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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 73* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
मंत्री शकडाल पुत्र श्रीयक के विवाहोपलक्ष पर राजकीय सामग्री से अपने प्रांगण में राजा नंद का विशेष सम्मान करना चाहता था। अतः छत्र-चामर आदि राजसम्मानार्ह अलंकारों का निर्माण प्रच्छन्न रुप में मंत्री शकडाल द्वारा करवाया जा रहा था। शुभभावना से किया गया मंत्री शकडाल का यह प्रयत्न वररुचि की भावना को साकार करने में प्रबल निमित्त बना। शकडाल की दासी के योग से विद्वान् वररुचि को अमात्य के गृह पर राज सम्मानार्ह निर्मित सामग्री के भेद का पता लग गया।
उसने सोचा महामात्य शकडाल के मुख पर कालिख पोतकर बदला लेने का यह अच्छा अवसर है। बालकों को मोदक देकर वररुचि ने उन्हें उत्साहित किया। वे चतुष्पथों, त्रिपथों तथा चच्चर मार्गों पर निम्नोक्त श्लोक का उच्चघोष से बार-बार उच्चारण करें
*एदु लोउ न वियाणाइ जं शयडालु करे सइ।*
*नंदू राउ मारोविणु,*
*सिरिओ रज्जि ठवेसइ।।32।।*
*(उपदेशमाला, विशेष वृत्ति, पृष्ठ 236)*
शकडाल जो काम कर रहा है उसे लोक नहीं जानते। वह राजा नंद को मारकर शकडाल श्रीयक को राजसिंहासन पर आसीन करेगा।
वररुचि द्वारा सिखाया गया है यह श्लोक बालकों ने कंठस्थ कर लिया। अन्नदान किसी के मुख को बंद कर सकता है और खोल भी सकता है। बालक दल बनाकर चौराहों, राजपथों, सार्वजनिक स्थलों एवं गलियों में घूमते एवं वररुचि द्वारा सिखाए गए श्लोक को बोलते थे। पुनः-पुनः उच्चारण किए जाने पर यह श्लोक महिलाओं को भी कंठस्थ हो गया। घर-घर में एक ही चर्चा सुनाई देने लगी।
कई बार कही गई मिथ्या बाद भी सत्य प्रतीत होने लगती है। यही इस घटनाचक्र में हुआ। बालकों एवं महिलाओं के मुख से उठती ध्वनियां नंद के कानों तक पहुंचीं। विचारों में मंथन चला। मगधेश्वर ने सोचा, राजभक्तिनिष्ठ अमात्य शकडाल कभी ऐसा नहीं कर सकता।
क्षणांतर के बाद राजा नंद के विचारों में मोड़ लिया। उन्होंने मन ही मन सोचा हर व्यक्ति के अव्यक्त मन रूपी महासागर में दुर्बलताओं के कई रुप दबे रहते हैं। अहं और माया की मरीचिका किसी भी क्षण अपना रूप दिखाकर मानव मन को भ्रांत बना सकती है। अमात्य हो या राजकुमार किसी का अत्यधिक विश्वास राजनीति की भूल है।
*राजा नंद के विचारों में हो रहे ये उतार-चढ़ाव क्या मोड़ लेते हैं...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 73📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्रावक*
*64.*
भण्डारी बादर ने ज्यों तिनके को तोड़ा,
एक बात पर यति-उपाश्रय जाना छोड़ा।
लाला बिरधी तेरापंथ तत्त्व के ज्ञाता,
गोयलजी का ज्ञान, मान था भगत कहाता।।
*38. भण्डारी बादर ने ज्यों...*
जोधपुर के बादरमलजी भंडारी शासन-भक्त और जागरूक श्रावक थे। जोधपुर के राजघराने में उनका अच्छा प्रभाव था। उनके बारे में एक कहावत प्रचलित थी— "मांहै नाचै नादरियो बारै-बारै बादरियो।" राजघराने के अंतःपुर संबंधी व्यवस्था का दायित्व नादरजी का था और राजकाज में बादरजी का दबदबा था।
उस समय यति परंपरा अच्छे रूप में चल रही थी। गांव में साधु-साध्वियों के न होने पर उपश्रयों में यति व्याख्यान देते थे। यतियों का समाज पर प्रभाव रहता था। वे सिद्धांत, न्याय, तर्क, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि विषयों के ज्ञाता होते थे। जैनशासन की प्रभावना में उनका अच्छा योगदान रहता था। जोधपुर के उपाश्रय में भी एक यति थे। वे व्याख्यान देते। भंडारी बादरमलजी वहां जाते थे। एक दिन वे बोले— 'यतिजी महाराज! हम आपके पास आते हैं। आपका व्याख्यान सुनते हैं। हम आपको गुरु नहीं मानते फिर भी आपके प्रति सम्मान के भाव रखते हैं। आप जानते हैं कि मैं तेरापंथी हूं। अपने धर्म और धर्मगुरु के प्रति मेरी बहुत श्रद्धा है। मेरा एक अनुरोध है कि आप कभी तेरापंथ की निंदा-आलोचना न करें। यदि ऐसा कुछ हुआ तो हम उपाश्रय में नहीं आएंगे।' यतिजी ने कहा— 'भंडारीजी! नींदा-आलोचना का प्रश्न ही नहीं है। आप आते रहें।' भंडारीजी बोले— 'ठीक है हम व्याख्यान में आएंगे। आप भी हमारे घर गोचरी के लिए आया करें।' कई दिनों तक यह क्रम चलता रहा।
एक दिन भंडारीजी कुछ विलंब से पहुंचे उपाश्रय में प्रवेश करते ही उन्हें तेरापंथ की खुली आलोचना सुनाई दी। वे खड़े रहे। उन्होंने पूरी बात सुन ली। उसके बाद वे भीतर गए। उन्हें देखते ही खामोशी छा गई। भंडारीजी बोले— 'यतिजी महाराज! आज क्या चर्चा हुई?' यतिजी सकपका गए। उन्होंने संभलने का प्रयास करते हुए कहा— 'भंडारीजी! कोई खास बात नहीं है।' भंडारीजी बोले— 'खास बात कैसे नहीं, मैंने अपने कानों से तेरापंथ की आलोचना सुनी है। आज के बाद उपाश्रय में आने का त्याग है।' यतिजी ने भंडारीजी को विश्वास दिलाना चाहा कि भविष्य में ऐसा कुछ नहीं होगा। वे आना-जाना बंद न करें। किंतु भंडारीजी अपने निर्णय पर अडिग रहे।
*तेरापंथ के दान-दया विषयक सिद्धांतों का गहरा ज्ञान रखने वाले श्रावक लाला बिरधीचंदजी* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
*नई दिल्ली से आरम्भ अहिंसा यात्रा का कोलकाता महानगर में मंगल प्रवेश*
👉 *उमड़ा श्रद्धालुओं का हुजूम, मानों लहरा उठा हो मानव का सागर*
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दिनांक 04-6-2017
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 8.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - हिन्द मोटर, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)*
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दिनांक - 05/06/2017
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