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आज हम जाने ऐसे पवित्र श्लोक का अर्थ पूज्य मुनिवर श्री क्षमासागर जी द्वारा जो अक्सर और अधिकांशत: हम पूजन में प्रयुक्त करते है...!
*उदकचंदनतन्दुलपुष्पकै, श्चरुसुदीपसुधुपफलार्घकै:!*
*धवलमंगलगानरवाकुले,जिनग्रहे जिननाथमहंयजे!!*
_अर्थ: *उदक* का मतलब *जल* होता, *चंदन* का मतलब *चंदन* और *तन्दुल* का मतलब_ _*चावल(अक्षत)*, *कै* अर्थात *इनके द्वारा*।_
_*चरु* का मतलब होता है_ _*नैवेध(खाने-पीने की सामग्री को नैवेध बोलते है)*_
_और *सुदीप*(दीपक कौन सा चिटक रंगी हुई या दीपक जलता हुआ)_
_(और तिलोयपन्नति ग्रन्थ में जाओ तो कहते है *ज्योति उसमे से निकल रही है ऐसा दीप-रत्नदीप,रत्नों का दीप वो चढ़ाएंगे सबसे श्रेष्ठ*)_
_*सुधूप*-ऐसा नही कि उसमे से गन्ध ही नही आ रही हो।_
_*(सुधूप कहते है जो कि पूरे मंदिर के वातावरण को सुगन्धित कर दे ऐसी धूप लाया हूँ)*_
_फल- *फल* के द्वारा_
_और *अर्घकै*- *अर्घ और इन सबके द्वारा*(अर्घ कोई अलग चीज है क्या,नही सबको मिला दो लेकिन वे सब मिलना चाहिये,वे अलग अलग दिखते है नही तो।)_
_(जैसे कि सोप होवे,खसखस होवे,बुरा होवे,बादाम होवे यह सब चीज मिला दे फिर भी ठंडाई का स्वाद नही आएगा,ये सब ऐसी मिल जाये कि फिर एकमेक हो जाये अलग अलग नही दिखे तो कहते है *ऐसे ही अपने भावों की चाशनी में इन आठो को मैं पागु,तब बनेगा अर्घ*।)_
_अर्घ के मायने होता है मूल्यवान और अनर्घ्य के मायने होता है मूल्य_
_*🔅मांग रहे है अमूल्य और चढ़ा रहे है मूल्यवान🔅*_
_(सस्ता चढाओगे सस्ता मिलेगा क्यों क्योकि हिम्मत तो ज्यादा की है और कम चढ़ा रहे है इसको कहते है सस्ता..!!)_
_*भगवान को चढ़ा रहा हूँ अर्थात अपनी प्रिय वस्तु का त्याग कर रहा हूँ,वो तो माली के जाना है ऐसा नही..!!*_
_तब फिर इन आठो द्रव्यों से और अर्घ के द्वारा_
_और आगे कहते है *मंदिर कैसा जहाँ धवल अर्थात उज्जवल मंदिर है* सन्नाटा खींचा हो ऐसी जगह नही और जहाँ मंगल गान का रव(रव का अर्थ होता है ध्वनि कुले अर्थात व्याप्त)_
*_जहाँ मंगल गान की ध्वनि व्याप्त हो रही है सब जगह....!!_*
_जिननाथ ऐसे *जिनेंद्र भगवान के आलय में*...!!_
_यज धातु पूजा के अर्थ में प्रयुक्त होती है...!!_
*_अर्थात इन अष्ट द्रव्य के द्वारा उज्ज्वल मंगल गान से युक्त जिनालय में जिनेंद्र भगवान की पूजा शुरू कर रहा हूँ...!!_*
_और पता है *हम इतनी बार क्यों चढ़ाते है* क्योकि किसी भी तरह से मन तो लगें, *दस बार पढेंगे एकाध बार तो सही हो जायेगा* इसके लिये है ये ऐसा नही कि सीधा एक बार चढ़ा दिया...!!_
*_9 बार चूक भी जाऊँगा तो भी एक बार तो मन लग ही जायेगा...!!_*
_अपन 6 प्रकार की पूजा करते है इसीलिये 6 तरह के अर्घ चढ़ाते है...!!_
*✍🏻मेरे ऋषिवर श्री क्षमासागर जी*
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मुनि सुधा सागर जी एक ऐसे अलबेले संत है जिनके बारे में जितना भी लिखा जाए नया ही लगता है ओर अब जब वह गुलाबी नगर कहलाने वाले राजस्थान की राजधानी जयपुर के अतिशय क्षेत्र सांगानेर संघी जी मे विराजमान है तब तो सोने पे सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है
