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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 आचार्यश्री अपनी श्वेत सेना के साथ लखीसराय को छोड़ पहुंचे मुंगेर जिले के सिंघिया गांव
👉 श्री प्रयाग नारायण मध्य विद्यालय में हुआ प्रवास, दर्शन को उमड़े ग्रामीण
👉 *हृदय में हो दया-अनुकंपा के भाव तो पापों से हो सकता है बचाव: आचार्यश्री महाश्रमण*
👉 आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त कर ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
दिनांक 21-04-2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 *बिहार योग विद्यालय में हुआ दो संप्रदायों के संतों का अनूठा मिलन*
👉 *तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाचार्य महाप्रज्ञजी की अष्टम पुण्यतिथि पर आचार्यश्री ने दी भावांजलि*
👉 इन्डोर स्टेडियम बना अहिंसा यात्रा का प्रवास स्थल, आचार्यश्री ने दिया आध्यात्मिक ज्ञान
👉 मुंगेरवासियों ने भी महातपस्वी आचार्यश्री के स्वागत में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति
दिनांक - 22-04-2017
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 आचार्यश्री अपनी श्वेत सेना के साथ लखीसराय को छोड़ पहुंचे मुंगेर जिले के सिंघिया गांव
👉 श्री प्रयाग नारायण मध्य विद्यालय में हुआ प्रवास, दर्शन को उमड़े ग्रामीण
👉 *हृदय में हो दया-अनुकंपा के भाव तो पापों से हो सकता है बचाव: आचार्यश्री महाश्रमण*
👉 आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त कर ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
दिनांक 21-04-2017
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दिनांक 22- 04- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
👉 *विषय -स्व बोध भाग-2*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
प्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*चैतन्य केन्द्र और ग्रन्थितन्त्र ---[ 2 ]*
चैतन्य केन्द्र के अध्ययन के साथ ग्रंथितन्त्र का अध्ययन करने पर अनेक नए रहस्य प्रकट होते हैं । यह सहज ही स्वीकार करना चाहिए कि वर्तमान शरीर - शास्न्नियों ने ग्रन्थियों, उनके स्रावों और उनके प्रभावों का जितना तलस्पर्शी अध्ययन किया है, उतना विशद अध्ययन चैतन्य केन्द्रों अथवा चक्रों के बारे में उपलब्ध नहीं है । योग का शरीरशास्त्र, आयुर्वेद तथा आयुर्विज्ञान ----- इन तीनों विधाओं में मर्मस्थानों के विषय में जो निरुपण है उसका तुलनात्मक अध्ययन नई दिशा का उद्घाटन करने वाला हो सकता है ।
22 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 36📝
*संस्कार-बोध*
*शिष्य-सम्बोध*
गतांक से आगे...
*28.*
भूल छिपाना पाप है, फैलाना अभिशाप।
प्रज्ञा जगे विवेक की, छोड़ें ऐसी छाप।।
*29.*
पूछे या पूछे नहीं, करें भूल स्वीकार।
सधे अभय की साधना, हो छलना परिहार।।
*30.*
अपने गुरु के प्रति, और लक्ष्य के हेतु।
सहज समर्पण भाव है, स्वयं सिद्धि का सेतु।।
*31.*
श्रम है जीवन श्रमण का, छोड़ें सुविधावाद। पौरुष की बल-वीर्य की, धार बहे अरिवाद।।
*32.*
पापभीरुता सरलता, है मुनि की पहचान। जागरुक पग-पग रहें, भूलें कभी न भान।।
