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👉 राजलदेसर: मुनि वृन्द का "मंगल पदार्पण"
👉 सूरत - निःशुल्क चिकित्सा केम्प
👉 चास बोकारो - झारखण्ड की प्रथम ज्ञानशाला का सृजन
👉 सिंधिकेला - "टूटते रिश्ते - बिखरते परिवार" विषय पर सेमिनार आयोजित
👉 तिरूकलीकुण्ड्रम (तमिलनाडु) - " क्या वर्तमान परिपेक्ष में महिलाएं वास्तव में सशक्त है " विषय पर प्रतियोगिता आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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👉 राजलदेसर: मुनि वृन्द का "मंगल पदार्पण"
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 35 - *कैसेट सी. डी. आदि*
*चारित्र आत्मा* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 10* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*श्रमण-भूमिका में प्रवेश*
गतांक से आगे...
विद्वानों ने अपार जन समूह को महावीर की ओर बढ़ते हुए देखा। उनके अहं का नाग फुफकार उठा। उन्होंने सोचा "कोई ऐंद्रजालिक दंभी मायावी आया है वह किसी तंत्र-मंत्र से सबको अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है पर हमारे सामने उसकी क्या हस्ती है? समग्र कांतार को कंपाने वाली पंचानन की दहाड़ के सामने क्या कोई टिक सकता है? पलक झपकते ही हम उसके प्रभाव को मिट्टी में मिला देंगे।" कुछ समय तक ऊहापोह करने के बाद अपने शिष्यों सहित वे ग्यारह विद्वान अपनी अजेय शक्ति की घोषणा करते हुए क्रमशः भगवान् महावीर के समवसरण में पहुंचे। अपनी ज्ञान राशि से वे सर्वज्ञ भगवान् महावीर को अभीभूत करना चाहते थे। परंतु उनका यह प्रयास मुष्टि-प्रहार से भीमकाय चट्टान को चूर्ण करने जैसा व्यर्थ हुआ।
विशाल जनसमूह के बीच भगवान् महावीर उच्चासन पर सुशोभित थे। उनके तेजोदीप्त मुखमंडल की प्रभा देखते ही ब्राह्मण पंडितों के चरण ठिठक गए, नयन चुंधिया गए। हिमालय के पास खड़े होने पर उन्हें अपनी लघुता की अनुभूति हुई। सहस्रांशु की प्रकाश में उन्हें अपना ज्ञान जुगनूं की तरह लगा।
अगाध ज्ञान-सिंधु के स्वामी वे ग्यारह पंडित 1. आत्मा, 2. कर्मवाद, 3. तज्जीव तच्छरीरवाद (शरीर और चैतन्य का भिन्न-अभिन्नत्व), 4. पंचभूतात्मक सत्ता, 5. परलोक में तद्रूप प्राप्ति का भावाभाव, 6. बन्ध-मोक्ष, 7. देव, 8. नरक, 9. पुण्य-पाप 10. परलोक, 11. निर्वाण संबंधी एक-एक शंका में उलझे हुए थे। जैसे हाथियों के मद को चूर्ण करनेवाला शक्तिशाली शेर लोहे की छोटी जंजीर में उलझ जाता है। प्रथम संपर्क में भगवान् द्वारा उच्चारित अपने नाम पुरस्सर संबोधन ने इंद्रभूति गौतम को चौंका अवश्य दिया था, पर तत्काल भीतर का दर्प बोल उठा "मुझे कौन नहीं जानता?" सूर्य को अपने विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती। तदनन्तर भगवान् महावीर से अपनी गुप्त शंकाओं का रहस्योद्घाटन एवं उनका संतोषप्रद समाधान प्राप्त कर इंद्रभूती सहित क्रमशः सभी पंडितों का अभिमान विगलित हो गया। वे भगवान् महावीर के चरणों में फलों से लदी हुई शाखा की भांति झुक गए। पंडितों ने जो सोचा था, उसके विपरीत घटित हुआ। वे समझाने आए थे, स्वयं समझ गए। सिंधु में बिंदु की तरह विराट् व्यक्तित्व में उनका *'स्व'* समाहित हो गया। सर्वतोभावेन भगवान् महावीर के चरणों में समर्पित होकर उन्होंने श्रमण-धर्म की भूमिका में प्रवेश किया। मुनि दीक्षा ग्रहण की। भगवान् महावीर द्वारा यह पहला दीक्षा संस्कार वी. नि. पूर्व 30 ई. पू. 557 (वी. पू. 500) बैशाख शुक्ला एकादशी को हुआ। चतुर्विध धर्म संघ की स्थापना का यह प्रथम चरण था।
