Update
*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 बढ़ती गर्मी में भी आचार्यश्री ने किया लगभग 15 किलोमीटर का विहार
👉 आचार्यश्री के चरणरज से पावन हुआ महानन्दपुर का आदर्श मध्य विद्यालय प्रांगण
👉 *ज्ञान, धर्म, त्याग, संयम और तप में आगे बढ़ने के लिए आचार्यश्री ने प्रदान की प्रेरणा*
👉 आचार्यश्री के आह्वान पर ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
दिनांक 07-04-2017
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👉 जयपुर - शासन स्तम्भ मंत्री मुनि श्री का जयपुर शहर में प्रवेश
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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08 अप्रैल का संकल्प
*तिथि:- चैत्र शुक्ला द्वादशी*
अ.भी.रा.शि.को.उदारी हो,धर्ममूर्ति धुन धारी हो।
विध्नहरण वृद्धिकारी हो, सुख संपत्ति दातारी हो।।
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का वीडियो:
👉 *विषय - तनाव - कारण व निवारण*
भाग -2
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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👉 मुम्बई - तेरापंथ समाज की उभरती प्रतिभा
👉 रतनगढ़ - धार्मिक प्रतियोगिताओं का आयोजन
👉 बालोतरा - सामूहिक आयम्बिल का आयोजन
👉 किशनगढ़ - त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
👉 चित्तोड़गढ़ - जैन संस्कार संस्कारक प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित
👉 राजगढ़-सादुलपुर अणुव्रत समिति का गठन
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दिनांक 07- 04- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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Update
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 49 - *अधिवेशन आदि*
*सम्मान* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*विशुद्धि केन्द्र*
इसका स्थान कण्ठ का मध्य भाग है । हठयोग में भी इसकी संज्ञा विशुद्धि चक्र है । तीन शक्ति केन्द्रों में यह सर्वोपरि है ।
वृत्तियों के परिष्कार का यह बहुत बडा माध्यम है । इसे बुढापे को रोकने वाला माना जाता है । शरीर शास्त्रीय दृष्टि से चयापचय की क्रिया का संबंध कण्ठमणि (थायराइड ग्लैण्ड) से है । वह विशुद्धि केन्द्र के परिपार्श्व में है । चयापचय की क्रिया का संतुलन वृद्धावस्था को रोकने में सहायक बन सकता है ।
7 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 24📝
*आचार-बोध*
*शबल*
(लावणी)
*64.*
जो हस्तकर्म मैथुन निशि-भोजन करते,
आधाकर्मी शय्यातर पिण्ड निगरते।
औद्देशिक क्रीत सामने लाया लेते,
जो बार-बार पचखाण तोड़ खा लेते।।
*65.*
छहमासी बीच दूसरे गण में जाए,
इकमासे तीन उदक के लेप लगाए।
सेवे मायापद तीन महीना भर में,
ले राजपिंड राज्यभिषेक अवसर में।।
*66.*
अभिमुखता से हिंसा असत्य वच बोले,
जो करे अदत्तादान पाप पथ खोले।
अव्यवाहित भू पर स्थान निषद्याकारी,
जल सहित और रज सहित भूमि संचारी।
जीवाश्रित भूमि आदि पर बैठे सोए,
खाकर सलक्ष्य मूलादिक संयम खोए।।
*67.*
संवत्सर भर में दस जल लेप लगाए,
होकर प्रमत्त दस मायास्थान बनाए।
पुनि-पुनि अप्रासुक जल से गीले कर हों,
उनसे ले अशन-पान भोगे मुनिवर हो।।
*68.*
ये एकबीसविध शबल सदोष श्रमण हैं,
मौलिक चरित्र का करते अतिक्रमण हैं।
चितकबरा-सा संयम उनका हो जाता,
सब शैक्ष बनो पावन जीवन संधाता।।
*शबल इन इक्कीस दोषों* के बारे में विस्तार से जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 24* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*
गतांक से आगे...
