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🔺अफवाहों से सावधान🔺वाट्सएप पर कल सुबह से एक गलत मैसेज चल रहा है जिसमें यह लिखा है कि #आचार्य_विद्यासागर जी महाराज का स्वास्थ्य खराब है यह मैसेज पूर्णतः मिथ्या है कृपया ऐसे मैसेज समूह में फॉर्वर्ड करने से बचे❌ #Important
आचार्य श्री अपने विशाल बालयति संघ (38 मुनिराज) सहित श्रीक्षेत्र चन्द्रगिरि जी,डोंगरगढ़ जिला-राजनांदगांव छ.ग. में विराजित है व पूर्ण स्वस्थ है इसलिए मिथ्या मैसेज भेजने से बचे!!
Source: © Facebook
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घर में अगर बेटा जन्म ले तो समझो अभिषेक करने वाला आ गया। और अगर बेटी जन्म ले तो समझो चौका लगाने वाली आ गयी -मुनि श्री सुधा सागर जी
#जिज्ञासा_समाधान -अगर कोई व्यक्ति नित्य पूजन अभिषेक करता है, तथा जिस घर में पूजन के धोती-दुपट्टे सूखने के लिए डले रहते हैं, उस घर में कोई आधि- व्याधि, भूत-व्यंतर आदि कभी कोई परेशान कर ही नहीं सकते।
छोटे बच्चों को अपना ध्यान खेलकूंद से हटाकर पढ़ाई में लगाना चाहिए। सदा अपने से अच्छे की संगति करना चाहिए और स्वयं को उसके अनुसार ढालने का प्रयास करना चाहिए।* अपने आचार-विचार अच्छे रखते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। सफलता आपको अवश्य मिलेगी।
जिनके छोटे बच्चे होते हैं, उनका कर्तव्य है, वो अपने बच्चों का हर समय ध्यान रखें। 8 वर्ष तक के बच्चे के अच्छे व बुरे कार्यों का फल उसके माता- पिता को भी मिलता है।* अतः प्रथम कर्तव्य आपका अपने बच्चे के प्रति है, बाद में धर्म कार्य करना चाहिए।
जो बच्चा- बच्ची बड़े होने के बाद बिगड़ रहे हैं, इसमें 90% माता- पिता का दोष है।* माता पिता जवान बच्चों को को-एजुकेशन में पड़ने भेजते हैं, तो वह आग और घी का ही सहयोग करा रहे हैं। जब एक शादी शुदा विपरीत लिंगी से प्रभावित हो जाता है, तो बच्चे तो अभी जवान हैं, वो कैसे इस आकर्षण से बच पाएंगे। अतः को-एजुकेशन सिस्टम को खत्म करना चाहिए।
कानून और जैन धर्म एक ही है। मूल कानून जो बनाया गया उसमे 12 जैन लोग थे। अम्बेडकर भी जैन धर्म के समर्थक थे। भगवान ऋषभदेव के द्वारा बहुत अच्छी व्यवस्था दी गई है। हिन्दू लॉ के अनुसार मंदिरों में पूजन पद्दति भक्तों के अनुसार होती है, जबकि अल्पसंख्यक लॉ में मंदिरों की आम्नाय के अनुसार पूजन का प्रावधान है। इसी कारण धर्म दृष्टि से जैनों को अल्पसंख्यक होना पड़ा। *इस बात को समझने के लिए डॉ रमेशचन्द जी द्वारा लिखित जैन धर्म की मौलिक विशेषताएं किताब अवश्य पड़नी चाहिए।
मंदिर से घर की दिवार से दिवार मिली है, तो इससे परिवार में कुछ न कुछ अहित जरूर होता है। मंदिर किसी का अहित नहीं करता, बल्कि हम मंदिर की शुद्धि का ध्यान नहीं रख पाते इस कारण हमारा अहित स्वयमेव हो जाता है।
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🔺अफवाहों से सावधान🔺वाट्सएप पर कल सुबह से एक गलत मैसेज चल रहा है जिसमें यह लिखा है कि #आचार्य_विद्यासागर जी महाराज का स्वास्थ्य खराब है यह मैसेज पूर्णतः मिथ्या है कृपया ऐसे मैसेज समूह में फॉर्वर्ड करने से बचे❌ #Important
आचार्य श्री अपने विशाल बालयति संघ (38 मुनिराज) सहित श्रीक्षेत्र चन्द्रगिरि जी,डोंगरगढ़ जिला-राजनांदगांव छ.ग. में विराजित है व पूर्ण स्वस्थ है इसलिए मिथ्या मैसेज भेजने से बचे!!
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उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते वहां रास्ता नहीं यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं जो रास्ता बनाते जाते हैं महापुरूष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है। --पूज्य #आचार्यश्री #विद्यासागर महाराज
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है। लेकिन सम्यग्दर्शन मिले जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले यह नियम नहीं होता। अंतरंग निमित्त बहुत महत्वपूर्ण होता है। चक्रवर्ती भरत के 923 बालक जिन्होंने कभी नहीं बोला वे दादा तीर्थंकर से 8 वर्ष पूर्ण होने के बाद कहते हैं कि हमें भगवन हमें दीक्षा प्रदान करें। साक्षात तीर्थंकर भगवान का निमित्त पाकर बिना उपदेश सुने ही स्वयं दीक्षित हो जाते हैं। यह समवशरण का अतिशय है। वे दीक्षा धारण कर सीधे जंगल चले जाते हैं। उपदेश के बिना समग्यदर्शन भी संभव है। जानकर भी शास्त्र का श्रद्धान नहीं करना शास्त्र का अवर्णवाद है। मोक्ष मार्ग का निरूपरण करते समय स्वयं को संयत कर लेना चाहिए, वरना स्वयं के साथ-साथ मोक्ष मार्ग का भी बिगाड़ हो जाता है। कषाय के रूप अनेक प्रकार के होते हैं। जिस तरह सूर्य चंद्रमा और दीपक से अलग अलग रोशनी मिलती है। मुझे मोक्ष मार्ग मिला है तो दूसरों को भी प्राप्त हो जाए, ऐसा बात्सल्य भाव ज्ञानी को होता है। जिस तरह गाय अपने बछड़े के प्रति वात्सल्य भाव रखती है। जो केवल ज्ञान का विषय होता है वह उसे मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान का विषय नहीं बना सकते ।
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