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हमारे पास चीज़ों का होना और उन चीज़ों का उपयोग करना बुरी बात नहीं है, लेकिन उन चीज़ों के माध्यम से
अपने आप को बड़ा मानना, बड़ा दर्शाना ही हमारी कमजोरी है। जब भी हम कुछ हासिल करें तो अपने जीवन में उसका आनंद लें।
जो जितना साधारण है, वो उतना ही असाधारण है और जो जितना असाधारण बनने की कोशिश करता है, वह उतना ही साधारण होता है।
- मुनिश्री क्षमासागर के *"मार्दव धर्म"* के प्रवचन से
आचार्य गुरुवर *विद्यासागर* जी के परम प्रभावी अनमोल शिष्य मुनिश्री *क्षमासागर* जी महाराज के दसलक्षण के प्रवचनों को मैत्री समूह द्वारा *गुरुवाणी* पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है
मुनिश्री के दसलक्षण धर्म की पुस्तक और DVD आप मैत्री स्टोर (Maitree Store) से प्राप्त कर सकते हैं।
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जब #मुनिसुधासागरजी कोटा में विराजमान थे और भक्ति की गंगा में जैन जैनेतर सभी लोग सराबोर हो रहे थे उन्ही दिनों में अमेरिका से भारत भ्रमण को आये एक घुमंतू किश्म के हिंदी भाषी अमेरिकी ने जब कोटा की धरती पर कदम रखा और एक टैक्सी वाले से पूछा कि यहाँ देखने और घूमने लायक कोन कोन से स्थान है...???
टैक्सी वाले ने जो उत्तर दिया उसे सुन कर सचमुच मन आनंदित हुए बगैर नही रहा उसने कहा कि वैसे तो कोटा नगर की बात ही निराली है यहाँ देखने और घूमने के लिये जगह पूछना नही पड़ता जिस गली और डगर पँर निकल जाए सब कुछ देखने लायक ही दिखाई देता है यह राजस्थानी सभ्यता का एक ऐसा देश है जहाँ सारे देश के बच्चे आकर बिद्याध्यन करते है जो इस शहर के गौरव को बढ़ाता है वेसे तो सात अजूबो को यहां बहुत लोग दूर दूर से देखने आते है कोटा बाँध और कोटा रिवर में चलने वाले स्टीमर भी यहाँ के सौंदर्य को बहुत बढ़ाते है चंबल गार्डन की तो बात ही निराली है दिन का तो पता ही नही चलता कब गुजर जाता है किंतु, किन्तु,इतना कहते ही वह चुप हो गया और अंग्रेज को लगा जैसे वह कुछ और बताने की कोशिश कर रहा है लेकिन बता नही रहा तो उसने भी कहा किन्तु क्या*
तब टैक्सी wale ने कहा जैनों के दिगम्बर संत जिन्हें जगत पूज्य मुनि पुंगव की उपाधि से नवाजा गया है यहां पधारे हुए है और में रोजाना कई सारी सवारियो को केवल उनके ही दर्शन कराने ले जाता हूं मुझे भी उनके दर्शनों का सौभाग्य मिल जाता है और ऐसा करने में मुझे लगता है जैसे मेने साक्षात भगवान् के दर्शन कर लिये है_
इतनी प्रशंसा सुन जिज्ञाषा वश अंग्रेज भी पहले कोटा की दादावाणी जैन नसिया आ गया और जैन मुनि सुधा सागर जी महाराज के दर्शनों को पाने की कोशिश करने लगा प्रवचन का समय था जगत पूज्य भगवान् के प्रति समर्पित रहने वाली बात को समझा रहे थे वह अंग्रेज वही बैठ प्रवचन सुनने लगा उसे जैसे एक एक शब्द अमृत समान लग रहा था और वह भी बहुत दूर से चल कर आ रहे प्यासे पथिक की तरह अमृत का पूरा पान किये जा रहा था*
_प्रवचन की समाप्ति के पश्चात वह एक कोने में खड़े होकर गुरुदेव को अपलक निहारता रहा उसे देख कर कुछ पल तो सचमुच ऐसा लगा जैसे कोई पुतला खड़ा कर दिया गया हो कुछ देर बाद उसे गुरुदेव की आहारचर्या भी देखने का सौभाग्य मिल गया तब भी वह बड़े आश्चर्य के साथ खड़ा हुआ सारी क्रियाओं को देखता रहा और स्मरण को बनाये रखने के लिये अपने कैमरे से अच्छी तस्वीरे भी निकालता रहा
*आहारचर्या के बाद जब मुनि श्री अपने कक्ष के बाहर बैठे हुए थे तब उसने चरण छूने की कोशिश की और जैसे ही वह चरणों को छूने को हुआ त्यों ही उसे उन चरणों की कठोरता का अहसास हुआ उसे लगा जैसे उसने किसी लकड़ी के पाटे को छू लिया है तब उसने नीचे चरणों की और दृष्टि करते हुए पुनः छुआ जैसे ही छुआ उसे पंजो के अग्र भाग में एक बड़ी सी दरार दिखाई दी जिसमे कुछ कंकड़ भरे हुए थे जो निकलने वाले रक्त से मिलकर पीले की जगह लाल ही दिखाई देने लग गए थे
_वह अंग्रेज अपने घुमक्कड़ स्वभाव के कारण कई स्थानों पर जा चूका था लेकिन उसने ऐसे अलबेले संत के दर्शन कभी नही किये थे उससे जब रहा नही गया तो आखिर उसने पूछ ही लिया गुरुदेव आपके पैरों में इतनी बड़ी दरार है उसमें कंकड़ भी भरे है रक्त भी निकल रहा है आप चल भी रहे है फिर भी दर्द आपके चेहरे पर कही दिखाई नही दे रहा है ऐसा क्यों_
*जगत पूज्य ने जो उत्तर दिया मन आस्था से चरणों में स्वतः झुकता चला गया उन्होंने कहा साधू जीवन में यदि कठिनता नही आये तो समाधि के समय हम भटक सकते है यह तो साधना का वह चरम समय है जब हमे अपनी फिक्र ही नही करनी चाहिये भेद विज्ञान को समझते हुए अपने अंतिम लक्ष्य की और बढ़ना चाहिये जिसके लिये पथ अंगीकार किया यदि हम उसे ही भुला दे तो जीवन के अंत में हम अपने आपको सम्हाल कैसे पाएंगे*
_जगतपूज्य की चर्या को देख उनके वचनों को सुन वह इतना अधिक प्रव्हावित हुआ कि उसने अपने जीवन से समस्त बुराइयो को निकाल कर एक अच्छे इंसान के रूप में जीवन को बिताते हुए अंतिम लक्ष्य को मुनि श्री के चरणों में बिताने का संकल्प भी लिया और मुनि पुंगव की जय जय कार की!!
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