Update
महातपस्वी की तपस्या का बढ़ता तापमान -यूं तो छतीसगढ़ में इन दिनों 45 से 46 डिग्री तापमान होना सामान्य सी बात है वैसे भी यहाँ की गर्मी दूर दूर तक कुख्यात है #AcharyaVidyasagar
इन दिनों *सूरजदादा की दादागिरी* अपने पूरे उफान पर है सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक झुलसा देने वाली गर्म आग उगलती लपटें, लिपट लिपट कर लोटपोट कर देती है इस नश्वर कहे जाने वाले शरीर को। इन्ही बैरन लपलपाती लपटों से डोंगरी यानि छोटी छोटी पहाडियो से घिरा डोंगरगढ़ भी अछूता नही है*।
लेकिन चन्द्रगिरि के सन्त निवास में पूर्व दिशा के कक्ष में कुछ अद्भुत सा नज़ारा दिख रहा है मूलाचार की जीवंत अनुकृति, निर्दोष चर्या पालक, निर्मोही, निस्पृही, महासन्त, आचार्यश्री ने आज प्रातः ही अपने मस्तक के केशो को ऐसे उखाड़ फेंका मानो कोई कुशल माली अपने बगीचे के खरपतवार उखाड़ उखाड़ फेक रहा हो।*_ मुखमण्डल पर वैसी ही सरल,निश्छल,शुभ्र,स्मित, मोहक मुस्कान और जाहिर है जब आज केशलोंच हुआ तो आचार्यश्री का उपवास भी है।*_
_*दोपहर के सामायिक काल में जब गुरुदेव ध्यानस्त थे तब लगता था कि चौथे काल में तीर्थंकर भगवान भी ऐसे ही ग्रीष्मकाल में ध्यान लगाते होगे, दोपहर भी बीतने को है गुरुदेव के मुखमण्डल में वही तेज़ जो आम दिनों में होता है
_*उनके मुखमण्डल से लगता है कि इन भीषण अग्निवर्षा में भी आचार्यश्री शीतलता का अहसास कर रहे हो*_
_*सामायिक काल के बाद क्रोधित बदलियों की टोली टूट पड़ी आज सूरजदादा पर उसके इस दुःसाहस पर न जाने प्रातः से ही आग उगलने वाला सूरज दादा दोपहर बाद रुआंसा सा हो गया।*_
उसे अहसास होने लगा साथ ही पश्चाताप भी कि मुझे कम से कम आज तो इतना नही तपना था सूरज दादा का गला और आँखे भर आई है जब उसने खिड़कियों सेझांक कर दर्शन किये महावीर के लघुनन्दन के।*_
_*कहने वाले कहने लगे है कि अग्नि बरसाने वाले सूरज दादा की आँखों से यदि कुछ आंसू की बूंदे गुरुचरणों का स्पर्श करें तो कोई अचरज नही होगा।*_
_आचार्यश्री के आज भीषण गर्मी में भी केशलोंच करने पर एक शब्दचित्र प्रस्तुति् एवमभावांकन_
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"धरोहर"
'बनेडियाजी'
(900 साल के ऐतिहासिक जैन मंदिर)
ग्राम बनेडिया, तहसील देपालपुर,
इंदौर जिला, मध्य प्रदेश.
इंदौर कलेक्टर पी. नरहरि साहब ने अतिशय क्षेत्र श्री दिगम्बर जैन मंदिर बनेडिया जी (900 Year old Temple) के बारे जानकारी ली... उनके फेसबुक अकाउंट पर बनेडिया जी पर बनाया गया एक छोटा वीडियो.. 😊😊
एक बुढ़िया की लुटिया गज़ब कर गयी,
जब महलों की लुटिया उलट उलट गयी,
तब बुढ़िया की लुटिया गज़ब कर गयी...
