Update
11 मई का संकल्प
*तिथि:- ज्येष्ठ कृष्णा एकम्*
जब तक बंधन है, मुक्ति कहाँ ।
शरीर से ममत्व छूटा, मुक्ति वहाँ ।।
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👉 भिवानी: विद्यालय में 'अणुव्रत' और जीवन विज्ञान का प्रशिक्षण
👉 विद्यार्थियों ने किए 'अणुव्रत' के संकल्प स्वीकार
👉 कालांवाली - आचार्य श्री महाश्रमण दीक्षा दिवस
👉 जींद -आध्यात्मिक मिल
👉 सादुलपुर-राजगढ़ - अणुव्रत आचार संहिता पट्ट भेंट
👉 सादुलपुर - स्कूल में अणुव्रत आचार संहिता कार्यशाला
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 घुमावदार रास्तों ने याद दिलाई मेघालय-शिलोंग की यात्रा
👉 लगभग पन्द्रह किलोमीटर का हुआ विहार, पंचायत सचिवालय में हुआ प्रवास
👉 *आचार्यश्री ने लोगों को वित्त की अपेक्षा वृत्ति पर विशेष देने की दी प्रेरणा*
👉 ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
दिनांक - 10-05-2017
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प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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दिनांक 10 - 05- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 तेरापंथ के युवाओं ने इसे देश में युवा दिवस के रूप में किया समायोजित
👉 *आचार्यश्री ने संयम की साधना को कलंकमुक्त रखने की दी प्रेरणा*
👉 साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी, साध्वीवर्याजी और मुख्यमुनिश्री ने अर्पित की प्रणति
👉 अभातेयुप के पदाधिकारी और सदस्यों ने भी आचार्यश्री की अभिवन्दना, दी भावाभिव्यक्ति
दिनांक 09-05-2017
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👉 पूज्यवर के सान्निध्य में कोलकत्ता में आयोजित होने वाले अणुव्रत अधिवेशन सम्बंधित जानकारी ।
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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News in Hindi
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 51📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*लावणी के पद्यों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*
*18. थे हेम दूसरे हेम*
मुनि हेमराज जी आत्मा (मेवाड़) के थे। उन्होंने छोटी अवस्था में कालूगणी के पास दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होकर उन्हें लंबे समय तक मुनि पृथ्वीराजजी के साथ रहने का मौका मिला। उनके साथ सिद्धांतवादी मुनि डायमलजी के योग से आगमों का अच्छा अध्ययन कर लिया। गंगाशहर क्षेत्र को बनाने में भी उन्होंने अच्छा काम किया। उनका आगमिक ज्ञान इतना पुष्ट था कि वे किसी भी प्रसंग में आगमों के प्रमाण बहुत शीघ्रता से खोज लेते थे। तेरापंथ तत्त्वदर्शन के भी वे विशेषज्ञ थे। धर्मसंघ की प्राचीन घटनाओं की भी उन्हें अच्छी जानकारी थी। मैंने (ग्रंथकारआचार्यश्री तुलसी) उनको आचार्य भिक्षु द्वारा दीक्षित मुनि हेमराजजी (सिरियारी) की प्रतिकृति के रूप में स्वीकार किया है। मुनि हेमराजजी संघ के दायित्व को समझने वाले साधु थे। संघहित की बात को वे बहुत गहराई से सोचते थे।
विक्रम संवत 1984-86 में स्थानकवासी आचार्यश्री जवाहरलाल जी थली में आए। उन्होंने यहां दो चातुर्मास्य किए। उस समय मुनि हेमराजजी ने बहुत काम किया। चर्चा के प्रसंग में वे बहुत उत्सुक रहते थे। किंतु उनका प्रभाव इतना था कि उनका नाम सुनकर चर्चा का आह्वान करने वाले मौन हो जाते।
एक बार मुनि भोमराजजी गोठ्यां गांव में प्रवास कर रहे थे। वहां स्थानकवासी आचार्यजी गए। उन्होंने चर्चा के लिए आह्वान किया। मुनि भोमराजजी ने उसे स्वीकार कर लिया। मध्याह्न में चर्चा होनी थी। मुनि हेमराजजी उस समय गोठ्यां से लगभग 20 किलोमीटर दूर राजगढ़ में थे। उन्हें गोठ्यां के शास्त्रार्थ की जानकारी मिली तो वे राजगढ़ से चलकर सीधे गोठ्यां पहुंच गए।
उनके पहुंचने की सूचना पाकर चर्चा का आह्वान करने वाले चर्चा करने ही नहीं आए। मुनि हेमराजजी के वहां आने की उन्हें कल्पना ही नहीं थी। इसीलिए उन्होंने चर्चा का आह्वान किया था। मुनि हेमराजजी को ऐसी संभावना थी। इसी कारण वे मुनि भोमराजजी को आह्वान स्वीकार करने का संकेत दे चुके थे। चर्चा की बात करने वाले दूसरे दिन बिना सूचना दिए ही वहां से विहार कर गए।
