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feel it ❤️ जिनेंद्र भगवंता.. आदिनाथ अरिहंता.. ❤️ मिथ्यात्व बिरथेने.. सम्यक् दर्शन विरचेने.. 🙏 सुने कन्नड़ भाषा में 94 Year के मुनि संयमसागर जी की मधुर आवाज़ में.. साथ में हैं आचार्यविद्यासागर जी के शिष्य.. जो इस स्तोत्र को सुन हर्षित हो रहेहैं:)) स्तुति का अर्थ हमें समझ नहीं आया पर सुन बहुत ही शांति मिली ❤️❤️😇 #share करना ना भूले:)
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Glorious ❤️ #RamtekUPDATE #आचार्यविद्यासागर महाराज जी महाराज तथा सभी 38 महाराज लोगो का आज उपवास हें! जानकारी अनुसार अन्तरंग से चतुरमास स्थापना आज हैं चातुर्मास स्थापना समारोह @ रविवार, 16जुलाई @ शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, रामटेक, जिला- नागपुर (महाराष्ट्र) में होगा! #Ramtek
जो भी रामटेक दर्शन करने जाए Photograph/Video हमें भेजे आपका नाम mention करके हम share करेंगे [email protected] । ये पोस्ट इतना #share करे हर जैन को पता चल जाए हमारे देवता आचार्य श्री का चातुर्मास रामटेक में हैं:))
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#आचार्यज्ञानसागर जी महाराज के अथक प्रयास से सराक जाति प्रकाश में आई.. जो निर्ग्रन्थ साधुयों का साथ न मिलने के कारण वे जैन समाज की मूलधारा से कटकर #आदिवासी और जनजाति की श्रेणी में आ गये। #SarakJain #AcharyaGyanSagar
सराक एक जैनधर्मावलंवी समुदाय है। इस समुदाय के लोग बिहार, झारखण्ड, बंगाल एवं उड़ीसा के लगभग 15 जिलों में निवास करते हैं। इनकी संख्या लगभग 15 लाख है। सराक संस्कृत के शब्द श्रावक का अपभ्रंश रूप है। जैनधर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु को श्रावक कहते है। सराक जैनधर्म के 23वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ के तीर्थकाल के प्राचीन श्रावकों की वंश परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। सराक जाति पिछले दो हज़ार वर्षों से देश में व्यवस्थित शासन के अभाव, अराजकता, नैतिक अस्थिरता आदि परिस्थितियों में धर्मद्रोहियों से बचने के लिए जंगलों में भटकती रही है। समय की मार, क्रूर शासको के अत्याचारों के साथ-साथ अनेक झंझावातों एवं विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने अपने मूल संस्कारों जैसे-नाम/ गोत्र/ भक्ति/ उपासना/ पुजपध्दति/ जलगालन/ रात्रिभोजन त्याग/ अहिंसा की भावना को नहीं छोड़ा। निर्ग्रन्थ साधुयों का साथ न मिलने के कारण वे जैन समाज की मूलधारा से कटकर आदिवासी और जनजाति की श्रेणी में आ गये। जिस प्रकार ‘‘सरावगी शब्द श्रावक शब्द का बिगड़ा रूप है, उसी प्रकार सराक, सरावक आदि भी श्रावक शब्द का ही बिगड़ा रूप है।
इनके पूर्वजों की संकट कालीन स्थिति का जीता—जागता उदाहरण हमारी आँखों के सम्मुख पाकिस्तान में है वहाँ हिन्दुओं की, जैनों की क्या दुर्दशा हुई? उन्हें तरह—तरह की यातनायें सहनी पड़ी। अस्थिर एवं चंचल अवस्था में वर्षो बिताया जिस कारण से जिनमंदिर, धार्मिक ग्रंथ आदि से विमुख हो गये तथा बाद में गुरुओं का समागम भी न मिल सका। सराक बंधुओं के पूर्वजों की पंचायत शासन व्यवस्था बहुत अच्छी थी। उन सभी का किसी भी कोर्ट (न्यायालय) में केस—मुकदता नहीं था। वे अपने झगड़ों को पंचायत में ही सुलझा लेते थे। सराक बंधुओं के पूर्वजों का इतना गौरव था कि कोर्ट में इनकी गवाही प्रमाणिक मानी जाती थी। उपरोक्त बातों से सिद्ध होता है, कि वे सत्यवादी एवं सच्चे के पुजारी थे।