Yesterday was the 1037th anniversary of sanctification of bhagwan bahubali of shravanbelgola. गोमटेश भगवान बाहुबली श्रवणबेलगोला की प्रतिस्ठा को 1037 वर्ष हो गए हैं:)) #BahubaliBhagwan #Shravanbelgola #Gomesthwar
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News in Hindi
#सांगानेर मंदिर का इतिहास जहाँ #मुनि_सुधासागर जी प्रतिमाए निकाली थी - #आचार्य_शांतिसागर जी महाराज ने अपनी उपदेश में कहा कि यह मंदिर सात मंजिला है । पांच मंजिला नीचे है और दो मंजिला ऊपर है । अंतिम दो तल्लों में कोई नहीं जा सकता है । मध्य की पांच मंजिल में यह अलौकिक रत्नमयी चैत्यालय विराजमान है। 1971 #आचार्य_देशभूषण जी ने उन प्रतिमाओं को निकाला था 😊
ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार जहां संघी जी का मंदिर है वहां एक विशाल बावड़ी थी । उसके किनारे पर एक अति प्राचीन जीर्ण शीर्ण जिन चैत्यालय था जो तल्ले वाले मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था, जिसके तलघर बावड़ी के अंदर थे । आठवी शताब्दी के अंतिम चरण में बैसाख शुक्ला तीज के दिन आकस्मिक रूप से नगर की पश्चिम दिशा से अलौकिक सजा हुआ विशाल गजरथ चलता हुआ आया, उसे विशाल हाथी खींच रहे थे । रथ पर कोई महावत नही था । अनेक स्थानों पर जनता एवं पहरेदारों द्वारा रोके जाने पर भी वह रात नहीं रुका । तेज़ गति से चलकर इस बावड़ी के किनारे, चैत्यालय के पास आकर वह स्वतः ही रुक गया । यह रथ कहां से कैसे आया इसकी जानकारी किसी को नही मिल पाई रथ रुकते ही हजारों नगरवासी एकत्रित हो गए । सेठ भगवानदास संघी जी की हवेली भी इसी बावड़ी के पास ही थी, वे रथ के पास आये तो देखा कि ये तो दिगम्बर जैन प्रतिमा है । तुरंत शुद्ध वस्त्र पहनकर साष्टांग नमस्कार किया, प्रतिमा को रथ से उतारकर बावड़ी किनारे प्राचीन मंदिर जी मे विराजमान किया । जैसे ही प्रतिमा को रथ से उतारा वैसे ही रथ अदृश्य हो गया । #muniSudhasagar #acharyaShantisagar
_*उपरोक्त कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि यह चतुर्थकालीन भगवान आदिनाथ की प्रतिमा कहीं किसी दूरस्थ प्रदेश के किसी मंदिर जी मे विराजमान होगी, वह मंदिर उजाड़ गया होगा या अनेक संकटों से घिर गया होगा, वहां के रक्षक देव ने इस अतिशयकारी प्रतिमा को गजरथ में बैठाकर इस चतुर्थकालीन नगर संग्रामपुर (आठवीं शताब्दी में सांगानेर का नाम संग्रामपुर ही था) के इस बावड़ी के किनारे स्थित अति प्राचीन तल्ले वाले मंदिर को ध्यान में रखकर अथवा इसके अतिशय से प्रभावित होकर अथवा यक्ष ने अवधिज्ञान से जानकर की संघी जी जैसा आसन्न भव्य श्रावक इस प्रतिमा के निमित्त एक भव्य जिनालय का निर्माण करा सकेगा, यहां विराजमान करने की सोची होगी । जिस समय संघी जी ने प्रतिमाजी को मंदिर जी मे विराजमान किया उस समय आकाशवाणी हुई थी कि यह प्रतिमा चतुर्थकालीन है, इसकी स्थापना के लिए इसी प्राचीन मंदिर पर एक नया भव्य मंदिर निर्माण करो । तदनुसार सेठ भगवानदास जी ने इस प्राचीन तल्ले वाले मंदिर को नवीन मंदिर में परिवर्तित करने की घोषणा कर दी तथा कारीगरों को बुलाकर प्राचीन मंदिर को नया रूप देने की योजना बनाई और कार्य प्रारंभ हुआ ।
_*हजारों साल की ऐतिहासिकता का साक्षी यह भूगर्भ स्थित जिनालय है । इसमें से अभी तक जितनी प्रतिमाएं निकाली गई हैंउ उनमें किसी पर भी प्रशस्ति नही है । मात्रा एक प्रतिमा पर संवत 7 उत्कीर्ण है । पूर्वकथित तल्ले वाले मंदिर का नाम तो कथन परंपरा में है, लेकिन कहीं भी किसी भी लेखक ने इस चैत्यालय एवं जिन बिम्बों का उल्लेख नही किया । हो सकता है इस जिनालय को संघी जी ने उस प्राचीन तल्ले वाले मंदिर के तल्ले को बंद करके ऊपर वह विशाल मंदिर बना दिया हो । जो कुछ भी हो, इसके ऐतिहासिकता इतिहास के गर्भ से अभी तक प्रसूत नही हुई, जनश्रुति का जरूर विषय बना रहा ।
चारित्रचक्रवर्ती परम पूज्य आचार्य शांतिसागर महाराज का संघ सहित यहां पदार्पण सन 1933 की मंगसिर बदी तेरस को हुआ । आचार्य शांतिसागर जी महाराज ने आदिनाथ बाबा के दर्शन कर अलौकिक शांति का अनुभव किया तथा कहा कि यह चतुर्थकालीन महा अतिशयकारी प्रतिमा है । आप लोग इस मंदिर का जीर्णोद्धार करो, पूजन पाठ कर जीवन को धन्य बनाओ ।