*33.*
रखें उजागर हृदय में, सेवाभाव प्रकाम।
'निज्जरट्ठिए' पाठ का, स्मरण करें निष्काम।।
*34.*
उल्टी-सीधी बात सुन, बनें नहीं अनुदार।
आर्य भिक्षु से सीख लें, मधुर-मधुर प्रतिकार।।
*35.*
आत्मख्यातपन भावना, नहीं साधुता-योग्य।
भूख नाम साहित्य की, छोड़ वरें आरोग्य।।
*शिष्य के संस्कारों का महत्त्व बतलाते दोहों में प्रयुक्त कुछ उदाहरणों का विस्तृत विवेचन* हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 36* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*श्रुत-शार्दुल आचार्य शय्यंभव*
आचार्य शय्यंभव का व्यक्तित्व असाधारण था। वे तीर्थंकर महावीर के चतुर्थ पट्टधर थे। श्रुतधर आचार्यों की परंपरा में उनका द्वितीय क्रम था। आचार्य शय्यंभव का ब्राह्मण संस्कृति से श्रमण संस्कृति में प्रवेश करने का प्रसंग इतिहास का रोचक पृष्ठ है।
दिगंबर परंपरा में श्रुतधर विष्णुनंदी के बाद श्रुतधर नंदीमित्र हुए।
*गुरु-परंपरा*
आचार्य शय्यंभव के गुरु आचार्य प्रभव थे। प्रभव प्रथम श्रुतधर आचार्य थे। आचार्य शय्यंभव को प्रभव से जैन धर्म का बोध हुआ। तदनंतर शय्यंभव ने उनसे मुनि दीक्षा ग्रहण की। उनसे आगम श्रुत और पूर्व श्रुत का प्रशिक्षण लिया। प्रभव से पूर्व की गुरु परंपरा में सर्वज्ञ श्रीसंपन्न जम्बू और गणधर सुधर्मा थे।
*जन्म एवं परिवार*
आचार्य शय्यंभव का जन्म ब्राह्मण परिवार में वी. नि. 36 (वी. पू. 434, ई. पू. 491) में हुआ। उनका गोत्र वत्स था। राजगृह उनकी जन्मभूमि थी। परिशिष्ट पर्व आदि ग्रंथों में शय्यंभव के जीवन प्रसंगों में उनकी पत्नी का उल्लेख है, पर पत्नी के नाम का उल्लेख नहीं है। शय्यंभव के पुत्र का नाम मनक था। उनके माता-पिता एवं अन्य पारिवारिकजनों का परिचय उपलब्ध नहीं है।
*जीवन-वृत्त*
शय्यंभव गृहस्थ जीवन में अहंकारी विद्वान् थे। वह क्रोधी और निर्ग्रंथ धर्म के प्रबल विरोधी थे। यज्ञ आदि अनुष्ठानों में उनके प्रमुख भूमिका रहती थी। उनका वेद-वेदांग दर्शन संबंधी ज्ञान अगाध था। आचार्य प्रभव को याज्ञिक ब्राह्मण शय्यंभव की शिष्य के रूप में प्राप्ति विशेष प्रयत्नपूर्वक हुई।
आचार्य का सबसे बड़ा दायित्व भावी आचार्य का निर्वाचन करना होता है। इस महत्त्वपूर्ण दायित्व की चिंता आचार्य सुधर्मा और जम्बू को नहीं करनी पड़ी। सुधर्मा के सामने जंबू और जंबू के सामने प्रभव जेसे योग्य शिष्य थे। आचार्य प्रभव का पदारोहण 94 वर्ष की अवस्था में हुआ। उनके जीवन का यह संध्याकाल था। पश्चिम यामिनी में एक बार आचार्य प्रभव ने सोचा मेरे बाद गण वाहक कौन होगा? उन्होंने श्रमण संघ, श्रावक संघ एवं जैन संघ का क्रमशः अवलोकन किया। गणभार वहन योग्य कोई व्यक्ति उनके दृष्टिगत नहीं हुआ। उनका ध्यान यज्ञनिष्ठ ब्राह्मण विद्वान् शय्यंभव पर केंद्रित हुआ। वे नेतृत्व करने में समर्थ थे पर उनसे जैन-दर्शन की बात करना कठिन था।
*आचार्य प्रभव ने शय्यंभव को अपनी बात कैसे समझाई...?* जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 61 - *अनशन*
*प्रयाण* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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