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प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
अनुक्रम - भीतर की ओर
शरीर प्रशिक्षण प्रविधि
शिथिलीकरण से शरीर प्रशिक्षित होता है । वह मन के निर्देशों का पालन करता है । निर्देश देते समय सुखासन की मुद्रा, मेरुदण्ड सीधा, नेत्र मुंदे हुए अथवा अर्द्ध खुले हुए, मौन और दो - तीन क्षण के लिए निर्विचार मनोदशा । इस अवस्था में शिथिल होने के निर्देश को शरीर शीध्र ग्रहण कर लेता है ।
शिथिलीकरण के परिणाम ------
1. मस्तिष्क को विश्राम
2. नाडी संस्थान को विश्राम
3. प्रत्येक कोशिका को विश्राम
4. सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से बाहर निस्सरण
प्रवृति और प्रवृत्तिजनित तनाव की अवस्था में होने वाली शारीरिक और मानसिक शक्ति का व्यय शिथिलीकरण की अवस्था में अपने आप रुक जाता है ।
24 मार्च 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 नागपुर - "क्या महिलाएं वास्तव में सशक्त है" विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन
👉 कटक - स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम आयोजित
👉 अणुव्रत समिति दिल्ली - मार्च का महा प्रकल्प
👉 राजनांदगांव - स्वागत एव अभिनन्दन कार्यक्रम आयोजित
👉 सुजानगढ़: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा "कीप ड सिटी क्लीन वाल्केथोन" का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 12📝
*आचार-बोध*
*भावना*
गतांक से आगे...
*अचौर्य*
*33.*
मितावग्रह की अनुज्ञा और हो सीमाकरण,
पुनः पुनराज्ञा स्वयं साधर्मिकों का स्वीकरण।
पान भोजन समुच्चय का अनुज्ञा से काम में,
पुष्ट हो अभ्यास नित अस्तेय के आराम में।।
*3. अचौर्य महाव्रत कि पांच भावनाएं--*
*1. अवग्रह अनुज्ञापन--* स्थान के लिए गृहस्वामी से आज्ञा लेना।
*2. अवग्रह सीमाज्ञान--* गृहस्वामी द्वारा अनुज्ञात स्थान की सीमा को जानना।
*3. स्वयमेव अवग्रह अनुज्ञापन--* अनुज्ञात स्थान में रहना।
*4. साधर्मिक अवग्रह अनुज्ञाप्य परिभोग--* साधार्मिकों द्वारा याचित स्थान में उनकी आज्ञा से रहना।
*5. साधारण भक्तपान अनुज्ञाप्य परिभोग--* समुच्चय के आहार-पानी आदि का आचार्य की आज्ञा से परिभोग करना।
*ब्रह्मचर्य*
(लावणी)
*34.*
एकांतवास वैषयिक कथा का वर्जन,
चक्षुःसंयम स्मृतिसंयम का हो अर्जन।
अतिमात्र प्रणित भोज्य से बचता जाए,
मुनि ब्रह्मचर्य की पांच भावना भाए।।
*4. ब्रह्मचर्य महाव्रत की पांच भावनाएं--*
*1.* स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण स्थान में नहीं रहना।
*2.* कामकथा का वर्जन करना।
*3.* वासना को उत्तेजित करने वाली इंद्रियों के अवलोकन का वर्जन करना।
*4.* पूर्वभुक्त और पूर्व क्रीड़ित कामभोगों की स्मृति का वर्जन करना।
*5.* प्रणीत-गरिष्ठ भोजन का वर्जन करना।
*अपरिग्रह*
*35.*
अमनोज्ञ मनोज्ञ शब्द रस रूप प्रभृति में-
समता, अपरिग्रह की आभा आकृति में।
पच्चीस भावना महाव्रतों का पोषण,
तप अनुष्ठान से पाप-पंक का शोषण।।
*5. अपरिग्रह महाव्रत की पांच भावनाएं--*
*1.* श्रोत्रेंद्रीय के राग से उपरत होना।
*2.* चक्षुःइंद्रिय के राग से उपरत होना।
*3.* घ्राणेंद्रिय के राग से उपरत होना।
*4.* रसनेंद्रीय के राग से उपरत होना।
*5.* स्पर्शनेंद्रिय के राग से उपरत होना।
(समवाओ 25/1)
*सामाचारी* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 37 - *चारित्र आत्मा*
*चारित्र आत्मा* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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24 मार्च का संकल्प
तिथि:- चैत्र कृष्णा एकादशी
नमस्कार महामंत्र मंगलकारी ।
सर्व दोष - बाधा - विघ्न हारी ।।
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