*यही ग्यारह पंडित आगे चलकर ग्यारह गणधर बने और सुधर्मा प्रथम आचार्य* यह विस्तार से जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*समवृत्ति श्वास*
नाडी शुद्धि का विकल्प है समवृत्ति श्वास । तीन मास अथवा छः मास तक निरन्तर समवृत्ति श्वास का प्रयोग किया जाए ।
प्रयोग का कालमान कम से कम दस मिनिट होना चाहिए ।
योग साधना के अति अभ्यास अथवा किसी त्रुटि के कारण जो शारीरिक अथवा मानसिक अव्यवस्था हो जाती है उसके लिए यह प्रयोग नाडी शोधन प्राणायाम के समान लाभ प्रदान करता है ।
22 मार्च 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 10📝
*आचार-बोध*
*संयम*
(लावणी)
*28.*
सतरह संयम में प्रथम पांच हैं स्थावर,
त्रस द्वीन्द्रिय आदिक चारों हैं यायावर।
जड़-अजीव प्रेक्षा और उपेक्षा संयम,
उत्सर्ग प्रमार्जन में भी संयम का क्रम।
मन वाणी वपु का संगोपन-संरक्षण,
मुनि करे समायोजन इन सबका क्षण-क्षण।।
*7. संयम के सतरह प्रकार*
*1. पृथ्वीकाय संयम-* पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा से विरत होना।
*2. अप्काय संयम-* अप्कायिक जीवों की हिंसा से विरत होना।
*3. तेजस्काय संयम-* अग्निकायिक जीवों की हिंसा से विरत होना।
*4. वायुकाय संयम-* वायुकायिक जीवों की हिंसा से विरत होना।
*5. वनस्पतिकाय संयम-* वनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा से विरत होना।
*6. द्वींद्रिय संयम-* दो इंद्रिय वाले जीवों की हिंसा से विरत होना।
*7. त्रींद्रीय संयम-* तीन इंद्रिय वाले जीवों की हिंसा से विरत होना।
*8. चतुरिंद्रिय संयम-* चार इंद्रिय वाले जीवों की हिंसा से विरत होना।
*9. पंचेंद्रिय संयम-* पांच इंद्रिय वाले जीवों की हिंसा से विरत होना।
*10. अजीवकाय संयम-* साधना में बाधक या अनावश्यक उपकरण आदि का ग्रहण नहीं करना।
*11. प्रेक्षा संयम-* खड़े होने, बैठने और सोने के स्थान का प्रतिलेखन और प्रमार्जन करना तथा गृहीत उपकरणों के उपयोग में जागरूकता रखना।
*12. उपेक्षा संयम-* संयमी व्यक्ति को संयम-साधना के लिए प्रेरित करना और गृहस्थ के सावद्य कार्यों के प्रति उदासीन रहना।
*13. अपहृत्य संयम-* परिष्ठापन योग्य वस्तु का विधि से परिष्ठापन करना।
*14. प्रमार्जना संयम-* प्रमार्जन करते समय विशेष सावधानी रखना, यतना रखना।
*15. मन संयम-* अकुशल मन का निरोध, कुशल मन की प्रवृति।
*16. वचन संयम-* अकुशल वाणी का निरोध, कुशल वाणी का प्रयोग।
*17. काय संयम-* अवश्य करणीय कार्यों के अतिरिक्त कूर्म की तरह गुप्तेंद्रीय- सुस्थिर रहना।
(समवाओ 17/2)
*भावना के पच्चीस प्रकार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 प्रवचन स्थल: उत्क्रमित मध्य विद्यालय, 'नरहर सराय'
दिनांक - 22/03/2017
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News in Hindi
22 मार्च का संकल्प
तिथि:- चैत्र कृष्णा नवमी
मन में रहेंगे जब संतोष के भाव व्याप्त।
जीवन का मिलेगा तभी आनंद पर्याप्त।।
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