_*एक दिन सांगानेर के किसी वृद्ध ने महाराज से कहा कि महाराज इस मंदिर के नीचे कोई तलघर हैं तथा उनमें रत्नमयी जिन प्रतिमाएं हैं, ऐसा हमारी पूर्वज कहा करते थे। महाराज ने कहा कि ऐसी बातों पर अधिक विश्वास नही करना चाहिए । लेकिन आकस्मिक रूप से उसी रात्री को ब्रह्म मुर्हूत में यक्ष ने महाराज को स्वप्न दिया । प्रातःकाल उठकर महाराज ने कहा कि आप लोगों द्वारा कही गयी जनश्रुति झूठी नही है, मुझे स्वप्न में भूगर्भ स्थित जिनालय के दर्शन हुए हैं । तदनुसार महाराज ने पूजा वाले कमरे में गुफाद्वार पर कुछ दिन तक जाप किया । मंगसिर सऊदी दशमी को प्रातःकाल 7:30 बजे गुफा में अकेले ही प्रवेश किया । 20 से 25 मिनट बाद महाराज श्री सम्पूर्ण चैत्यालय को लेकर गुफा द्वार पर आ गए । बड़ी तादाद में बाहर मंडप में जन समूह एकत्रित था सैकड़ों कलशों से अभिषेक हुआ ।*_
_*उस समय आचार्य शांतिसागर जी महाराज ने अपनी उपदेश में कहा कि यह मंदिर सात मंजिला है । पांच मंजिला नीचे है और दो मंजिला ऊपर है । अंतिम दो तल्लों में कोई नहीं जा सकता है । मध्य की पांच मंजिल में यह अलौकिक रत्नमयी चैत्यालय विराजमान है। उस समय जनता ने पहली बार दर्शन किये थे ।
_*उसके बाद अनेक आचार्य मुनि पधारे लेकिन चैत्यालय निकालने का निमित्त नही बन पाया । 38 साल बाद जून सन 1971 में आचार्य देशभूषण जी महाराज ने इस चैत्यालय को तीन दिन के लिए निकाला । बड़ी धर्म प्रभावना हुई ।संकल्पानुसार चैत्यालय को भूगर्भ में विराजमान करने में देर हो गई । समय पूर्ण होते ही चारों तरफ गुफा से लेकर स्टेज तक असंख्यात कीड़े मंदिर में, पांडाल में भर गए । आचार्य महाराज ने बताया हमने चैत्यालय वापिस विराजमान करने का समय 8 बजे का दिया था अब 10 बज गए हैं इसीलिए उपसर्ग हो रहा है ।*_
_*इसके बाद सन 1987 में आचार्य विमलसागर जी महाराज ने तथा 10 मई सन 1992 ई को आचार्य कुंथुसागर जी महाराज ने इस भव्य एवं अलौकिक चैत्यालय के जनता को दर्शन कराए ।*_
_*इसके बाद इस युग के महातपस्वी संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य, तीर्थ क्षेत्र उद्धारक, आद्यात्मिक संत मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ का पदार्पण सांगानेर में हुआ । मुनि श्री कुछ घंटों का विचार करके ही यहां आए थे लेकिन भगवान आदिनाथ की प्रतिमा को देखकर बहुत ही आनंदित हुए । सारे मुनि संघ को अलौकिक शांति मिली । अतः पूरा मुनि संघ 46 दिन तक यहां रुका । बहुत धर्म प्राभावना हुई । मुनि श्री अपने प्रवचन में इस क्षेत्र की महिमा का वर्णन करते थे ।*_
_*मुनि श्री वास्तुशास्त्र के ज्ञाता हैं । अतः इस संघी जी के मंदिर के वास्तु दोष हटाकर जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी । तदनुसार जीर्णोद्धार हुआ तथा मंदिर को नया भव्य रूप भी दिया जा रहा है । मुनि श्री के बताए अनुसार वास्तुदोष हटने के बाद तो यह क्षेत्र दिन दूना रात चौगुना लोगों की श्रद्धा का केंद्र बनता गया । नाना प्रकार के अतिषयों से लोग लाभान्वित होने लगे ।*_
_*दिनांक 12 जून को समाज एवं कमेटी के विशेष आग्रह पर मुनि श्री प्रातः काल भूगर्भ स्थित यक्ष रक्षित चैत्यालय को तीन दिन के लिए निकाल कर लाये । मुनि श्री ने प्रवेश करने से पहले सारे नियमों की जानकारी की । आचार्य शांतिसागर जी महाराज के बताए सारे नियमों को अच्छी तरंग जान लेने के बाद ही चैत्यालय निकालने का आशीर्वाद दिया । उन्ही नियमों को गुरु आज्ञा मानकर, स्वीकार कर, गुफा में प्रवेश किया । प्रवेश करने के पूर्व आपने सात दिन तक ब्रह्म मुर्हूत में गुफा के द्वार पर बैठ कर जाप किया । सातवें दिन 7:30 बजे आपने गुफा में प्रवेश किया । एक घंटे गुफा में रहने के बाद मुनि श्री प्रसन्न मुद्रा में चैत्यालाय लेकर गुफा के बाहर आये । चारों ओर जय जयकार से आकाश गुंजायमान हो गया ।*_
प्रस्तुति
*राजेश जैन*
संयोजक
श्री दि जैनाचार्य विद्यासागर पाठशाला भिलाई
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