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#GOldenQuote संयम की राह चलो.. राही बनना ही तो.. हीरा बनाना हे!!! -आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज:) #AcharyaVidyasagar
picture & quotation sharing by Mr. Akshay Marje.
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हे #विद्यासागर... तू तो औरों से कितना निराला है... -Mr. Zaheed Ansari #Special_Sharing 😍⚠️ एक मुस्लिम मित्र ने आचार्य श्री के प्रति भावना ऐसे व्यक्त की:))
मैंने हर युग में एक से एक महान तपस्वी देखें हैं। भगवान देखे हैं, देवता देखे हैं। महानतम साधु-संत देखे हैं। बहुतेरे ऐसे हुए हैं जिन्हें आज भी मानव आस्थापूर्वक पूजते हैं। मैंने अपने जन्म से लेकर अब तक कई युग देखे हैं। विद्वान-ज्ञानी तो सिर्फ़ सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग के साथ कलयुग ही जानते हैं। इसके पहले के युगों को भी मैं जानती हूँ। सृष्टि निर्माण तथा विनाश का भी ज्ञान मुझे है। हर सदी में मैंने एक से एक तपस्वियों को जन्मा है। मेरी गोद इतनी विशाल है कि इसमें सदियों से करोड़ों जीव रहते आ रहे हैं। भाँति-भाँति प्रकार के जीव। सब की नियति निर्धारित है। समय काल अनुसार ये आते-जाते रहते हैं। कोई मुझे सुख दे जाता है तो कोई दुःख, फिर भी मैं धरती माँ का धर्म निभाते हुए सबकुछ सह जाती हूँ।
हे विद्यासागर.. उस दिन मेरी गोद के उस हिस्से पर जाने क्यों बहुत तपन महसूस हो रही थी, जहाँ तुम बैठ गए। हालाँकि उस दिन का तापमान क़रीब 41-42 सेंटी ही ग्रेड था। मैं तो इससे ज़्यादा तापमान झेलती आ रही हूँ। मेरी इस विशाल गोद में अलग-अलग तापमान पर आँच लगती है। कहीं-कहीं तो झुलसा देने वाली तपिश होती है, फ़िर भी मैं नियति का उपहार समझकर स्वीकार कर लेती हूँ। सूर्य देवता मुझसे इसी तरह प्रेम और स्नेह करते हैं। मेरी विशालकाय गोद को वो अपने तरीक़े से तपाते रहते हैं। ख़ैर, ये मेरा और उनका रिश्ता सृष्टि की पैदाईश से है और अंत तक रहेगा।
हाँ तो मैं कह रही थी उस दिन जब डोंगरगढ जाते वक़्त साले टेकरी के पास डामर की सड़क पर चिलचिलाती धूप में एकदम से तुम बैठ गए थे तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था। चले तो तुम सुबह थे, तुम्हें थकावट भी न थी, ऊर्जा से भरे थे, फिर भी तुम उसी जगह पद्मासन लगाकर बैठ गए जहाँ मुझे तकलीफ़ हो रही थी। तुमने मेरे कष्ट को भाँप लिया। तुम्हारे बैठने से मुझे बड़ा सुकून मिला। तुम चाहते तो आगे बढ़ जाते, पर तुमने मेरी पीड़ा को समझा और ठहर गए। मेरी गोद के भारतीय हिस्से में यूँ तो ढेरों तपोनिष्ठ हैं। वे सभी ईश्वर की आराधना, जनकल्याण और जनसेवा के ज़रिए मोक्ष का मार्ग खोज रहे हैं। इनमें से कई तो एयरकंडिशंस में विश्राम करते हैं। एयरकंडीशन व्हीक़ल्स में चलते हैं। धन्य हो कि तुम आज के कलयुग में भी पहले तीर्थंकर आदि भगवान ऋषभदेव की स्थापित दिगंबरी परंपरा के साथ नंगे पाँव विचरण करते हो। आदि नियमों के अनुरूप अपनी दिनचर्या का निर्वाह करते हो। तुम श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि सर्वश्रेष्ठ हो।
हे विद्यासागर... तुम बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ साधक और तपोनिष्ठ हो। तुम्हारी उस दयालुता पर मैं तुम्हें नमन करती हूँ। मैं तुम्हें अपने आशीष वचनों से अभिसिंचित करती हूँ। तुम्हें मोक्ष मिले, सांसारिक आवागमन से सदा के लिए मुक्ति मिले। विश्व क्षितिज पर तुम्हारे नाम का पताका फहराए। तुम्हारे बताए मार्ग पर चलने वाले अनुयायियों का भी कल्याण हो।
तुम्हारी पृथ्वी (सनातनी मुझे धरती माता भी कहते हैं)
Article written by Mr. Zaheed Ansari, EMS news agency.