इनके पूर्वजों का खान—पान शुद्ध एवं सात्विक था। भोजन, भोजनशाला के अंदर ही करते थे। एक अंग्रेज अधिकारी ने कहा था कि मुझे इस बात पर हैरानी है कि ये सराक जाति के लोग मांसाहारी लोगों के झुंड में रहकर कैसे शुद्ध शाकाहारी है? इनके पूर्वज श्रद्धा पूर्वक जिनेन्द्र प्रभु की उपासना—पूजा आदि करते थे। उनके बताये हुये मार्ग पर चलते थे। इस प्रकार वे श्रावक के सभी नियमों का पालन करते थे, अर्थात्, श्रद्धावान, विवेकवान, एवं क्रियावान थे। आजकल ये लोग धर्म से विमुख हो जाने के कारण पूर्वजों के पूर्व संस्कारों को धीरे—धीरे भूलते जा रहे हैं। अभी प्राय: सभी सराक बंधु जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने विस्तृत रूप से जैन मंदिरों का निर्माण कराया था। धर्मरक्षा हेतु जब स्थान परिवर्तन करना पड़ता था तब विरुद्ध मतावलंबी मंदिरों एवं र्मूितयों को नष्ट—भ्रष्ट कर देते थे। धीरे—धीरे नये स्थानों पर बसने के लिये वहाँ के राजा या जमींदार का आश्रय लेना पड़ा। उन्हीं के कहे मुताबिक धर्म का पालन करना पड़ता था। परिणाम—स्वरूप सराक बंधु धर्म से विमुख होते गये। फिर भी अभी तक सराक जाति के लोग शाकाहारी एवं अिंहसक हैं। मद्य, मांस आदि का सेवन नहीं करते हैं। तथा अभी भी पानी छान कर पीते हैं, एवं कुछ लोग रात्रि—भोजन नहीं करते हैं। अधिकांश व्यक्ति णमोकार मंत्र जानते हैं।
सराक जाति की निम्नलिखित विशेषतायें हैं:
(१) शुद्ध शाकाहारी हैं।
(२) प्याज, लहसून आदि अधिकांश व्यक्ति नहीं खाते हैं।
(३) अष्ट मूलगुणों का पालन करते हैं।
(४) शादी (विवाह) अपनी समाज में ही करते हैं।
(५) विधवा—विवाह एवं विजातीय—विवाह का निषेध हैं नियम तोड़ने वालों को जाति से अलग कर दिया जाता है।
(६) काटो, काटा, टुकड़े करो, आदि हिसावाचक शब्दों का प्रयोग भोजनशाला में नहीं करते हैं।
(७) सरल स्वभावी हैं, तथा अतिथि—सत्कार बड़े ही उत्साह से करते हैं।
(८) भोजन बिना स्नान किये नहीं बनाते हैं, और न ही बिना स्नान किये भोजन करते हैं।
(९) अपनी जाति के अलावा अन्य किसी को रसोई में प्रवेश नहीं करने देते हैं, एवं अपने घर के सदस्य भी अशुद्ध कपड़े पहने एवं बिना स्नान किये रसोई में प्रवेश नहीं करते हैं।
(१०) अपनी जाति के अलावा किसी को अपने बर्तनों में भोजन नहीं कराते हैं, एवं किसी को भोजन कराने पर उन बर्तनों का उपयोग भोजनशाला में नहीं करते हैं। प्राय: अन्य जातियों को भोजन कराने के लिय घर में अलग बर्तन रखे होते हैं।
(११) सराक बंधुओं के पूर्वज २२ अभक्ष्य के त्यागी थे।
(१२) शौच के कपड़ों से कोई भी वस्तु नहीं छूते हैं।
(१३) किसी दूसरों के हाथ से बनी दाल, भात, रोटी आज भी नहीं खाते हैं।
(१४) इनके पूर्वज होटलों में भोजन नहीं करते थे, अगर कोई होटल में या बाहर कहीं अन्य जाति के घर पर, दुकान या होटल में कर लेता था तो सराक पंचायत उसे दण्डित करती थी। दण्डित हुये बिना उसे समाज के किसी भी कार्य में नहीं बुलाया जाता था। प्रायश्चित होने पर ही उसकी शुद्धि होती थी।
(१५) सराक जाति के गोत्र चौबीस तीर्थंकरों के नाम पर हैं जैसे आदिदेव, शान्तिदेव, अनन्तदेव, गौतम, धर्मदेव, सांडिल्य आदि। (१६) टाईटिल—सराक, मांझी, मण्डल, आचार्य, चौधरी अधिकारी आदि।
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