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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 62📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
(दोहा)
*56.*
गुरु माता गुरुवर पिता, गुरु जीवन-आधार।
गुरु चरणों में अन्त तक सन्त 'कनक' सुकुमार।।
*29. गुरु माता गुरुवर पिता...*
वणी (महाराष्ट्र) का दस वर्षीय बालक कनक अपने पिता के साथ दीक्षा की प्रार्थना करने आया। पिता-पुत्र की वैराग्य भावना का परीक्षण कर मैंने (ग्रंथ का आचार्य श्री तुलसी) उनको विक्रम संवत 1996 सरदारशहर में दीक्षित कर लिया। दीक्षा के कुछ समय बाद ही पिता का मन विचलित हो गया। उन्होंने अपने पुत्र को भी विचलित करने का प्रयास किया। बाल मुनि कनक उनकी बातों में नहीं आया तो उन्होंने उसे सताना शुरू कर दिया। उनका लक्षय था पुत्र को साथ लेकर घर जाना। जब वे अपने लक्ष्य में सफल नहीं हुए उन्होंने मेरे पास मुनि कनक की शिकायतें कीं। मैंने उसको कुछ कठोर शब्दों में मुनि कन्हैयालालजी की सेवा करने का निर्देश दिया।
एक दिन मौका देखकर मुन्नी कनक मेरे पास आकर बोला— 'गुरुदेव! आप कहते हैं कि मैं मुनि कन्हैयालाल जी के पास रहूं, उनकी सेवा करूं। आपका कथन ठीक है। पर वे मुझे घर ले जाना चाहते हैं। मैं उनके पास जाकर क्या करूं?' स्थिति की जटिलता का आभास पाते ही मैंने बाल मुनि को असीम वात्सल्य देकर आश्वस्त कर दिया। उसका परीक्षण करने के लिए मैंने पूछा— 'कनक! तेरा पिता घर जाएगा तो तू क्या करेगा?' एक क्षण सोचे बिना ही मुनि कनक ने कहा— 'गुरुदेव! कौन किसका बाप और कौन किसका बेटा! जो मुझे चारित्र से च्युत करना चाहते हैं, मैं उन्हें अपना पिता नहीं मानता। मेरे लिए तो माता-पिता आप ही हैं।' कुछ दिनों बाद कन्हैयालालजी चले गए। मुनि कनक संघ में रहा। वह बहुत होनहार साधु था, पर आयुषबल बहुत कम लेकर आया था। साधु जीवन में वह केवल छह महीने रह सका। अंतिम समय में उसको मियादी बुखार हुआ। उपचार किया गया, पर सफलता नहीं मिली। आखिरी चार-पांच दिनों में बेहोशी की हालत रही। उस समय भी उसके मन में गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा रही। मैं उसे जब आराधना सुनाता तो वह बेहोशी की स्थिति में भी साथ-साथ गाने लगता। वह होनहार बालक मुनि समय में चला गया, पर अपनी श्रद्धा और समर्पण की छाप छोड़ गया।
*जयाचार्य को साहित्य लेखन की प्रेरणा देने वाली साध्वी दीपांजी (जोजावर) के जीवन का प्रेरक प्रसंग* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*अरुणवर्ण प्रधान आभामण्डल*
जो व्यक्ति तेजोलेश्या प्रधान होता है उसके आभामंडल में अरुण वर्ण की प्रधानता होती है ।
तेजोलेश्या वाले व्यक्ति की भावधारा को समझने के लिए कुछ भावों का उल्लेख आवश्यक है ----
1) विनम्र वृत्ति
2) अचपलता
3) इंद्रिय और मन का संयम
4) पापभीरुता
5) सबका हितैषी
6) धर्मप्रियता
7) धर्म में दृढता ---- स्वीकृत भार का निर्वहन।
इन भावों के आधार पर निर्णय किया जा सकता है कि इस व्यक्ति के आभामंडल में अरुण रंग की प्रधानता है ।
23 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 दो किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री शांतिनिकेतन के रत्नकुटि में पधारे
👉 वाइस चांसलर श्री स्वप्न कुमार दत्ता सहित अन्य प्रोफेसरों ने किया स्वागत
👉 *नाट्यघर में आयोजित हुआ मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में शांतिदूत ने प्रदान किया विश्व शांति का सूत्र*
👉 *सांस्कृतिक विभाग के छात्रों ने सस्वर शांतिपाठ और मंगलाचरण का किया उच्चारण*
