Update
👉 हिसार - मंगल भावना समारोह का आयोजन
👉 सादुलपुर - अणुव्रत आचार संहिता पट्ट भेंट
👉 उत्केला (ओडिशा): अणुव्रत शिक्षक संगोष्ठि का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 बेंगलुरु: ज्ञानशाला का "रजत जयंती" समारोह
👉 सिलीगुड़ी - नशा मुक्ति अभियान
👉 रांमा मंडी - प्रेक्षाध्यान शिविर का आयोजन
👉 सूरत - वाद विवाद प्रतियोगिता
👉 बीदासर - आध्यात्मिक मिलन
👉 सैन्तला (ओडिशा) - आओ घर को स्वर्ग बनाएं विषयक कार्यशाला
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल -"जमीर बेरिया" (पश्चिम बंगाल) में*
👉 *गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..*
👉 *आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक - 02/06/2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*मांसधातु प्रेक्षा*
मांस और मांसपेशियां हमारी प्रवृति और शक्ति के हेतु है । मांसपेशियां की प्रेक्षा उनकी कार्य - प्रणाली को व्यवस्थित बनाती है । इनके ध्यान का केंद्र तेजस केंद्र है । इनकी स्वस्थता के लिए तेजस केंद्र की प्रेक्षा बहुत महत्वपूर्ण है । इसे शक्तिशाली बनाने के लिए "इ" और "फ" ---- इन दो वर्णों का जप भी किया जाता है ।
02 जून 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 71📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्रावक*
*36. टूटा खोड़ा...*
साध्वी रूपांजी का जन्म नाथद्वारा में हुआ। उनका विवाह रावलिया के स्थानकवासी परिवार में हुआ। विवाह के बाद अपने भाई मुनि खेतसी के संपर्क से उनके मन में वैराग्य का अंकुरण हो गया। उस समय उनकी अवस्था पन्द्रह वर्ष की थी। उन्होंने दीक्षा की अनुमति मांगी। ससुराल पक्ष का आग्रह था कि दीक्षा लेनी हो तो स्थानकवासी संप्रदाय में ली जाए। रूपांजी आचार्य भिक्षु के संघ तेरापंथ में दीक्षित होना चाहती थी। दोनों ओर का आग्रह प्रबल था। आखिर परिवार वाले उनको रावला में ले रहे और उनका पैर काठ के खोड़े में डालकर ताला लगा दिया।
रूपांजी 21 दिनों तक खोड़े में रहीं। इस शारीरिक यातना को उन्होंने समभाव से सहा। उन्होंने अपना समय आचार्य भिक्षु के नाम और नमस्कार महामंत्र के स्मरण में बिताया। आस्था और संकल्प का चमत्कार यह था कि 21 वें दिन खोड़ा अपने आप टूट गया। अचानक खोड़ा टूटने की आवाज ने आरक्षकों को चौंका दिया। स्थिति का जायजा ले उन्होंने अधिकारियों तक सूचना पहुंचाई। ठाकुरसाहब, पंच और परिवार के लोग वहां पहुंचे। टूटा हुआ खोड़ा सबके आश्चर्य का विषय बन गया।
रावलिया में घटित इस घटना का संवाद गोगुंदा के रावजी और उदयपुर के महाराणा भीमसिंहजी को मिला। रावजी ने स्वयं रावलिया आकर घटना की तहकीकात की। उधर उदयपुर महाराणा ने एक पत्र लिखकर रूपांजी को अविलंब दीक्षा की आज्ञा देने का आदेश जारी कर दिया। पारिवारिक जनों की आज्ञा प्राप्त होते ही उन्होंने रावलिया में ही आचार्य भिक्षु के पास दीक्षा ग्रहण की।
रूपांजी की दीक्षा के बाद उनकी बड़ी बहन कुशालांजी और भानेज रायचंदजी (तृतीय आचार्य) ने भी दीक्षा स्वीकार की। अत्यंत उत्साह और जागरूकता के साथ नौ वर्ष साधु जीवन का पालन कर साध्वी रूपांजी ने विक्रम संवत 1857 सिरियारी में अनशनपूर्वक अपनी जीवन-यात्रा संपन्न की।
