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तुम स्वर्ण हो
उबलते हो झट से,
माटी स्वर्ण नहीं है
पर
स्वर्ण को उगलती अवश्य
तुम माटी के उगाल हो!
...आचार्य श्री विद्यासागर जी (मूक माटी)
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