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👉 गंगाशहर - "आचार्य तुलसी एवं अम्बेडकर” में समानता विषय पर संगोष्ठी आयोजित
👉 सुजानगढ़ - वर्षीतप अभिनन्दन कार्यक्रम
👉 सूरत - सक्षम कार्यशाला व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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16 अप्रैल का संकल्प
*तिथि:- वैशाख कृष्णा पंचमी*
अरहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-साधु को नित ध्याएं ।
द्रव्य नहीं भाव पूजा कर गुण सुमिरन से उन्नति पाएं ।।
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 56 - *पर्युषण, अठाई आदि तपस्या*
*चारित्रात्माओं के प्रवेश व जुलूस* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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News in Hindi
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*श्रावक सन्देशिका*
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👉 श्रृंखला - 56 - *पर्युषण, अठाई आदि तपस्या*
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 31📝
*संस्कार-बोध*
*संस्कारों का महत्त्व बतलाते दोनों में प्रयुक्त कुछ उदाहरणों का विस्तृत विवेचन*
*1. मुद्गशैल पाषाण ज्यों*
जंगल में मुद्गशैल नाम का एक छोटा-सा पाषाण था। उसने सुना कि पुष्करावर्त महामेघ उसके अस्तित्व को समाप्त कर सकता है। उसका स्वाभिमान जगा। उसने महामेघ को चुनौती देते हुए कहा-- 'तुम मुझे तिल-तुष मात्र भी खंडित कर दो तो मैं अपना मुद्गशैल नाम छोड़ दूंगा।' महामेघ उसके बौनेपन पर मन-ही-मन हंसा। उसने मुसलाधार रूप में बरसना शुरू किया। वह सात दिन-रात बिना रुके बरसा। पृथ्वी जलमग्न हो गई। महामेघ ने विश्राम किया। धीरे-धीरे पानी उतरा। महामेघ ने सोचा-- मुद्गशैल पाषाण नष्ट हो गया होगा। वह उसे देखने गया। नष्ट होना तो दूर, वह गीला तक नहीं हुआ। लगातार पानी बरसने से उस पर जमी धूल उतर गई। वह शतगुणित आभा से चमकने लगा। पुष्करावर्त को सामने देख वह बोला-- 'महामेघ! जय जिनेंद्र। मैं मुद्गशैल पाषाण आपका स्वागत करता हूं।' पुष्करावर्त मेघ मौन हो कर चला गया।
मुद्गशैल पाषाण पर पानी का किंचित् भी प्रभाव नहीं पड़ा। इसी प्रकार रूढ़ व्यक्तियों को संस्कार और शिक्षा देने के सारे प्रयत्न व्यर्थ चले जाते हैं। वे कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाते।
*2. संस्कारी सुविनीत का*
उक्त पद्य में दो घटनाओं का संकेत है। प्रथम घटना का संबंध युवाचार्य भारिमालजी से है और दूसरी का मुनि मघवा से। वे अपने गुरु के प्रति समर्पित, संस्कारी और सुविनीत थे। उनके बारे में उनके गुरुओं-- आचार्य भिक्षु और जयाचार्य ने जो शब्द कहे, वे उल्लेखनीय हैं।
(क) आचार्य भिक्षु ने एक दिन प्रसंगवश शिष्य भारिमालजी के सौभाग्य की सराहना करते हुए कहा-- 'हमारे भारिमालजी (युवाचार्य) बड़े भागी हैं। अब तक इनके सामने काम करने वाले हम थे। कहीं भी चर्चा, वार्ता या चिंतन का काम पड़ा, इन्हें किसी प्रकार का श्रम नहीं हुआ। अब यह हेमड़ा (मुनि हेमराजजी) हो गया है। कभी कोई गहरी चर्चा का प्रसंग सामने आएगा तो यह संभाल लेगा।'
*दूसरी घटना* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*दर्शन केन्द्र --[ 2 ]*
पीयूष ग्रन्थि का गोनाडोट्राॅफिन हार्मोंस कामग्रन्थि (Gonads) को प्रभावित करता है तब वासना जागती है । उसको नियंत्रित किया जाए तो काम वासना अपने आप शांत हो जाती है । उस स्राव का नियंत्रण दर्शन केन्द्र पर ध्यान करने से होता है ।
दर्शन केन्द्र में स्थूल और सूक्ष्म चेतना का संगम होता है । जागृत अवस्था में स्थूल और सूक्ष्म चेतना का स्थान भूमध्य में आंखों के पीछे की ओर है । अर्द्धचेतना अवस्था में कण्ठ के पास है और गहरी नींद में नाभि मे है ।
15 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 31* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*परिव्राट्-पुंगव आचार्य प्रभव*
गतांक से आगे...