विक्रम संवत 1988 में मुनि हेमराजजी रतनगढ़ में प्रवास कर रहे थे। उस समय आचार्य जवाहरलालजी के शिष्य केसरीमलजी नामक साधु ने कृत्रिम अनशन किया। उन्होंने कहा-- 'तेरापंथ की मान्यताएं ठीक नहीं हैं। उन्हें विशिष्ट विद्वानों के सामने सिद्ध करें अन्यथा उन सिद्धांतों को छोड़ें। जब तक ऐसा नहीं होगा, मैं अन्न नहीं लूंगा।' इस तरह के संकल्प को अनशन कैसे कहा जा सकता है। कुछ दिन बाद उन्होंने स्वयं ही पारणा कर लिया। उस समय मुनि हेमराजजी ने सारी स्थिति संभाल कर तेरापंथ की अच्छी प्रभावना की।
*गणाधिपति आचार्य श्री तुलसी के ज्येष्ठ भ्राता मुनि चंपालालजी 'भाईजी महाराज' की विशिष्ट सेवाभावना* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 51* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
श्रुतधर परंपरा में आचार्य भद्रबाहु पांचवें श्रुतुधर थे। अर्थ की दृष्टि से वे अंतिम श्रुतधर थे। नेपाल की गिरी कंदराओं में उन्होंने महाप्राण ध्यान की विशिष्ट साधना की। श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में उनको श्रुतधर आचार्य के रूप में आदरास्पद स्थान प्राप्त हुआ। इसका कारण आचार्य भद्रबाहु का प्रभावशाली तेजोमय व्यक्तित्व था।
*गुरु-परंपरा*
आचार्य भद्रबाहु के दीक्षा-गुरु और शिक्षा-गुरु यशोभद्र थे। यशोभद्र ने अपने स्थान पर संभूतविजय और भद्रबाहु दोनों शिष्यों की नियुक्ति की। संभूतविजय भद्रबाहु के ज्येष्ठ गुरु-बंधु थे। यशोभद्र के बाद जिन शासन का दायित्व संभूतविजय ने संभाला। संभूतविजय के बाद यह गुरुतर दायित्व भद्रबाहु ने संभाला, अतः पट्ट परंपरा के क्रम में आचार्य भद्रबाहु भगवान महावीर के सातवें पट्टधर थे।
दिगंबर परंपरा के अनुसार श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु से पूर्व की गुरु परंपरा में सर्वज्ञ श्रीसंपन्न आचार्य जम्बू के बाद क्रमशः श्रुतकेवली विष्णु, नंदीमित्र, अपराजित, गोवर्धन नामक आचार्य हुए। गोवर्धन के शिष्य भद्रबाहु थे।
*जन्म एवं परिवार*
प्रबंधकोश, प्रबंध चिंतामणि आदि ग्रंथों में भद्रबाहु के नाम के साथ वंश, जन्म, परिवार आदि की उपलब्ध सामग्री द्वितीय भद्रबाहु से संबंधित है। श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु के जीवन-प्रसंग *'तित्थोगालिय पइन्ना'* आवश्यक चूर्णी, निर्युक्ति आदि ग्रंथों में उपलब्ध है, उनमें उनके गृहस्थ जीवन से संबंधित सामग्री का उल्लेख नहीं है। नंदी सूत्र के अनुसार भद्रबाहु का *'प्राचीन'* गोत्र था। *'दशाश्रुतस्कंध निर्युक्ति'* में भी सकल श्रुत संपन्न आचार्य भद्रबाहु को 'प्राचीन' गोत्री कहकर वंदन किया गया है। ब्राह्मण समाज में प्रचलित इस गोत्र के आधार पर कहा जा सकता है कि भद्रबाहु का जन्म संभवतः ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनका जन्म संवत वी. नि. 94 (वि. पू. 376, ई. पू. 433) है।
*आचार्य भद्रबाहु के जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*भाव*
भाव के चार प्रकार बतलाए गए हैं -----
1) कर्दम उदक के समान
2) खञ्जन उदक के समान
3) बालुका उदक के समान
4) शैल उदक के समान
प्रथम प्रकार का भाव मलिनतर, दूसरे प्रकार का भाव मलिन, तीसरे प्रकार का भाव निर्मल और चौथे प्रकार का भाव निर्मलतर होता है ।
प्रथम प्रकार के भाव में अनुप्रविष्ट जीव मरकर नरक में पैदा होते हैं ।
दूसरे प्रकार के भाव में अनुप्रविष्ट जीव मरकर तिर्यञ्च में पैदा होता है ।
तीसरे प्रकार के भाव मे अनुप्रविष्ट जीव मरकर मनुष्य बनता है ।
चौथे प्रकार के भाव में अनुप्रविष्ट जीव मरकर देव बनता है ।
10 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 15.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - "बरमेसीआ" (झारखंड)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 10/05/2017
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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाश्रमण दीक्षा दिवस*
🔷 बैंगलोर
🔷 हिसार
🔷 जयपुर
🔷 चेन्नई
👉 न्यूजर्सी (अमेरिका) - पाथ ऑफ अहिंसा कार्यक्रम
👉 नोगांव - अणुव्रत सद्भाव सम्मेलन
👉 सादुलपुर - अणुव्रत आचार संहिता पट्ट भेंट
👉 नोखा - आध्यात्मिक मिलन व युवा दिवस का आयोजन
👉 दुर्ग-भिलाई - आचार्य श्री महाश्रमण जन्मदिवस, पदाभिषेक, दीक्षा दिवस व दीक्षार्थी मंगल भावना समारोह
👉 सूरत - युवा दिवस के उपलक्ष में रिक्शा चालकों को मुफ्त दुर्घटना बीमा व निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन
👉 विजयनगर (बैंगलोर) - जीवन रक्षा संघ सुरक्षा कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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