👉 *आध्यात्मिक गुरु ने विश्वविद्यालय के गुरुओं की जिज्ञासाओं को किया शांत*
👉 वाइस चांसलर व जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार ने दी भावाभिव्यक्ति
दिनांक 21-05-2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुचाएं
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 62* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
भद्रबाहु और चंद्रगुप्त का संबंध दिगंबर ग्रंथों में है और वह भी दसवीं शताब्दी के बाद के ग्रंथों में है। प्राचीन दिगंबर ग्रंथों में चंद्रगुप्त को दीक्षा प्रदान करने वाले भद्रबाहु को श्रुतकेवली नहीं बताया है उन्हें निमित्तवेत्ता बताया है।
दिगंबर ग्रंथों एवं शिलालेखों के आधार पर राजा चंद्रगुप्त का संबंध प्रथम भद्रबाहु के साथ न होकर द्वितीय भद्रबाहु के साथ सिद्ध होता है, जो निमित्तज्ञानी थे। प्रथम भद्रबाहु श्रुतकेवली थे। चंद्रगुप्त को दीक्षा देने वाले भद्रबाहु श्रुतकेवली नहीं थे। उनके पीछे कहीं श्रुतधर विश्लेषण नहीं आया है। श्वेतांबर परंपरा में उन्हें निमित्तवेता माना है और दिगंबर परंपरा में उन्हें सुनिमित्तधर एवं चरम निमित्तधर विश्लेषण दिया गया है।
भद्रबाहु ने चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्नों के फलादेश की घोषणा की थी। इससे भी चंद्रगुप्त के गुरु द्वितीय भद्रबाहु सिद्ध होते हैं जो निमित्तज्ञानी थे। श्वेतांबर परंपरा के अनुसार वराहमिहिर के बंधु द्वितीय भद्रबाहु ने अपने निमितज्ञान के बल पर कई भविष्य-घोषणाएं की थीं। वराहमिहिर का समय 1900-2000 वर्ष पूर्व का है, अतः अपने सोलह स्वप्नों का फलादेश पूछने वाले चंद्रगुप्त श्रुतकेवली भद्रबाहु (प्रथम) के अनुग सिद्ध नहीं होकर द्वितीय भद्रबाहु के अनुग सिद्ध होते हैं।
भद्रबाहु और चंद्रगुप्त दोनों के समय द्वादशवर्षीय दुष्काल का आघात लगा था। इस घटना साम्य के कारण द्वितीय भद्रबाहु के समय में होने वाले चंद्रगुप्त को ही प्रथम भद्रबाहु के समय में होने वाले चंद्रगुप्त मौर्य को मानकर उसे प्रथम भद्रबाहु का शिष्य मान लिया गया है और भिन्न-भिन्न काल में होने दो दुष्कालों को एक समय का मान लिया गया है। इसलिए दिगंबर परंपरा के अर्वाचीन ग्रंथों में सुदूर अंतराल में होने वाली घटनाओं का परस्पर सम्मिश्रण हुआ प्रतीत होता है।
दिगंबर परंपरा के अर्वाचीन ग्रंथों में चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु को ही निमित्तधर सिद्ध किया गया है।
जैन श्वेतांबर ग्रंथ प्रबंध कोष के आदी में श्रुतधर भद्रबाहु द्वारा निर्युक्तियां रची जाने का उल्लेख है। श्वेतांबर विद्वान शीलाङ्काचार्य आदि ने भी छेदसूत्रकार, निर्युक्तिकार एवं श्रुतधर भद्रबाहु को एक ही माना है क्षेत्र सूत्रकार सुधर भद्रबाहु द्वारा निर्युक्तियां रची गईं यह मान्यता बहुत लंबे समय तक जैन विद्वानों द्वारा समर्थित होती जा रही है।
पाश्चात्य विद्वान् डॉक्टर हर्मन जेकोबी ने सबसे पहले यह शोध की और बताया निर्युक्तिकार भद्रबाहु और छेदसूत्रकार श्रुतधर भद्रबाहु एक नहीं है।
*इस संदर्भ में डॉक्टर हर्मन जेकोबी की समीक्षा के मुख्य बिंदुओं* के बारे में विस्तार से जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi
👉 गांधीनगर (बैंगलोर): संस्कार निर्माण शिविर
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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 *आज का प्रवास - मोट ग्राम (पश्चिम बंगाल)*
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दिनांक - 23/05/2017
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