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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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👉 जोरहाट - अक्षय तृतीया महोत्सव
👉 जयपुर - किशोर मण्डल द्वारा सेवा कार्य
👉 फरीदाबाद - अक्षय तृतीया पर महिला मंडल व कन्या मंडल का संयुक्त कार्यक्रम
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 43* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय*
जैन परंपरा में आचार्य यशोभद्र के बाद आचार्य संभूतविजय हुए। वे तीर्थंकर महावीर के छठे पट्टधर थे। श्रुतकेवली परंपरा के वे चतुर्थ श्रुतकेवली थे। महामात्य शकडाल के दोनों पुत्रों एवं साथ पुत्रियों ने आचार्य संभूतविजय से दीक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को धन्य किया।
*गुरु-परंपरा*
आचार्य संभूतविजय के दीक्षागुरु और विद्यागुरु श्रुतधर आचार्य यशोभद्र थे। सप्तम आचार्य श्रुतकेवली भद्रबाहु संभूतविजय के सहपाठी थे। दोनों श्रमण आचार्य यशोभद्र से दीक्षित थे।
*जन्म एवं परिवार*
आचार्य संभूतविजय का जन्म वी. नि. 66 (वि. पू. 404, ई. पू. 461) में ब्राह्मण वंश में हुआ। नंदी सूत्रकार ने *'संभूयं चेव माढरं'* कहकर संभूतविजय को वंदन किया है। इस आगम पद्य के आधार पर श्रुतधर संभूतविजय का गोत्र माढर था। गृहस्थ जीवन का अन्य परिचय अज्ञात है।
*जीवन-वृत्त*
आचार्य संभूतविजय का जन्म ब्राह्मण परिवार में होने के कारण वैदिक धर्म और दर्शन के संस्कार उन्हें बाल्यकाल से प्राप्त थे। आचार्य यशोभद्र के उपदेशामृत का पान कर वे जैन संस्कारों से आप्लावित हुए। आचार्य यशोभद्र से वी. नि. 108 (वि. पू. 362) में संभूतविजय ने वैराग्यपूर्वक मुनि दीक्षा ग्रहण की। श्रमणाचार की शिक्षाएं पाईं। आगमों का गहन अध्ययन किया और पूर्वों की विशाल ज्ञानराशि को पूर्णतः ग्रहण कर श्रुतधर आचार्यों की परंपरा में स्थान पाया।
आचार्य यशोभद्र के बाद वी. नि. 150 (वि. पू. 322, ई. पू. 379) में वे आचार्य पद पर आसीन हुए। आचार्य पद ग्रहण करने के समय वे लगभग 82 वर्ष के थे। श्रमणों की शोभा आचार्य से एवं आचार्य की शोभा श्रमणों से होती है। जिस संघ में तपस्वी, श्रुतसंपन्न श्रमण होते हैं वह संघ तेजस्वी होता है। आचार्य संभूतविजय के संघ में श्रमण संपदा श्रेष्ठ थी। श्रुतसंपन्न आचार्य भद्रबाहु उनके गुरुभ्राता थे। कई घोर अभिग्रह-धारी श्रमण भी उनके शिष्य परिवार में थे।
एक बार चार विशिष्ट साधक मुनि आचार्य संभूतविजय के पास आए। एक ने सिंह की गुफा में, दूसरे ने सर्प की बांबी पर, तीसरे में कुएं की मुंडेर पर तप पूर्वक चातुर्मास करने का घोर अभिग्रह धारण किया और अपने लक्ष्य की ओर गुरु आज्ञा से विहार कर दिया। घोर अभिग्रह तप के साथ तीनों मुनियों ने अपने-अपने संकल्पित स्थान पर सानंद पावस प्रारंभ किया। गुरु की आज्ञा से आर्य स्थूलभद्र ने वह चातुर्मास पूर्व परिचिता गणिका कोशा की चित्रशाला में किया।
*मुनि स्थूलभद्र और शेष तीनों मुनि क्या सफलतापूर्वक घोर अभिग्रह सहित वह चातुर्मास संपन्न कर पाए...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 68 - *धार्मिक-आराधना*
*गोचरी...* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 43📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*दोहों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*
*9. कोटा के महाराज की...*
तेरापंथ के प्रथम दो साधु-- थिरपालजी और फतेहचंदजी आपस में पिता पुत्र थे। एक बार वे कोटा रियासत के जंगलों में तपस्या और ध्यान की साधना कर रहे थे। उनकी साधना की बात लोगों तक पहुंची। कुछ भाइयों ने कोटा के महाराज से कहा-- 'महाराज! आप की रियासत में दो तपस्वी साधना कर रहे हैं। आप भी उन के दर्शन करें।' कोटा-महाराज तैयार हो गए। यह बात मुनि थिरपालजी और फतेहचंदजी ने सुनी। दोनों मुनि सर्वथा नीरभिमानी थे। उन्होंने सोचा-- 'दर्शन करने हों तो भी भीखणजी स्वामी के करें। वे उन्हें ज्ञान की बातें बता सकते हैं। हमारे दर्शन करने से क्या मिलेगा? कोटा-महाराज उनके दर्शन करें, उससे पहले ही वे वहां से विहार कर आगे चले गए। मुनि-युगल की निगर्विता सबको अभिमान से दूर रहने की प्रेरणा देती है।
*10. जान और अनुदान में...*
पीपाड़ की घटना है। आचार्य भिक्षु एक दुकान में बैठे थे। मुनि वेणीरामजी दूसरी दुकान में थे। आचार्य भिक्षु ने किसी कार्यवश उनको पुकारा। वे बोले नहीं। दूसरी-तीसरी बार पुकारने कर भी उनका मौन नहीं खुला। आचार्य भिक्षु को लगा कि वह जानबूझकर उपेक्षा कर रहा है। उन्होंने निकट बैठे श्रावक गुमानजी लूणावत से कहा-- *"वेणी छूटतो दीसै है।"* यह बात सुन गुमानजी सीधे मुनि वेणीरामजी के पास पहुंचे और बोले-- 'स्वामीजी ने आपको तीन बार पुकारा। आप बोले क्यों नहीं? स्वामीजी तो यह सोच रहे हैं कि आपकी संघ में रहने की भावना नहीं है।'
मुनि वेणीरामजी को इस बात से बड़ा आघात लगा। वे तत्काल आचार्य भिक्षु के पास पहुंचे और क्षमा मांगने लगे। आचार्य भिक्षु ने कहा-- 'मैंने तुमको तीन बार पुकारा। यहां आना तो दूर तुम बोले तक नहीं।' मुनि वेणीरामजी ने आचार्य भिक्षु के चरण पकड़कर विनय करते हुए कहा-- 'स्वामीजी! मैंने एक बार भी आपकी आवाज नहीं सुनी। अन्यथा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करता। आप महान् हैं। आप मुझे क्षमा कर दें।' मुनि वेणीरामजी अपनी विनम्रता से आचार्य भिक्षु के मन में जमी धारणा को बदलने में सफल हो गए।
*मुनि भीमराजजी की नियमित दिनचर्या* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*मई माह के जैन तेरापंथ पर्व व विभिन्न जानकारी*
✳ विभिन्न शहरों के सूर्योदय/सूर्यास्त का समय
✳ जैन तेरापंथ पर्व
✳ दिवस/रात्रि चौघड़िया
✳ पक्खी तारीख
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