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श्वेताम्बर श्रावक श्री बंशीलाल जी कोचेटा किशनगढ़ राजस्थान में संथारा चल रहा है। दिगम्बर संत श्री प्रमाण सागरजी दर्शन देने पहुंचे। यह है जैन धर्म और अनेकता में एकता का परिचय #Digambar #Swetambar #United_Jains #MuniPramansagar
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आचार्य गुरुवर *विद्यासागर* जी के परम प्रभावी अनमोल शिष्य मुनि श्री *क्षमासागर* जी के द्वितीय समाधि दिवस पर,
सारगर्भित और मार्मिक प्रवचनो की अनूठी शृंखला का प्रसारण -
प्रतिदिन (दोपहर) 3 बजे, 18 से 20 मार्च तक
*जिनवानी चैनल* पर
"सोच"
एक वे हैं
जो ये सोचकर
जी रहे हैं
कि एक दिन
मरने का तय है
तो आज अभी
ठाठ से जियो
एक वे हैं
जो ये सोचकर
मर रहे हैं
कि आज अभी
यदि मौत आ जाए
तो शान से मरो
ये तो हम हैं
जो इस सोच में
न जी पा रहे हैं
न मर पा रहे हैं
कि वे क्यों
शान से मर रहे हैं
कि वे क्यों
ठाठ से जी रहे हैं
✍🏻मुनि श्री क्षमा सागर जी महाराज
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#जिज्ञासा_समाधान -मुनि सुधासागर जी:)
मंदिरों पर पूर्ण अधिकार समाज का ही होता है। मंदिर कमेटी के पदों पर बैठने वालों को स्वच्छ, निर्मल, और पारदर्शी और सभी की सहमति से कार्य करने वाला होना चाहिए। मंदिरों में मनमाने ढंग से कार्य करना एकदम गलत है।* यदि कोई उनसे हिसाब मांगता है, तो उन्हें झल्लाना या गुस्सा नहीं करना चाहिए, बल्कि शांति के साथ सभी की समस्या का समाधान करना चाहिए। उन्हें समाज के सेवक रूप में आगे आना चाहिए, ना कि मंदिर के मालिक के रूप में।_
2⃣ _*व्यक्ति के बाहरी वैभव और धन-दौलत को देखकर उसके पुण्य-पाप का निर्णय नहीं करना चाहिए।* धर्म को सांसारिक दृष्टि से नहीं तौला जा सकता। धर्मात्मा के साथ तो सदा ही संकट लगे रहते हैं। सच्चा धर्म तो वही है, जो संसार का नाश करे। संसार बढ़ाने वाला सच्चा धर्म नहीं होता।_
3⃣ _*जब व्यक्ति के बच्चों की शादी हो जाए, तब उसे अपनी उम्र का मध्य भाग जान लेना चाहिए। ऐसे मैं उसे गुरु रूपी लाठी का सहारा लेना जरूरी है और तद्रूप अपनी जिंदगी को ढालना चाहिए।*_
4⃣ _आज चिकित्सा और शिक्षा व्यापार बन गया है। यह कलयुग की बलिहारी है। परन्तु प्रायःकर व्यक्ति हमेशा दूसरे के धंधे के ऊपर ही कमेंट करता है।_
_*आचार्य भगवन हमेशा कहते हैं कि, दूसरे की आलोचना करने की अपेक्षा स्वयं उस मार्ग पर बढ़ कर दिखाएं तो मार्ग बन जाएगा। आप दूसरों के लिए जो बातें करते हो, उन बातों पर स्वयं को भी अमल में लाना चाहिए।*_
5⃣ _*जब भी कोई अशुभ घटना घटती है,तब व्यक्ति निमित्त को ही दोष देता है। जबकि हर बार निमित्त ही दोषी नहीं होता, कभी -कभी व्यक्ति की असावधानी के कारण भी घटनाएं घटित होती हैं।* निमित्त को दोष देना ही हैं तो बुरी बातों में देना चाहिए। धर्म के कारण कभी किसी का बुरा नहीं हो सकता।_
6⃣ _*पंचकल्याणक आदि में जो सौधर्म इंद्र, कुबेर आदि पात्र बनते हैं, उन्हें आहार दान नहीं देना चाहिए। क्योंकि उनमें इंद्र प्रतिष्ठा के माध्यम से देवताओं की स्थापना की गई है। और देवता आहार दान नहीं दे सकते।* ऐसी मेरी व्यक्तिगत धारणा हैं। राजा नाभिराय, राजा श्रेयांस, भरत, बाहुबली आदि जो पात्र बनते हैं वह आहारदान दे सकते हैं, क्योंकि ये मनुष्य होते हैं।_
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_*नोट*- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। *किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।*_
_*📺पूज्य गुरुदेव का जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये - जिनवाणी चैनल पर*_
_*👉🏻सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से*_
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संकलन
*🏵दिलीप जैन, शिवपुरी 🏵*
*9425488836
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