दिगंबर परंपरा मैं कवि 'वीर' रचित 'जम्बू स्वामी चरित्र' के अनुसार जम्बू के पिता का नाम अर्हद्दास और माता का नाम जिनमती था। युवावस्था में जम्बू का पद्मश्री, कनकश्री, विनयश्री, रूपश्री इन चार श्रेष्ठी कन्याओं के साथ विवाह किया।
उल्लासमय वातावरण में विवाह-विधि अक्षय तृतीया के दिन संपन्न हुई। प्रचुर धनराशि में दहेज में वर-वधू को प्रदान की गई। मनमोहक सुहागरात में चारों पत्नियों ने अनेक प्रकार के हाव-भाव से जम्बू को मोहित करने का प्रयत्न किया, पर जम्बू अपने निश्चय पर अटल था। उस रात हस्तिनापुर के प्रतापी राजा विश्वंभर और महारानी श्रीषेणा का पुत्र विद्युच्चर चोरी करने के लिए श्रेष्ठी अर्हद्दास के घर में अपने 500 साथियों सहित चोरी करने घुसा। महापुराण ग्रंथ के अनुसार विद्युच्चर पोदनपुर के राजा विद्युतराज एवं रानी विमलमती का पुत्र था।
श्रेष्ठी अर्हद्दास के घर में धन बटोरता हुआ विद्युच्चर चोर जम्बू के शयन-कक्ष तक पहुंच गया। नवविवाहित जम्बू और उसकी पत्नियों के बीच हो रहे वार्तालाप को सुनने के लिए दीवार से सटकर खड़ा हो गया। अपने कान उसने कपाट से सटा दिए।
किसलय-सी सुकुमार कामिनियों के बीच जम्बू स्थिर योग मुद्रा में बैठा था। वैराग्य भाव एवं सौम्य भाव की तरंगों से प्रासाद का वातावरण तरंगायमान था। विद्युच्चर ने ऐसा दृश्य पहली बार देखा था। जम्बू की महान कल्याणकारी वाणी को सुनकर वह ठिठक गया। उसे पहली बार अध्यात्म की सच्चाई का अनुभव हुआ।
जम्बू की माता जिनमती पुत्र के वैराग्य से चिंतित, उद्भ्रांत और खिन्न-सी थी। नववधूएं अपने राग-पाश में जम्बू को बांधने में सफल हुईं या नहीं यह जानने के लिए वह जम्बू के शयन-कक्ष के पास आई। उसने दीवार से सटकर खड़े व्यक्ति को देखा और निडरभाव से बोली "अंधेरे में छुपकर कौन खड़ा है?" तभी विद्युच्चर ने जिनमती से कहा "मां! में विद्युच्चर नाम का प्रसिद्ध चोर हूं। मेरी समझ में ऐसा कोई घर नहीं है जिसे मैंने नहीं लूटा। एक तेरा ही घर बचा है जहां मैं आज चोरी करने के लिए आया हूं।"
जिनमती बोली "पुत्र जो तुझे जरूरत है वह ले जाओ। मेरा यह इकलौता कुलदीप प्रभात होती मुनि दीक्षा ग्रहण करने वाला है। अब हमें अधिक धन से क्या प्रयोजन है?" विद्युच्चर बोला "मां! तेरे पुत्र और पुत्र-वधूओं की अध्यात्म चर्चा सुनकर और जम्बू के सौम्य चेहरे को दूर से ही देख कर मेरा मन बदल गया है। मैं अब चोरी नहीं करूंगा। एक बात और बता देता हूं मैं वशीकरण, स्तंभन सम्मोहन विद्या को जानता हूं, आप मुझे जम्बू तक पहुंचा दो। मैं उसे भोगों के वशवर्ती बनाने में समर्थ हूं।"
विद्युच्चर की बात सुनकर जिनमती को आश्वासन मिला, उसने शयन-कक्ष के द्वार खटखटाए। पुत्र को संबोधित करती हुई वह बाहर से बोली "जम्बू! तुम्हारे मामा आए हैं। उनका यहां आना तुम्हारे जन्म के बाद पहली बार हुआ है। आज रात को ही वह लौट जाने वाले हैं। अतः अपने मामा का सम्मान करो और उनसे मिलो।" जिन मति की सहायता से विद्युच्चर जम्बू के समीप पहुंच गया। जम्बू ने मामा समझ कर उसका सम्मान किया। चारों नवविवाहित वधुओं, विद्युच्चर चोर तथा जम्बू कुमार के बीच रोचक संवाद चला, अंत में जम्बू की विजय हुई। विद्युच्चर ने भी अपना असली परिचय दिया और वह जम्बू के साथ मुनि दीक्षा लेने को तैयार हो गया।
