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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 48📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*लावणी के पद्यों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*
*15. गण गणपति के प्रति...*
मुनि स्वरूपचंदजी तेरापंथ के यशस्वी साधु थे। उनका यश जयाचार्य के बड़े भाई होने के कारण नहीं, धर्मसंघ के प्रहरी होने से था। संघ और संघपति के प्रति उनकी आस्था बहुत गहरी थी। उनकी दीक्षा आचार्य भारिमालजी के करकमलों से विक्रम संवत 1869 में हुई थी। उन्होंने आचार्य भारिमालजी, आचार्य रायचंदजी और मुनि हेमराजजी की बहुत सेवा की। कई वर्षों तक मुनि हेमराजजी के साथ रहने के बाद विक्रम संवत 1876 में आचार्यश्री भारिमालजी उन्हें अग्रगण्य बनाना चाहते थे। इस संदर्भ में बात चली तो मुनि स्वरूपचंदजी ने ने मुनि हेमराजजी के साथ रहने की भावना प्रकट की। आचार्यश्री द्वारा बहुत बार समझाने पर भी उन्होंने आचार्यश्री की दृष्टि नहीं समझी और अपना हठ नहीं छोड़ा। इस पर आचार्यश्री ने अपना रुख कड़ा करते हुए कहा-- 'जा, अब तुझे हेमराजजी से बोलने का ही त्याग है।' मुनि हेमराजजी को भी आचार्यश्री ने मुनि स्वरूपचंदजी से बोलने का त्याग कराते हुए कहा-- 'यह बात तो समझता ही नहीं है।'
जीत मुनि को इस प्रसंग की जानकारी मिली। वे मुनि स्वरूपचंदजी के पास जाकर बोले-- 'मुनिश्री! आपने यह क्या किया? आचार्यश्री जो निर्देश दें, उसमें तर्क कैसा! आप सब काम छोड़कर पहले आचार्यश्री के पास जाएं और गुरु-आज्ञा स्वीकार करें। मुनि स्वरूपचंदजी स्थिति की गंभीरता को समझ गए। वे तत्काल आचार्यश्री के उपपात में पहुंचे। उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की। आचार्यश्री का प्रयोग सफल हो गया। उनको अग्रगण्य की वंदना कराकर कहा-- 'जाओ, दोनों को बोलने की आज्ञा है।' यह तेरापंथ संघ की एक अद्भुत घटना है।
*मुनि कालूजी (रेलमगरा) के श्रम, सेवा और समर्पण* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 73 - *तपस्या*
*जमीकंद और हरियाली* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 48* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय*
*आचार्य संभूतविजय का शिष्य परिवार*
आचार्य संभूतविजय का विशाल शिष्य परिवार था। कल्पसूत्र स्थविरावली में उनके मुख्य बारह शिष्यों का उल्लेख है। उनके नाम इस प्रकार हैं--
*1.* नंदनभद्र, *2.* उपनंदनभद्र, *3.* तीसभद्र, *4.* यशोभद्र, *5.* सुमणिभद्र, *6.* मणिभद्र *7.* पुण्यभद्र, *8.* स्थूलभद्र, *9.* उज्जुमई, *10.* जंबू, *11.* दीहभद्र, *12.* पांडुभद्र।
आचार्य संभूतविजय का श्रमणी वर्ग अत्यंत प्रभावक था। महामात्य शकडाल की प्रतिभासंपन्न सातों पुत्रियां यक्ष, यक्षदिन्ना, भूता भूतदिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा आचार्य संभूतविजय के पास दीक्षित हुई थीं। इनका दीक्षा संस्कार स्थूलभद्र के बाद हुआ था। सातों बहनों की स्मरणशक्ति बेजोड़ थी। ज्येष्ठा भगिनी यक्षा एक बार, यक्षदिन्ना दो बार क्रमशः सातवीं बहिन रेणा सात बार किसी भी दुरुह श्लोक को सुनकर तत्काल ज्यों का त्यों पुनरावर्तन कर सकती थीं।
राजा नंद की अपार कृपा के केंद्र, सुकोमल तन, सरल स्वभावी, बुद्धि वैभव से समृद्ध महामात्य श्रीयक ने यक्षा आदि अपनी सातों भगिनियों के साथ वी. नि. 153 (वि. पू. 317) में आचार्य संभूतविजय के पास दीक्षा ग्रहण की थी। एक ही आचार्य के शासनकाल में दीक्षित होने वाले बंधुद्वय (आचार्य स्थूलभद्र एवं मुनि श्रीयक) मुनियों के मिलन का प्रसंग उपलब्ध नहीं है। मुनि श्रीयक से आर्य स्थूलभद्र लगभग 7 वर्ष पहले दीक्षित हो गए थे।
यक्षादि भगिनियों के साथ भ्राता श्रीयक का प्रसंग अत्यंत मार्मिक एवं हृदयद्रावक है। श्रीयक का शरीर अत्यंत कोमल था। एकभक्त तप भी उनके लिए कठिन था। ज्येष्ठा भगिनी साध्वी यक्षा से प्रेरणा पाकर मुनि श्रीयक ने पर्युषण पर्व के दिनों में एक बार क्रमशः प्रहर, अर्धदिन एवं अपार्ध दिन तक भोजन ग्रहण करने का परित्याग किया था। मुनि श्रीयक के लिए तपःसाधना का यह प्रथम अवसर था। अन्न का एक कण भी ग्रहण न करने पर दिन का अधिकांश भाग सुखपूर्वक कट गया। भगिनी यक्षा ने कहा "भ्रात! रात्रि निकट है। नींद में सोते हुए अवशेष समय कट जाएगा। तपःप्रधान पर्युषण पर्व चल रहा है। अब उपवास कर लो।" ज्येष्ठा भगिनी की शिक्षा को ग्रहण कर श्रीयक ने उपवास स्वीकार कर लिया।
निशा में भयंकर कष्ट हुआ। क्षुधा-वेदना बढ़ती गई। देव, गुरू, धर्म का स्मरण करता हुआ श्रीयक स्वर्गवासी बना।
*भ्राता के स्वर्गवास की बात सुनकर साध्वी यक्षा की क्या मनस्थिति हुई...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*अवयव, श्वास और रंग*
मनुष्य शरीर के अवयवों का रंग अलग - अलग होता है । इसलिए शारीरिक अवयवों की पुष्टि के लिए अलग - अलग रंगों का श्वास लेना उपयोगी होता है ।
अवयवों के रंग इस प्रकार है ------
अवयव रंग
सिर और गर्दन -- नीला
गला --- गहरा नीला
छाती और फेफडे ---- बैगनी
आंत, गुर्दा ---- हरा
मूत्राशय ---- हरा
त्वचा ---- हरा
आमाशय ---- नारंगी
जिगर और तिल्ली ---- पीला
धड, बाजू, जननेन्द्रिय -- लाल
06 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 जयपुर - आचार्य श्री महाश्रमण पदाभिषेक समारोह
👉 छापर - आचार्य श्री महाश्रमण 56 वां जन्मदिवस समारोह
👉 झाड़बेड़ा (ओडिशा) - आचार्य श्री महाश्रमण 56 वां जन्मदिवस समारोह
👉 हिसार - आचार्य श्री महाश्रमण पदाभिषेक समारोह
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प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - खसिया (झारखंड)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 06/05/2017
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