मृगनयनियों की कुंतलालंकृत रूपछटा काली घटाओं में चमके विद्युत की तरह प्रभव की आंखों में कौंध गई। जम्बू के कांतिमान भाल को देखकर प्रभव अत्यधिक प्रभावित हुआ। नवोढाओं का मधुर संवाद सुनने के लिए स्तेन-सम्राट ने अपनी कान दीवार से सटा दिए। सुहाग की प्रथम रात में पति पति-पत्नियों के मध्य अध्यात्म की विशद चर्चा चल रही थी। राग के समय विरक्ति के स्वर उसके कानों से टकराए। प्रभव ने सोचा 'यह असाधारण पुरुष है।' वह जम्बू के सामने जाकर खड़ा हो गया और अपना परिचय देते हुए बोला 'मैं चोराधिपति प्रभव हूं। आपके सामने मैत्री स्थापित करने की भावना से प्रस्तुत हूं। मैं अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी विद्याएं आपको अर्पित कर रहा हूं। आप मुझे अपना मित्र मानकर मेरी विद्याओं को ग्रहण करें और मुझे स्तंभिनी और विमोचनी विद्या प्रदान करें।'
जम्बू मुस्कुराया और बोला 'स्तेन-सम्राट! मेरे पास किसी प्रकार की विद्या नहीं है और मैं तुम्हारी इन विद्याओं को लेकर क्या करूंगा? मैं प्रभात होते ही मणि, रत्न, कनक-कुंडल, किरीट आदि समग्र संपदा तथा रूप-संपदा की स्वामिनी इन कामिनियों का परित्याग कर सुधर्मा स्वामी के पास संयम को ग्रहण करूंगा। मेरी दृष्टि में अध्यात्म विद्या से बढ़कर कोई विद्या नहीं है, कोई मंत्र नहीं है, कोई शक्ति नहीं है और कोई बल नहीं है।'
जम्बू की बात सुनकर प्रभव आवक् रह गया। वह जम्बू के शशिसौम्य मुख को अपलक नयन से निहार रहा था। उसका अंतरंग उद्वेलित हो उठा। भीतर से झटका लगा। अरे प्रभव! क्या देख रहे हो? प्रभव का मौन टूटा। उसने जम्बू को सलाह दी "मेरे मित्र! पल्लव-पुष्पों से मुस्कुराते मधुमास की भांति यह नवयौवन तुम्हें प्राप्त है। लक्ष्मी तुम्हारी सेविका है। सब प्रकार की अनुकूल सामग्री तुम्हें सुलभ है। मुक्त भाव से विषय-सुख भोगने का यह अवसर है। इन नवविवाहित बालाओं पर अनुकंपा करो। इनकी इच्छाओं को पूर्ण करो।"
जम्बू! आप जानते हो, संतानहीन व्यक्ति नरक में जाता है, अतः नरक से त्राण पाने के लिए पुत्र को प्राप्त कर भावी संतति का विस्तार कर पितृऋण से मुक्त बनो। संपूर्ण परिवार का आलंबन बनो। उसके बाद संयमी होना शोभास्पद है।
*चोर सम्राट की बात को ध्यान से सुन कर जम्बू ने क्या प्रत्युत्तर दिया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 10 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - शेखपुरा*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 15/04/2017
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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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