Update
26 मई का संकल्प
*तिथि:- ज्येष्ठ शुक्ला एकम्*
करते जाते जितना पदार्थों का उपभोग।
विकृत होता उतना ही लालच का रोग।।
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 गतिमान अहिंसा यात्रा पहुंची कैरापुर, लगभग पन्द्रह किलोमीटर का हुआ विहार
👉 कैरापुर के विद्यासागर विद्यापीठ में पहुंचे आचार्यश्री
👉 *पाप से बचने और शुभ कर्म करने का आचार्यश्री ने दिया ज्ञान*
👉 आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त कर लोगों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
दिनांक 25-05-2017
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News in Hindi
👉 जयपुर - पंच दिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन
👉 हिरियूर - ऑटो ड्राइवरों को बीमा पालिसी का निःशुल्क वितरण
👉 राजगढ - आध्यात्मिक मिलन
👉 रासीसर (नोखा) - आध्यात्मिक मिलन
👉 गंगाशहर में आयोजित प्रतियोगिता में तुषरा के श्री विशाल जैन का प्रथम स्थान प्राप्त करने पर सम्मान
👉 पेटलावद: मप्र-छत्तीसगढ़ स्तरीय संस्कार निर्माण शिविर का शुभारंभ
प्रस्तुति:🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*श्वेतणर्ण प्रधान आभामण्डल*
जो व्यक्ति शुक्ललेश्या प्रधान होता है उसके आभामंडल में श्वेतवर्ण की प्रधानता होती है ।
शुक्ललेश्या वाले व्यक्ति की भावधारा को समझने के लिए कुछ भावों का उल्लेख आवश्यक है ------
1) मन, वचन और काया की गुप्ति विशिष्ट हो जाती है ।
2) चित्त सदा प्रसन्न रहता है ।
3) आर्त्त और रौद्र ध्यान का प्रसंग नही आता ।
4) धर्म्य और शुक्लध्यान की धारा प्रवाहित रहती है ।
इन भावों के आधारपर निर्णय किया जा सकता है कि इस व्यक्ति के आभामंडल में श्वेत रंग की प्रधानता है ।
25 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 64* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
स्थानाङ्ग सूत्र में नौ गणों का उल्लेख है। उनमें एक गोदासगण है। यह गण गोदास मुनि से संबंधित था। गोदास मुनि आचार्य भद्रबाहु के प्रथम शिष्य थे। गोदास गण की प्रमुखतः
*(1)* ताम्र लिप्तिका, *(2)* कोटीवर्षिका,
*(3)* पौण्ड्रवर्धनिका, *(4)* दासी कर्पटिका
ये चार शाखाएं थीं। उनमें ताम्रलिप्तिका, कोटिवर्षिका एवं पौण्ड्रवर्धिनिका इन तीन शाखाओं की जन्मस्थली बंगाल थी। ताम्रलिप्ति, कोटि-वर्ष एवं पुण्ड्रवर्धन ये तीनों बंगाल की राजधानियां थीं। गोदास गण की तीनों शाखाओं से इन राजधानियों का नाम-साम्य भद्रबाहु के संघ का बंगाल भूमि से नैकट्य प्रकट करता है। अतः कई विद्वानों का अनुमान है भद्रबाहु विशाल श्रमण संघ के साथ दुष्काल में कुछ समय तक बंगाल में रहे। आचार्य हेमचंद्र का अभिमत भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। परिशिष्ट पर्व में लिखा है
*इतश्च तस्मिन्दुष्काले, कराले कालरात्रि वत्।*
*निर्वाहार्थं साधुसंघस्तीरं नीरनिधेर्ययौ।।55।।*
*(परिशिष्ट पर्व, सर्ग 9)*