*अभिनिष्क्रमण और दीक्षा तथा जम्बू के मुनि जीवन* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल - मध्य विद्यालय "महानंदपुर" में*
👉 *गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..*
👉 *आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक - 07/04/2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 रोहतक - मुनि श्री किशनलाल जी द्वारा अक्षय तृतीया भिवानी में करने की घोषणा
👉 सेलम - मुनिश्री का मंगल प्रवेश
👉 भुज - "कैसे रहे स्वस्थ परिवार एवं स्वस्थ समाज" कार्यक्रम आयोजित
👉 दक्षिण हावड़ा - क्या वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिलाएँ वास्तव में सशक्त है" विषय पर कार्यशाला आयोजित
👉 गदग - कन्या सुरक्षा सर्किल निर्माण हेतु भूमि पूजन
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 48 - *गुरुकुलवास आयोजन*
*अधिवेशन आदि* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 23* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*
गतांक से आगे...
अपने माता पिता की प्रसन्नता हेतु जम्बू ने विवाह किया था। उत्सव के इस प्रसंग पर विविध वाद्यों की मनमोहक झंकार, कोकिलकंठों से उठते संगीत एवं गुलाबी रंग में उछलती खुशियां विरक्त जम्बू के मन को मुग्ध नहीं कर सकी।
जम्बू को दहेज में प्राप्त भारी अर्थ राशि की चर्चा सुनकर निशा के समय अपने साथियों सहित चोर सम्राट प्रभव ऋषभदत्त के घर पहुंच गया।
रात्रि के नीरव वातावरण में संसार नींद की गोद में सोया हुआ था, पर ऋषभदत्त के घर भारी हलचल थी।
एक ओर प्रभव प्रमुख पांच-सौ चोर घर में घुसकर दहेज में प्राप्त प्रचुर धनराशि को तत्परता से बटोर रहे थे। दूसरी ओर ऋषभदत्त के उपरितन प्रासाद में अप्सरा-सी आठों पत्नियों के मध्य बैठा जम्बू राग-भरी रजनी में त्याग और विराग की चर्चा कर रहा था।
समुद्रश्री आदि आठ कन्याओं ने मूर्ख किसान बक, वानर-युगल, नूपुर-पंडिता, विलासवती, शंख-धमक, बुद्धि-सिद्धि, ग्रामकूट-पुत्र, मा-साहस पक्षी, चतुर-ब्राह्मण, कन्या नागश्री ये आठ कथाएं क्रमशः जम्बू को संसार में मुग्ध करने के लिए कही। जम्बू ने भी काकपक्षी, अंगार-दाहक, मेघरथ, विद्युन्माली, यूथपति-वानर, जात्यश्व, घोड़ी-पालक, तीन मित्र, ललितांग, तीन वणिक और खदानें, आख्यान-चिंतामणि (द्रव्याटवी भवाटवी) इन कथाओं के द्वारा पत्नियों के मन का समाधान किया।
समुद्रश्री आदि आठों पत्नियों ने क्रमशः एक-एक कथा कही। जम्बू ने भी प्रत्येक कथा के उत्तर में एक-एक कथा कही। अंतिम दो कथा अधिक कहकर सबको वैराग्य रस से परिप्लावित कर दिया। जम्बू के प्रत्येक स्वर में अन्तर्मुखता की लहर उठ रही थी। कामिनियों के काम-बाण जम्बू को पराभूत करने में निष्फल रहे। वनिताओं का विकार भाव उसके चित्त को तथा चतुर चोरों का दल उसके वित्त को हरण नहीं कर सका। प्रत्युत् जम्बू द्वारा आध्यात्म चर्चा से मृगनयनी आठों पत्नियों के मानस का अंधकार मिट गया। वासनासक्ति क्षीण हो गई। वे जम्बू के साथ दीक्षित होने को तैयार हो गईं। बढ़ती हुई वैराग्य की सबल तरंगों ने सारे वातावरण को बदल दिया। ऋषभदत्त, धारिणी, आठों पत्नियों के माता-पिता और पांच-सौ चोरों का एक विशाल दल भी संयम के पथ पर बढ़ने के लिए तैयार हुआ।
*दिगंबर परंपरा में कवि विरचित जम्बू स्वामी चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 23📝
*आचार-बोध*
*17. असमाधि स्थान*
गतांक से आगे...