*विधायक दृष्टिकोण वाले श्रावक जोधसाजी सिरोहिया* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 71* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
राजतंत्र का संचालन अर्थ से होता है। अतः राजनैतिक धुरा के संवाहक मंत्री को अर्थ की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अर्थकोष को उपेक्षित कर कोई भी राज्य सशक्त नहीं बन सकता। मेधावी मंत्री शकडाल अपने कार्य में पूर्ण सावधान एवं सजग था।
*अत्थक्खयं पलोइय, भणियमच्चेण देव! किमिमस्स।*
*दिज्जइ बज्जरइ निवो, सच्चाविओ जं तए एसो।।*
*(उपदेशमाला, विशेष वृत्ति, पृष्ठ 235)*
अर्थ-व्यय पर विचार-विमर्श करते हुए एक दिन महामात्य ने राजा से निवेदन किया "पृथ्वी-नायक! वररुचि को 108 दीनारों का यह पुरस्कार प्रतिदिन किस प्रयोजन से दिया जा रहा है?" राजा नंद का उत्तर था "महामात्य! तुम्हारे द्वारा प्रशंसित होने पर ही वररुचि को यह दान दिया गया है। हमारी ओर से ही देना होता तो हम पहले इसे प्रारंभ कर देते।"
"शकडाल नम्र हो कर बोला "भूपते! यह आपकी कृपा है, मुझे सम्मान प्रदान किया पर मैंने श्लोकों की प्रशंसा की थी, वररुचि के वैदुष्य की नहीं। वररुचि जिन श्लोकों को बोल रहा है वह उसकी अपनी रचना नहीं है।"
नंद ने कहा "मंत्रीश्वर! यह कैसे हो सकता है?"
अपने कथन की भूमिका को सुदृढ़ करते हुए मंत्री बोला "वररुचि द्वारा उच्चारित श्लोकों को आप मेरी सातों पुत्रियों द्वारा तत्काल सुन सकते हैं।"
मंत्री ने आगे कहा "राजन्! आपका आदेश मिलने पर मैं इसे आपके सामने प्रमाणित कर सकता हूं।"
राजा को मंत्री की बात पर विस्मय हुआ।
दूसरे दिन मंत्री ने राजा के परिपार्श्व में कनात के पीछे अपनी सातों लड़कियों के बैठने की व्यवस्था कर दी। पंडित वररुचि हमेशा की भांति राजसभा में उपस्थित हुआ और उसने 108 श्लोक बोले। वे श्लोक यक्षा में एक बार सुनकर क्रमशः वेणा छह बार और रेणा ने सात बार सुनकर ज्यों के त्यों दोहरा दिए। मंत्री शकडाल को अपने कार्य में सफलता मिली।
महामात्य की योजना ने राजा नंद की दृष्टि में वररुचि का महत्त्व क्षीण कर दिया। विद्वान् वररुचि राजा का कोपभाजन बना तथा उसी दिन से उसे 108 दीनारों का पुरस्कार मिलना बंद हो गया। वररुचि का यह अपमान महामात्य के लिए संघर्ष को आमंत्रण था।
वररुचि के हृदय में महामात्य शकडाल के प्रति प्रतिशोध की भावना अंकुरित हुई। जनसमूह पर पुनः प्रभाव स्थापित करने के लिए मायापूर्वक वररुचि गंगा से अर्थराशि प्राप्त करने लगा। प्रातःकाल कटीपर्यंत जल में स्थित विद्वान् वररुचि के द्वारा गंगा का स्तुति पाठ होता और उसी समय बड़ी भीड़ के सामने गंगा की धारा से एक हाथ ऊपर उठता और 108 स्वर्ण मुद्राओं की थैली वररुचि को प्रदान करता। यह सारा प्रपंच वररुचि द्वारा रात्रि के समय सुनियोजित होता था।
*वररुचि यह सब प्रपंच कैसे सुनियोजित करता था...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 11 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - जमीर बेरिया (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 02/06/2017
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