परिशिष्ट पर्व के उक्त उल्लेखानुसार ससंघ भद्रबाहु दुष्काल के समय बंगाल के निकट समुद्री किनारों पर अथवा तटवर्ती बस्तियों में विहरण कर रहे थे। उन्होंने संभवतः इसी प्रदेश में छेदसूत्रों की रचना की। छेदसूत्रों के अध्ययन से यह प्रतीत होता है उस समय आहार, पानी आदि मुनिजनोचित सामग्री की सुलभता से उपलब्धि नहीं होने के कारण श्रमण समुदाय वनों की कठिन जीवनचर्या से निराश होकर नगरों और जनपदों की ओर बढ़ रहा होगा, इसलिए संभवतः शहरी जीवन से संबंधित मुनिचर्या की आचार-संहिता का निर्माण करना भद्रबाहु को आवश्यक अनुभूत हुआ। उन्होंने नगर में गृहस्थों के मकान आदि में रहने से संबंधित मुनिचर्या के अनेक विधि-विधान बनाए। उनके इस प्रयत्न के परिणामस्वरुप इन छेदसुत्रों की रचना हुई। छेदसूत्रों की रचना के बाद भद्रबाहु स्वयं नेपाल की ओर चले गए। नेपाल की ओर जाते समय उनके साथ शिष्य समुदाय के होने का उल्लेख ग्रंथों में नहीं है। आर्य स्थूलभद्र ने यहीं पर आकर आचार्य भद्रबाहु से दृष्टिवाद आगम का अध्यन किया। डॉक्टर हर्मन जेकोबी ने भद्रबाहु के नेपाल जाने की घटना का समर्थन किया है।
*श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु के सूर्य के समान तेजस्वी व्यक्तित्व* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 64📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
(दोहा)
साध्वी दीपांजी के सिंघाड़े मैं उस समय सत्रह साध्वियां थीं। संख्या विषयक बात उस समय तक व्यस्थित नहीं हो पाई थी। इसलिए किसी सिंघाड़े में तीन-चार साध्वियां थीं तो किसी सिंघाड़े में तेईस तक। साध्वी दीपांजी के सिंघाड़े की साध्वियों की संख्या को लक्ष्य कर जयाचार्य बोले— 'दीपांजी! तुम्हारे सिंघाड़े में सत्रह साध्वियां हैं। वहां आहार-पानी की व्यवस्था कैसे हो सकेगी?' साध्वी दीपांजी ने निवेदन किया— 'गुरुदेव! आपका पहला संकेत होते ही मैंने साध्वियों से बात कर ली। चार साध्वियां चातुर्मासिक तप करने के लिए तैयार हैं। चार साध्वियां दो-दो महीने की तपस्या करने के लिए कटिबद्ध हैं। चार साध्वियों ने एकांतर तप के लिए स्वीकृति दी है। दो साध्वियां एक दिन और दो साध्वियां एक दिन उपवास कर लेंगी। शेष साध्वियों का चातुर्मास्य हमीरगढ़ हो सकता है। इस क्रम से भाद्रपद मास तक प्रतिदिन आहार करने वाली दो साध्वियां रहेंगी। उनके लिए आहार-पानी की कमी रहे, यह संभव नहीं लगता। तब तक हमारा संपर्क बढ़ जाएगा और वर्षा कम होने से आसपास के गांवों का रास्ता भी खुल जाएगा। फिर क्या कठिनाई होगी?
साध्वी दीपांजी के साहस, सूझबूझ, संघनिष्ठा और गुरुदृष्टि के प्रति सजगता ने जयाचार्य को विशेष रुप से प्रभावित किया। उन्होंने विक्रम संवत 1910 में साध्वी दीपांजी को चित्तौड़ चातुर्मास्य करने की स्वीकृति दे दी। साध्वी दीपांजी ने 11 साध्वियों से वह चातुर्मास्य चित्तौड़ में किया। साध्वी जेतांजी आदि 6 साध्वियों को हमीरगढ़ भेज दिया। साध्वी दीपांजी का वह साहसिक निर्णय एक ऐतिहासिक और सूझबूझ भरा निर्णय था। भविष्य के लिए वह एक उदाहरण बन गया। उन्होंने तपस्या की जो योजना प्रस्तुत की थी, उसे क्रियांवित करने की आवश्यकता ही नहीं हुई। फिर भी कुछ साध्वियों ने लंबी तपस्या की। उनके आंकड़े अग्रांकित हैं— दो मासी एक (63 दिन), मासखमण चार, पखवाड़े दो तथा दस का थोकड़ा एक। एकांतर और छोटे थोकड़ों का विवरण अनुपलब्ध है।
*तेरापंथ धर्मसंघ की प्रथम साध्वीप्रमुखा सरदारसती के रोंगटे खड़े कर देने वाले साहसिक जीवन प्रसंग* पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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