असमाधि का अर्थ है मानसिक अशांति। जिस आचरण से असमाधि होती है, उसे असमाधिस्थान कहा जाता है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं। प्रस्तुत संदर्भ में मुनि के जीवन-व्यवहार में संभावित कारणों के आधार पर असमाधि स्थानों की चर्चा की है। कारण में कर्ता का उपचार करने से असमाधि करने वाले के लिए ही असमाधि स्थान शब्द प्रयुक्त हुआ है। यहां असमाधि के बीच स्थान बतलाए गए हैं--
*1.* शीघ्र गति से चलने वाला।
*2.* प्रमार्जन किए बिना चलने वाला।
*3.* अविधि से प्रमार्जन कर चलने वाला।
*4.* प्रमाण से अधिक शय्या, आसन आदि रखने वाला।
*5.* रत्नाधिक साधुओं का तिरस्कार करने वाला।
*6.* स्थविरों का उपघात करने वाला।
*7.* प्राणियों का उपघात करने वाला।
*8.* प्रतिक्षण क्रोध करने वाला।
*9.* अत्यंत क्रुद्ध होने वाला।
*10.* परोक्ष में अवर्णवाद बोलने वाला, चुगली करने वाला।
*11.* बार-बार निश्चयकारी भाषा बोलने वाला।
*12.* अनुत्पन्न नए कलहों को उत्पन्न करने वाला।
*13.* पूर्णतः समाप्त और उपशांत पुराने कलहों की उदीरणा करने वाला।
*14.* सचित्त रज से लिप्त हाथ से भिक्षा लेने वाला और सचित्त रज से लिप्त पैरों से अचित्त भूमि में संक्रमण करने वाला।
*15.* अकाल में स्वाध्याय करने वाला।
*16.* कलह करने वाला।
*17.* बकवास करने वाला।
*18.* गण में भेद डालने वाला।
*19.* सूर्योदय से सूर्यास्त तक बार-बार भोजन करने वाला।
*20.* एषणा समिति का पालन नहीं करने वाला।
(समवाओ 20/1)
*शबल* के बारे में विस्तार से जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*आनन्द केन्द्र*
हठयोग में इसे अनाहत चक्र कहते हैं । आध्यात्मिक विकास का वास्तविक क्रम इसी केन्द्र से शुरु होता है । नीचे के तीनों केन्द्र परिष्कृत होने पर साधना में सहायक बनते हैं । शक्ति केन्द्र ऊर्जा का केन्द्र है । स्वास्थ्य केन्द्र वृत्तियों को उत्तेजित करने वाली मस्तिष्कीय चेतना का केन्द्र है ।तैजस केन्द्र प्राण के उत्पादन का केन्द्र है । सामान्य सामाजिक जीवन की यात्रा के लिए ये तीनों कार्यकारी है । चेतना के उदात्तीकरण का आरम्भ बिन्दु आनन्द केन्द्र है ।
6 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14.6 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - मध्य विद्यालय "महानंदपुर"*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 07/04/2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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