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News in Hindi
2018 में श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली के होने वाले महामस्तक अभिषेक के लिए आचार्य श्री वर्धमानसागर जी सासंघ का भव्य मंगल प्रवेश आज!! Live Telecast @ Paras Channel & Jinvaani Channel @ 2:00 PM 🙂🙂 #AcharyaVardhmansagar #BahubaliBhagwan #Gomesthwar #Shravanbelgola
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मुनि पुंगव सुधासागर जी महाराज कहते है कही भी कोई लाइन धर्म ग्रंथो में लिखी मिल जाये तो उसे अपने जीवन मे आत्मसात करने की कोशिश करना चाहिये अपितु जब तक प्रयास करना चाहिये जब तक वह पंक्ति हमारे जीवन में उतर कर हमें सिद्ध ना हो जाये 🙂
पूज्यवर कहते है मेने जब भी किसी पुस्तक को पढ़ना प्रारम्भ किया और शुरू की ही 2 लाइनों में अटक गया तो मेरा मन आगे जब तक नही बढ़ता जब तक मेरे चिंतन में उन 2 लाइनों का अर्थ और आशय पूरा समझ ना आ जाये चाहे इस क्रिया में मुझे पूरे सात दिन का ही समय क्यों ना लगे, पूज्यवर की यही जिज्ञाशु ओर ज्ञानार्जन की ब्रत्ति उन्हें अन्य से पृथक ओर सहज बनाती है क्योंकि वह कभी अधूरे ज्ञान से किसी भी शंका के समाधान को करने की कोशिश नही करते वह किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के पूर्व उस प्रश्न को स्वयं जीते है तब कही जाकर उसका समाधान प्रस्तुत करते है
ठीक इसी प्रकार वह किसी भी कार्य को करने के पूर्व कई बार उसके बारे में विचार करते है उसके फल का पूर्वानुमान लगाते है और अपने विचारों के माध्यम से कार्य के अच्छे और बुरे फल में अंतर निकालते हुए उसका पूर्वालोकन कर प्रथम दृष्ट्या उचित लगने पर ही कार्य का शुभारंभ करते है_ मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज के आशीर्वाद से किसी भी तरह के कार्य का सिद्ध होने भी यही साबित करता है कि महारज के मन मे सदैव दुसरो के प्रति करुणा ओर वात्सल्य भाव बना रहता है वह स्वप्न में भी किसी जीव को किसी भी प्रकार से दुख देने का भाव नही करते और प्राणी मात्र के कल्याण की भावना भाते रहने से ही उनके चरणों के स्पर्श मात्र से हमारे सारे दुख क्षण मात्र में नष्ट हो जाते है* पूज्यवर का मनोबल इतना दृढ़ है कि वह अपनी इक्षाशक्ति के माध्यम से दूर रहते हुए भी परोक्ष रूप से अपने प्रत्येक कार्य का आशीर्वाद अपने गुरु आचार्य विद्यासागर जी से ले लेते है और उनका आशीष पाते ही प्रत्येक कार्य को करने में उन्हें सफलता प्राप्त हो जाती है_
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