अब आपको यह जानने की आकुलता होने लगी होगी कि आखिर यह शब्द क्यों लिखा गया तो आप अतीत में पहुचे जब पूज्यवर अपने द्वय क्षुल्लक संघ समूह के साथ संघी जी के मंदिर में पहुचे थे तब मंदिर में विराजमान भगवान आदिनाथ स्वामी ने जगत पूज्य से अनकहे संवाद और अदृश्य दृश्यों के माध्यम से सारी जानकारियां दे भूगर्भ में स्थित भोयरै में विराजमान जिन प्रतिमाओं के दर्शन समाज को सुलभ कराने का आशीर्वाद देकर उपकृत किया था
_आज पुनः एक बार जगत पूज्य अपने विशाल संघ सहित सांगानेर में विराजमान है ओर सारे देश की जनता इसी उम्मीद में सांगानेर की ओर दृष्टिपात किये हुए कि ना जाने कब संदेशा आ जाये और अबकी बार जो होगा वह तो ओर भी ऐतिसाहिक होगा क्योंकि मुनि श्री के वचनानुसार उस गुफा में प्रवेश करने में बालब्रह्मचारी व्रत के धारी निर्ग्रन्थ मुनिराज जो अपनी तप साधना से भगवान की भक्ति को आतुर रहते हो वही उस गुफा में प्रवेश कर सकते है और वहा विराजमान अथाह जिन प्रतिमा समूह में से जिन प्रतिमाओं को ऊपर लाकर निश्चित समय के लिये समाज को दर्शन करवाने का मौका प्रदान कर सकते है तो भला ऐसा कौन श्रावक होगा जो यक्ष रक्षित गुफा में विराजित अद्विय्तीय जिन प्रतिमाओं के दर्शन पूजन कर अपने जीवन को कृतकृत्य नही करना चाहेगा, तो हम सभी मिलकर ऐसी भावना भाए कि गुरुवर का मन भी अपने भगवान से मिलने का तुरंत हो जाये और हमारी भावनाओ का सम्प्रेषण भगवान आदिनाथ स्वामी के आशीर्वाद के रूप में जगतपूज्य के विशाल संघ को प्राप्त हो और हमे हमारी मनोकामनाओ की इक्क्षा पूर्ति हो
एक बहुत बड़े समय के अंतर को तो हम सभी ने प्रतीक्षा करते हुए व्यतीत कर लिया है किंतु अब ओर इंतजार नही हो रहा क्योंकि अब साधन ओर साध्य दोनों एक साथ ओर सुलभ है अतः अब कितनी जल्दी वह समय आवे कि हमारी आंखे ऐसे पवित्र जिन बिम्बमो का दर्शन,विशाल शिखर वाले सांगानेर वाले मंदिर में महान तपस्वी संत जगत पूज्य के विशाल संघ के सानिध्य में गुफा से ऊपर आकर हमे दर्शन देवे_
*महान तपस्वी करुणा के सागर जैन धर्म को बहुत उचाईयां देने वाले संत जगत पूज्य सदा जयवंत हो*
*श्रीश ललितपुर*
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भक्त सदा सुखी रहते हैं। वे अंदर से तृप्त होते हैं। -श्री ध्यानसागर जी महाराज
उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो, पारिवारिक स्थिति ठीक से नहीं चल रही हो या उनका शारीरिक स्वास्थ्य भी बिगड़ा हुआ हो लेकिन अंदर से जो भक्ति सम्बन्धी तृप्ति है वो उनके पास भरपूर होती है उसकी कभी भी उनके अंदर कमी नहीं होती। वे इस परिप्रेक्ष्य में हमेशा सम्पन्न होते हैं।
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News in Hindi
Big Good News:) आचार्यश्री की पावन प्रेरणा मंगल आशीर्वाद से बड़ी उपलब्धि हाथ करघा केंद्र का रजिस्ट्रेशन *भारत वस्त्र मंत्रालय द्वारा हो चुका है । MINISTRY OF TAXTILE GOVT. OF INDIA द्वारा हैंडलूम मार्क भी प्राप्त है ।* इसमें कुण्डलपुर बीना बारह के बाद मण्डला को स्थान मिला है। बधाई... #Handloom #Hatkardha
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