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👉 टिटिलागढ - "टूटते रिश्ते-बिखरते परिवार" "आपस में रखें विश्वास-रिश्तों में घुले मिठास" विषय पर भव्य सेमिनार का आयोजन
👉 दिल्ली - अणुव्रत महासमिति प्रतिनिधि मंडल की श्री मेघवाल से मुलाकात
👉 सादुलपुर - नशामुक्ति अभियान पर कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 59📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
गतांक से आगे...
*4.* कभी-कभी गुरु शिष्य को कुछ अधिकार दे देते हैं। अधिकार पाना गौरव की बात है। किंतु उसके उपयोग में अत्यधिक सावधानी रखने की अपेक्षा है। उस समय अधिकार प्राप्ति के दर्प से लिया गया कोई निर्णय अहितकर भी हो सकता है। इस दृष्टि से मंत्री मुनि का चिंतन था कि गुरु कोई अधिकार दें, यह उनकी कृपा है। पर उसका उपयोग करने से पहले अपना सामर्थ्य देखना जरूरी है। व्यक्ति किस स्थिति में है, यह समझे बिना अधिकार का उपयोग करने वाला सफल नहीं होता।
विक्रम संवत 2006 का चातुर्मास्य करने के लिए मैं (ग्रंथकार आचार्य श्री तुलसी) जयपुर जा रहा था। मंत्री मुनि को पीछे रहना अभीष्ट नहीं था। किंतु अवस्था और अस्वस्थता के कारण वे साथ नहीं जा सकते थे। मैंने उनको निर्देश दिया कि उस वर्ष के अपने चातुर्मास्य का निर्णय वे स्वयं करें। इस अनुग्रह के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा-- 'आप जहां उचित समझें, चातुर्मास्य के स्थान की घोषणा अपने मुखारविंद से करें। मैं अपने मन से कोई निर्णय लूंगा तो भूंडा दीख जाऊंगा।' बहुत आग्रह करने पर भी उन्होंने अपने बारे में निर्णय लेना स्वीकार नहीं किया। आखिर मैंने ही उनका चातुर्मास्य सरदारशहर घोषित किया।
*5.* मंत्री मुनि अवस्था से काफी वृद्ध हो गए। रात्रि में उन्हें नींद कम आती। वे जल्दी जग जाते। उनकी दिनचर्या और रात्रिचर्या पर मेरा (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) ध्यान केंद्रित हुआ। मैंने उनसे कहा-- 'मगनलालजी स्वामी! उत्तराध्ययन सूत्र आपका कंठस्थ किया हुआ है। उसे दिन में थोड़ा देख लें, पक्का करलें तो पश्चिम रात्रि में अच्छा स्वाध्याय हो सकता है।' मंत्री मुनि ने मेरे कथन को पकड़ा और उत्तराध्ययन के कई अध्ययन पक्के कर लिए। फिर वे यथावकाश रात्रि में उनका स्वाध्याय करते। बुढ़ापे में ज्ञान कंठस्थ नहीं हो सकता, इस अवधारणा के आधार पर सीखना बंद कर देने वालों के लिए यह एक बोधपाठ है कि बुढ़ापा ज्ञान में बाधक नहीं बनता।
*तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्वों* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*प्रशस्त रंग*
दिन - रात के चौबीस घंटो का निरीक्षण करो, परीक्षण करो । कितने क्षणों तक लेश्या या भावधारा प्रशस्त रहती है और कितने क्षणों तक वह अप्रशस्त रहती है?
