31.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 31.05.2017
Updated: 01.06.2017

Update

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*रसधातु प्रेक्षा*

शरीर प्रेक्षा का एक प्रयोग है सप्तधातु प्रेक्षा।मनुष्य का शरीर सात धातुओं से बना हुआ है । उनकी प्रेक्षा पद्धति यह है ---
रसधातु -----इसका ध्यान पाचनतंत्र पर किया जाता है । हम जिस अवयव को देखते हैं वह पुष्ट हो जाता है । जिस अवयव पर ध्यान नहीं किया जाता, वह धीरे-धीरे सिकुड़ने लग जाता है ।
पाचनतंत्र को स्वस्थ रखने के लिए आसन का प्रयोग किया जाता है । वह कार्य पाचन तंत्र की प्रेक्षा के द्वारा भी संभव हो सकता है । वृद्ध और रुग्ण व्यक्तियों के लिए यह बहुत उपयोगी है ।

31 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 69📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

(सोरठा)

*61.*
अणचां सती उदार, गण में 'दीर्घ तपस्विनी'।
श्रम सेवा सुखकार, कठिन काम करती सदा।।

*34. अणचां सती उदार...*

दीर्घ तपस्विनी साध्वी अणचांजी (श्रीडूंगरगढ़) तेरापंथ धर्मसंघ में तपस्या और सेवा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाली साध्वी थीं। अणचांजी ने विक्रम संवत 1970 में पूज्य कालूगणी के करकमलों से लाडनूं में दीक्षा ग्रहण की। 61 वर्षों की संयम पर्याय में उन्हें 47 वर्ष गुरुकुलवास में रहने का मौका मिला। 23 वर्ष आचार्यश्री कालूगणी के साथ और 24 वर्ष मेरे (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) साथ। सेवाभावी साध्वी के रूप में पहचान बनाने के बाद उनको नवदीक्षित, बीमार और प्रकृति से कठोर साध्वियों की सेवा करने का भरपूर अवसर मिला। साध्वी सूरजकंवर (राजगढ़) को छोटी अवस्था में ही क्षय रोग हो गया। वह विहार करने में असमर्थ हो गई। साध्वी अणचांजी ने अपनी सहयोगिनी साध्वियों के साथ उसे कंधों पर उठाकर जेठाना से ब्यावर और ब्यावर से लाडनूं पहुंचाया।

साध्वी प्यारांजी (पहुना) की प्रकृति तेज थी। वह साध्वी सजनांजी के साथ कालू से आ रही थी। श्रीडूंगरगढ़ आकर वह रुक गई। मेरी दृष्टि में उसका वहां रहना उचित नहीं था। किंतु उसको समझा कर वहां से विहार कराना किसी के वश की बात नहीं थी। मेरा निर्देश पाकर साध्वी अणचांजी एक दिन में 32 किलोमीटर चलकर बिदासर से श्रीडूंगरगढ़ पहुंचीं। उनके साथ जाने वाली दूसरी साध्वी पारवतांजी थी। साध्वी अणचांजी ने प्यारांजी को चातुर्य और माधुर्य से समझाकर गुरु-चरणों में पहुंचा दिया।

इस प्रकार संघ में किसी भी कठिन काम का प्रसंग उपस्थित होता, साध्वी अणचांजी उसे प्रसन्नता से स्वीकार करतीं और कुशलता से पूरा कर देतीं।

साध्वी अणचांजी की तपस्या में प्रारंभ से रुचि थी। मेरे आचार्य पदारोहण के उपलक्ष्य में होने वाली बख्शीशों के समय ब्यावर-महोत्सव पर साध्वी अणचांजी को एक पत्र मिला उसमें लघुसिंहनिष्क्रीडित तप का चित्र अंकित था। मेरे मुंह से सहज रुप से शब्द निकले— 'लो अणचांजी! हार पहन लो।' उसी दिन से उनके मन में वह तप करने की भावना पैदा हो गई। तीन वर्षों तक अपनी भावना को पकाकर उन्होंने विक्रम संवत 1996 में लघुसिंहनिष्क्रीडित तप की चौथी परिपाटी पूरी कर अपना सपना साकार किया। उस अवसर पर मैंने एक पद्य कहा—

अणचां! तू आछी करी, करणी शिव-सुख काम।
मुदो न दीसै मांस रो, चिलकै कोरी चाम।।

तपस्या और सेवा—दोनों क्षेत्रों में उन्होंने कठिन कार्यों का संपादन कर तेरापंथ धर्मसंघ में अनूठा इतिहास बना लिया।

*तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों के प्रेरक व्यक्तित्वों* से प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 69* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*

कामविजेता आचार्य स्थूलभद्र को श्वेतांबर परंपरा में अत्यंत गौरवमय स्थान प्राप्त है। वे तीर्थंकर महावीर के आठवें पट्टधर थे। वे श्रुतधर परंपरा के शब्दतः अंतिम श्रुतकेवली थे। दुष्काल के आघात से टूटती श्रुत श्रृंखला को सुरक्षित रखने का मुख्य श्रेय महास्थिर योगी आचार्य स्थूलभद्र की सुतीक्ष्ण प्रतिभा को है। आचार्य स्थूलभद्र के लिए श्वेतांबर परंपरा का प्रसिद्ध श्लोक है
*मङ्गलं भगवान् वीरो मङ्गलं गौतम प्रभुः।*
*मङ्गलं स्थूलभद्राद्या जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलं।।*

मंगलकारक तीर्थंकरदेव वीरप्रभु और गणधर इन्द्रभूति गौतम के बाद आचार्य स्थूलभद्र के नाम का स्मरण उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का सूचक है।

*गुरु-परंपरा*

आचार्य स्थूलभद्र के गुरु आचार्य संभूतविजय थे। संभूतविजय श्रुतधर आचार्य थे। श्रमण स्थूलभद्र ने आचार्य संभूतविजय से एकादशांगी का गंभीर अध्ययन किया। द्वादशवर्षीय दुष्काल की परिसमाप्ति के बाद दृष्टिवाद आगम का प्रशिक्षण श्रमण स्थूलभद्र को श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु से प्राप्त हुआ। जिन शासन के संचालन के दायित्व का भार भद्रबाहु के बाद उनके कंधों पर आया था अतः आर्य स्थूलभद्र आचार्य भद्रबाहु के उत्तराधिकारी थे एवं श्रुतधर आचार्य संभूतविजय के स्वहस्त दीक्षित शिष्य थे।

*जन्म एवम परिवार*

आचार्य स्थूलभद्र ब्राह्मणपुत्र थे। उनका गौतम गोत्र था। उनका जन्म वी. नि. 116 (वि. पू. 354, ई. पू. 411) में पाटलिपुत्र में हुआ। पाटलिपुत्र मगध की राजधानी थी। स्थूलभद्र के पिता का नाम शकडाल एवं माता का नाम लक्ष्मी था। शकडाल की नौ संतानें थीं। स्थूलभद्र और श्रीयक दो पुत्र थे। यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा ये सात पुत्रियां थीं।

*जीवन-वृत्त*

स्थूलभद्र के परिवार को राज्यसम्मान प्राप्त था। उनके पिता शकडाल की नियुक्ति नंद साम्राज्य में उच्चतम महामात्य पद पर थी। उनकी मंत्रणा से राज्य का संचालन होता था। उनके कार्यकौशल पर प्रजा प्रसन्न थी। नंद साम्राज्य की कीर्तिलता मंत्री के बुद्धिबल पर दिग्दिगंत में प्रसार पा रही थी एवं लक्ष्मी की अपार कृपा उस राज्य पर थी। लोकश्रुति के अनुसार नंद साम्राज्य में नौ स्वर्ण शैल थे। काशी, कौशल, अविन्त, वत्स, अंग आदि राज्य मगध के अंतर्गत थे।

स्थूलभद्र की जननी लक्ष्मी यथार्थ में लक्ष्मी थी। धर्म-परायणा, सदाचार संपन्ना, शीलालङ्कारभूषिता नारीरत्न थी।

मेधावी पिता की संतान मेधा संपन्न हो इसमें आश्चर्य क्या? शकडाल की सभी संतानें बुद्धि-वैभव से संपन्न थीं। सातों पुत्रियों की तीव्रतम स्मरणशक्ति विस्मयकारक थी।

शकडाल का कनिष्ठ पुत्र श्रीयक भक्तिनिष्ठ था एवं सम्राट नंद के लिए गोशीर्ष चंदन की तरह आनंददायी था।

स्थूलभद्र शकडाल का मेधा-संपन्न पुत्र था। उसे कामकला का प्रशिक्षण देने के लिए मंत्री शकडाल ने गणिका कोशा के पास प्रेषित किया।

*स्थूलभद्र के जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

News in Hindi

👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 10.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 31/05/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. आचार्य
  2. तीर्थंकर
  3. महावीर
  4. लक्ष्मी
  5. श्रमण
Page statistics
This page has been viewed 619 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: