Update
👉 भिवानी: वैश्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 'अणुव्रत' एवं जीवन विज्ञान का कार्यक्रम..
*700 से अधिक छात्र-छात्राओं ने अणुव्रत के संकल्प स्वीकार किए..*
👉 जयपुर: "संस्कार निर्माण" शिविर का तीसरा दिन
👉 इस्लामपूर - स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत शौचालय निर्माण
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 जयपुर - पंच दिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का द्वितीय दिवस
👉 अहमदाबाद - श्री मेघवाल मुनि श्री के दर्शनार्थ
👉 बैंगलोर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 अहमदाबाद - सिने अभिनेता श्री बच्चन का बधाई संदेश महिला मंडल को
👉 इस्लामपूर - स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत शौचालय निर्माण
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 65📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
(नवीन छन्द)
*59.*
जय युवाचार्य की करुणा से,
जिसमें अद्भुत साहस जागा,
दीक्षा ही कड़ी कसौटी थी,
भय स्वयं भीत होकर भागा।
साध्वीप्रमुखा सरदारां ने,
साध्वी समाज को मोड़ दिया,
कर नई व्यवस्था सुनियोजित,
इतिहास अनूठा जोड़ दिया।।
*31. जय युवाचार्य...*
तेरापंथ की प्रथम साध्वीप्रमुखा सरदारसती का जीवन जितना रोमांचक है उतना ही प्रेरक है। उनका जन्म चुरू के कोठारी परिवार में हुआ। दस वर्ष की अवस्था में फलौदी के ढड्ढा परिवार में उनका विवाह हो गया। विवाह के पांच महीने बाद ही पति के वियोग ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंने घर में रहते हुए धार्मिक दृष्टिकोण से जीना शुरु कर दिया। विक्रम संवत 1887 में श्रीमज्जयाचार्य का मुनि अवस्था में चुरू चातुर्मास्य हुआ। सरदारांजी का पीहर वहीं था। उन्हें व्याख्यान सुनने और तत्त्व समझने का मौका मिला। तत्त्व समझकर उन्होंने तेरापंथ की *'गुरुधारणा'* कर ली। उनकी धार्मिक साधना में नया उन्मेष आ गया।
विक्रम संवत 1896 मे श्रीमज्जयाचार्य ने युवाचार्य अवस्था में पुनः चुरू में चातुर्मास्य किया। सरदारांजी को एक और मौका मिला। उनकी वैराग्य भावना जागी। दीक्षा लेने का संकल्प पुष्ट हुआ। उन्होंने परिवार वालों के सामने अपनी भावना रखी। उन्होंने दीक्षा की आज्ञा देने की बात स्वीकार नहीं की। सरदारांजी का मन दीक्षा के लिए तड़पने लगा। उन्होंने आज्ञा प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के अभिग्रह, संकल्प, त्याग-प्रत्याख्यान और कठोर तप किए। किन्तु आज्ञा नहीं मिली।
*सरदारांजी ने दीक्षा की आज्ञा प्राप्त करने के लिए क्या-क्या कठोर तप किए, उनकी आज्ञा में बाधक कौन थे और उन्हें दीक्षा की आज्ञा कैसे मिली...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 65* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
श्वेतांबर परंपरा सम्मत ग्रंथों में भद्रबाहु के साथ किसी राजा का उल्लेख नहीं है। दिगंबर परंपरा सम्मत ग्रंथों में भद्रबाहु के साथ चंद्रगुप्त का उल्लेख है। रत्ननंदीकृत *'भद्रबाहु चरित्र'* में चंद्रगुप्त के स्थान पर चंद्रगुप्ति का उल्लेख है।
*भद्रबाहु मुनिपुंगव पट्ट पद्य।*
*सूर्यः स वो दिशतु निर्मल संघ वृद्धिम्।।*
*(जैन सिद्धांत भास्कर, भाग-1 किरण 4, पृष्ठ 51)*
श्रुतधर भद्रबाहु का व्यक्तित्व सूर्य के समान तेजस्वी था।
कल्पसूत्र में भद्रबाहु के गोदास आदि चार शिष्यों का, परिशिष्ट पर्व में विशिष्ट अभिग्रहधारी चार शिष्यों का, भद्रबाहु की नेपाल यात्रा का, स्थूलभद्र को दृष्टिवाद-वाचना देने का एवं दशाश्रुतस्कंध निर्युक्ति में दशा, कल्प, व्यवहार इन तीन छेदसूत्रों की रचना का पंचकल्पचूर्णि में निशीथ आगम के निर्यूहण का उल्लेख है। भद्रबाहु ने निशीथ का निर्यूहण नवमें पूर्व की तृतीय आचार-वस्तु से किया था।
भद्रबाहु के गोदास शिष्य से संबंधित गोदास गण और गोदास गण की शाखाओं का उल्लेख कल्पसूत्र स्थविरावली में मिलता है पर गोदास शिष्य का दीक्षा संस्कार भद्रबाहु के द्वारा होने का कहीं उल्लेख उपलब्ध नहीं है।
श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु के विशिष्ट अभिग्रहधारी चारों ही शिष्यों का स्वर्गवास भद्रबाहु स्वामी के शासनकाल में हो जाने के बाद उनकी शिष्य परंपरा आगे नहीं बढ़ सकी। श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु के बाद शिष्य परंपरा का विस्तार श्रुतधर आचार्य स्थूलभद्र से हुआ है। आर्य स्थूलभद्र आचार्य संभूतविजय के शिष्य थे।
श्रुतधर भद्रबाहु के समय मगध पर नंदवंश का राज्य था। तित्थोगाली पइन्ना ग्रंथ में वी. नि. से 60 वर्ष तक पालक वंश का शासन और उसके बाद 150 वर्ष तक नंदवंश के शासन का उल्लेख है।
*श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु की आगम रचना का परिचय* प्राप्त करेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*विचार प्रेक्षा --[ 1 ]*
एकाग्रता और विचार में द्वन्द्व है । यदि विचार का प्रवाह है तो एकाग्रता नही हो सकती और यदि एकाग्रता है तो विचार का प्रवाह नही हो सकता ।एकाग्रता के लिए जरुरी है एक विचार पर केंद्रित होना और विचार के प्रवाह को अवरुद्ध करना ।
विचार को रोकने का प्रयत्न एकाग्रता में सहायक नहीं होता । विचार को देखना शुरु करो, प्रवाह रुक जाएगा । विचार को देखना ध्यान-साधना का एक महत्वपूर्ण प्रयोग है ।
26 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 15 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - बर्धमान (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 26/05/2017
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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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