।।
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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