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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 45 - *टालोकर*
*उपक्रम प्रारम्भ, कार्यक्रम निर्धारण व गुरुकुलवास आयोजन आदि* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 20* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*
गतांक से आगे...
एक दिन धारिणी के गर्भ में तेजस्वी विद्युन्माली देव का जीव अवतीर्ण हुआ। उस समय धारिणी ने स्वप्न में श्वेतसिंह को देखा। जसमित्र नामक निमितज्ञ ने धारिणी को बताया था "जिस दिन पुत्र का गर्भावतार होगा, तुम श्वेतसिंह का स्वप्न देखोगी।" निमितज्ञ के द्वारा की गई घोषणा के अनुसार धारिणी को विश्वास हो गया कि वह अवश्य ही एक दिन सिंहशावक के समान शक्तिशाली पुत्र को जन्म देगी।
धारिणी शिष्ट, सुदक्ष और सुशिक्षित नारी थी। वह जानती थी, गर्भस्थ डिंब माता से केवल भोजन ही ग्रहण नहीं करता, अपितु जननी के आचार-विचार व्यवहार के सूक्ष्म संस्कारों को भी ग्रहण करता है। सदाचारिणी माता की संतान अधिकांशतः सदाचारिणी होती है। मनोविज्ञान की इस भूमिका से सुविज्ञ धारिणी गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने के लिए विशेष संयम से रहने लगी और जागरूक रहकर धर्माराधना करने लगी।
गर्भ-स्थिति पूर्ण होने पर स्वप्न के अनुसार धारिणी ने तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया। माता ने गर्भधारण की स्थिति में जम्बू नामक द्विपाधिपति देव की 108 आयंबिल तप के साथ आराधना की, अतः शुभमुहूर्त एवं उल्लासमय वातावरण में बालक का नाम जम्बू रखा गया। कथान्तर के अनुसार माता धारिणी ने जम्बू की गर्भावस्था में जम्बू वृक्ष को देखा था, अतः पुत्र का नाम जम्बू रखा गया।
बालक जम्बू रुचिसंपन्न और तेजस्वी था। अनुक्रम से जम्बू के जीवन का विकास हुआ। सोने के चम्मच से दुग्धपान करने वाला और मखमली गद्दों में पलने वाला शिशु संयमपथ का पथिक बनेगा यह किसने सोचा?
अत्यंत सुकुमार और सरल स्वभावी जम्बू ने किशोरावस्था में प्रवेश पाया। उनके जीवन में विनय आदि अनेक गुण विकसित हुए। यौवन के द्वार पर पहुंचने पर जम्बू का देदीप्यमान रूप खिल गया। काम को अभिभूत करने वाली आठ रूपवती कन्याओं के साथ जम्बू का लगभग 16 वर्ष की अवस्था में संबंध तय कर दिया गया था।
जीवन में कभी-कभी ऐसे सुनहरे क्षण आते हैं जो जीवन को सर्वथा नया मोड़ देने वाले होते हैं। एक दिन जम्बू ने मगध सम्राट् श्रेणिक के गुणशील नामक उद्यान में आचार्य सुधर्मा का भवसंतापहारी प्रवचन सुना। जम्बू के सरल हृदय पर अध्यात्म का गहरा रंग चढ़ गया।
जन्म-जन्मांतर की अनंतकालिक अविच्छिन्न परंपरा को उच्छिन्न करने के लिए जम्बू उद्यत हुआ।
आचार्य सुधर्मा के पास जाकर जम्बू ने प्रार्थना की "महामहिम मुनीश! मुझे आपकी वाणी से भौतिक सुखों की विनश्वरता का बोध हो गया है। मैं अब शास्वत सुख प्रदान करने वाले संयम मार्ग को ग्रहण करना चाहता हूं।"
आचार्य सुधर्मा भव-भ्रमण भेदक दृष्टि का बोध कराते हुए बोले "श्रेष्ठि-पुत्र! संयम जीवन अत्यंत दुर्लभ है। धीर पुरुषों के द्वारा यही पथ अनुकरणीय है। तू पल भर भी प्रमाद मत कर।"
जम्बू का मन शीघ्रातिशीघ्र भूमि जीवन में प्रविष्ट होने के लिए उत्सुक था, परंतु सद्यःदीक्षित हो जाना जम्बू के वश की बात नहीं थी। इस मोहब्बत पर बढ़ने के लिए अभिभावकों की आज्ञा आवश्यक थी।
*क्या जम्बू के अभिभावकों ने यह कठिन संयम मार्ग स्वीकार करने की आज्ञा दी...?* जानने के लिए पढ़ें... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 20📝
*आचार-बोध*
*आहार ग्रहण के हेतु*
लय- वन्दना आनन्द...
*55.*
क्षुधा वैयावृत्त्य इर्या और संयम आचरे।
प्राणधारण धर्म-चिंतन हेतु मुनि भोजन करे।।
*14. आहार ग्रहण के 6 हेतु*
*1. वेदना--* भूख की पीड़ा मिटाने के लिए।
*2.* वैयावृत्य करने के लिए।
*3.* संयम की रक्षा के लिए।
*4.* इर्या-समिति का पालन करने के लिए।
*5.* प्राणधारण के लिए।
*6.* धर्म-चिंता के लिए।
(ठाणं 6/41)
*आहार परिहार के हेतु*
लय- वन्दना आनन्द...
*56.*
उपद्रव आतंक ब्रह्मव्रत दया-हित संवरे।
तपस्या तन-विसर्जन के लिए अशन नहीं करे।।
*15. आहार परिहार के 6 हेतु*
*1. आतंक--* ज्वर आदि आकस्मिक बीमारी हो जाने पर।
*2.* राजा आदि का उपसर्ग हो जाने पर।
*3.* ब्रम्हचर्य की सुरक्षा के लिए।
*4.* प्राणिदया के लिए।
*5.* तपस्या के लिए।
*6.* शरीर का व्युत्सर्ग करने के लिए।
(ठाणं 6/42)
*परिषह* के बारे में विस्तार से जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*शक्ति केन्द्र के जागरण की प्रक्रिया -- [ 3 ]*
विशुद्धि केन्द्र शक्ति का तीसरा स्रोत है । यह थायराइड ग्लैण्ड का संवादी केन्द्र है । इसी स्थान पर चयापचय की क्रिया होती है । इसलिए यह जीवनी शक्ति का मुख्य स्रोत बन जाता है ।
विशुद्धि केन्द्र की जागृति का शरीरिक लाभ है --- वृद्धत्व को रोकना । आध्यात्मिक लाभ है -- वृत्तियों का परिष्कार । वैराग्य और पदार्थ के प्रति होने वाली अनासक्ति के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योग है ।विशुद्धि केन्द्र को जागृत करने के लिए अधिक साधना की आवश्यकता है।
3 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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