निरीक्षण और परीक्षण का अप्रशस्त से प्रशस्त की ओर ले जाने का हेतु बनता है ।
भावधारा को प्रशस्त रखने में प्रशस्त रंग सहायक बनते हैं ।
रंग दो प्रकार के होते हैं -----
1) प्रकाश का रंग (Bright colour)
2) अंधकार का रंग (Dark colour)
19 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 59* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
दिगंबर विद्वान हरिषेण के वृहतकथाकोष का रचनाकाल शक संवत् 853 है। उसके अनुसार भद्रबाहु का जन्म पुण्ड्रवर्धन राज्य के कोटिकपुर ग्राम में हुआ। वे राजपुरोहित के पुत्र थे। बाल्यकाल में साथियों के साथ खेलते हुए बालक भद्रबाहु ने एक बार चौदह गोलियां एक श्रेणी में एक दूसरे के ऊपर चढ़ा दीं। चतुर्दश पूर्वधर गोवर्द्धनाचार्य उस मार्ग से जा रहे थे। उन्होंने बालक के कौशल को देखा। वे अपने विशेष ज्ञान द्वारा इस निर्णय पर पहुंचे कि यह बालक चतुर्दश पूर्वधर होगा। भद्रबाहु के पिता से अनुमति लेकर गोवर्द्धनाचार्य ने बालक को अपने पास रखा। उसको विविध विद्याएं सिखाकर, मुनि दीक्षा प्रदान की। बुद्धिमान भद्रबाहु श्रुतधर गोवर्द्धनाचार्य से चतुर्दश पूर्वों की संपूर्ण ज्ञान राशि को ग्रहण करने में सफल हुए। श्रुतकेवली परंपरा में उन्होंने स्थान पाया। गोवर्द्धनाचार्य ने भद्रबाहु की आचार्य पद पर नियुक्ति की।
एक बार ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए श्रुतकेवली भद्रबाहु का पदार्पण अवंति में हुआ। वे क्षिप्रा नदी के तटवर्ती उपवन में ठहरे। उस समय अवंति में निर्ग्रंथ धर्म में आस्थाशील चंद्रगुप्त का राज्य था। रानी का नाम सुप्रभा था। भद्रबाहु स्वयं गोचरी के लिए नगर में गए। उन्होंने एक घर में प्रवेश करते समय झूले में झूलते हुए एक शिशु को देखा। आंगन में अन्य कोई मनुष्य नहीं था। शिशु ने तीखी आवाज में चिल्लाकर भद्रबाहु से कहा 'तुम यहां से शीघ्र चले जाओ।' शिशु के मुख से विचित्र आवाज को सुनकर भद्रबाहु को निमित्त ज्ञान से ज्ञात हुआ "इस मालव देश में द्वादशवर्षीय भयंकर दुष्काल होगा।" भद्रबाहु वहां से अपने स्थान पर आए और अपने शिष्य समुदाय को भावी दुष्काल की सूचना दी और कहा "सुरक्षा की दृष्टि से तुम लोगों का दक्षिण की ओर जाना उचित है। मेरा आयुष्य कम है अतः मैं यही रहूंगा।"
भद्रबाहु से दुष्काल की बात अवंती-नरेश चंद्रगुप्त ने सुनी। उसे संसार से विरक्ति हुई। राज्य की व्यवस्था कर एवं पुत्र को राज्य सौंप कर चंद्रगुप्त ने आचार्य भद्रबाहु से श्रमण दीक्षा स्वीकार की। मुनि चंद्रगुप्त विशाखाचार्य नाम से विख्यात हुए। तिलोयपण्णत्ति के अनुसार दीक्षा लेने वालों में चंद्रगुप्त अंतिम सम्राट् थे। इसके बाद किसी सम्राट् ने मुनि दीक्षा ग्रहण नहीं की।
आचार्य भद्रबाहु के आदेश से विशाखाचार्य के नेतृत्व में विशाल श्रमण-संघ दक्षिण की ओर पुन्नाट देश में चला गया। आचार्य भद्रबाहु अवंति में ही भाद्रपद नामक स्थान में विराजे। वहीं उनका अनशन में स्वर्गवास हो गया। रामिल्ल, स्थूलवृद्ध, भद्राचार्य अपने श्रमण-संघ सहित भद्रबाहु के आदेश से संकट की घड़ियों को पार करने के लिए सिंधु प्रदेश की ओर चले गए।
हरिषेण के वृहतकथाकोष में आचार्य भद्रबाहु के श्रुतकेवली होने का उल्लेख है पर उनकी दक्षिण यात्रा का उल्लेख नहीं है।
*रत्ननंदी कृत 'भद्रबाहु चरित्र' में प्राप्त उल्लेखों की संक्षिप्त जानकारी* प्राप्त करेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 15 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - अहमदपुर (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 19/05/2017
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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 नोखा - संस्कार निर्माण शिविर
👉 सादुलपुर - स्वच्छ भारत अभियान पर विशेष कार्यक्रम
👉 नोखा 18-5-17- बालिका संस्कार निर्माण शिविर का दूसरा दिन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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