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👉 *साध्वीप्रमुखाश्रीजी का स्वास्थ्य संवाद-२*
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 114* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्रांतिकारी आचार्य कालक (द्वितीय)*
गतांक से आगे...
गर्दभिल्लोच्छेदक घटना के बाद चार वर्ष तक शकों ने अवंती पर शासन किया। उसके बाद वहां बालमित्र, भानुमित्र का शासन हो गया। बलमित्र और भानुमित्र ने भरौंच में 52 वर्षों तक (वी. नि. 405 से 457) शासन किया था और अवंती में 8 वर्षों तक (वी. नि. 457 से 465) शासन किया। निशीथ चूर्णि में प्राप्त उल्लेखानुसार कालक ने अपना चातुर्मास अवंती में बलमित्र तथा भानुमित्र के शासनकाल में किया। युगल भ्राता का भरौंच में वर्षों तक शासन रहने के कारण प्रभावक चरित्र में अवंती के स्थान पर भरौंच नरेश का निर्देश है। बलमित्र-भानुमित्र को कहीं अवंती नरेश और कहीं भरौंच नरेश कहकर जैन ग्रंथों में उल्लेख किया गया है।
प्रतिष्ठानपुर में चतुर्थी को संवत्सरी पर्व मनाने का यह प्रसंग (वी. नि. 457 से 465) (वि. पू. 13 से 5, ई. पू. 70 से 62) के मध्य का है। बलमित्र, भानुमित्र ने वी. नि. 457 (वि. पू. 13, ई. पू. 70) में उज्जयिनी का राज्य संभाला। उनके राज्य का वी. नि. 465 (वि. पू. 5, ई. पू. 62) में अंत हो गया। इसके बाद अवंती का राज्य नभसेन ने संभाला। यह उल्लेख तित्थोगालीयपइण्णा में है। नभसेन के पांचवे वर्ष में शकों ने पुनः मालव पर आक्रमण किया। इस समय शकों की हार हुई। मालव प्रजा ने विजय प्राप्ति की खुशी में मालव संवत् स्थापित किया। यही मालव संवत् आगे विक्रम संवत् के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। शकों ने 135 वर्ष बाद पुनः मालव पर आक्रमण किया। इस समय शकों की विजय हुई। इस विजय के हर्षोल्लास में शक संवत् स्थापित किया। कई इतिहासकारों के अभिमत से शक संवत् का प्रवर्तन शकों ने नहीं प्रतिष्ठानपुर नरेश शालिवाहन ने किया था। यह शक संवत् वी. नि. से 605 वर्ष बाद और विक्रम से 135 वर्ष बाद प्रारंभ हुआ। विक्रम संवत् का संबंध जैन धर्म के उपासक राजा बलमित्र से बताया जाता है।
विक्रम संवत् के संदर्भ में कई अभिमत हैं। इतिहासविदोें की मान्यता यह भी है गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने मालव बंधुगण के सहयोग से शकों पर विजय प्राप्त की। नरेश ने अपनी उदारता से मालव बंधुओं के नाम पर मालव संवत् स्थापित किया। शनै-शनै यह संवत् विक्रम के नाम से पहचाना जाने लगा।
कई इतिहासकार मानते हैं नरेश विक्रमादित्य के द्वारा वी. नि. 470 में विक्रम संवत् प्रारंभ हुआ। राज्य का विस्तार होने पर 13 या 17 वर्ष बाद विक्रम संवत् को सार्वजनिक मानयता प्राप्त हुई।
कई इतिहासकारों का अनुमान है मालव में शकों पर विजय प्राप्त कर विक्रमादित्य ने मालव संवत् का प्रवर्तन किया।
कालांतर में चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) ने मालव प्रदेश पर आक्रमण कर शकों पर पुनः विजय प्राप्त की और अवंती का शासक बना। उस समय मालव संवत् को विक्रम संवत् नाम से प्रचारित कर दिया गया। 'विचार श्रेणी' के कालगणना के आधार पर गर्दभिल्लोच्छेदक घटना का समय वी. नि. 466 को मान्य कर लेने पर आचार्य कालक द्वारा चतुर्थी को संवत्सरी पर्व मनाने का प्रसंग विक्रम संवत् (वी. नि. 470) स्थापना के बाद ही संभव है।
*क्रांतिकारी आचार्य कालक के प्रभावक जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 114📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
लय— देव! तुम्हारे...
*46.*
संयत समुचित जीवनचर्या,
समुचित शयन जागरण हो।
सुप्रसन्न इन्द्रिय मन आत्मा,
शुभ भावों का विकिरण हो।।
(दोहा)
*47.*
अनुशासन आश्वास है, मर्यादा विश्वास।
संयम जीवन स्वस्थता, आज्ञा श्वासोच्छ्वास।।
*22. अनुशासन आश्वास है...*
प्राचीन ग्रंथों में धार्मिक संगठनों के स्वरूप का विवेचन मिलता है। उन संगठनों में अनुशासन के प्रयोगों की बात सुन-पढ़कर इस युग के लोगों को आश्चर्य हो सकता है। क्योंकि आज हर क्षेत्र में अनुशासन का पक्ष श्लथ हो रहा है। किंतु प्राचीन विवेचन काल्पनिक नहीं है। वर्तमान में उस स्थिति को देखना हो तो *'तेरापंथ'* को देखा जा सकता है।
तेरापंथ धर्मसंघ में प्रत्येक साधु-साध्वी को अनुशासन, मर्यादा और आज्ञा के प्रति विशेष जागरुक रहने के संस्कार दिए जाते हैं। वे अनुशासन को अपने लिए सबसे बड़ा आश्वासन मानते हैं। संघीय मर्यादाओं में उनका विश्वास प्रगाढ़ होता है। गुरु की आज्ञा उनके लिए श्वासोच्छ्वास के समान होती है।
तेरापंथ की इस आस्था को देखने वाले लोग कहते हैं कि सभी धर्मसंघों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। पर अब तक कहीं भी ऐसा हो नहीं पाया है। यह बात केवल धार्मिक संगठनों के लिए ही नहीं, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के लिए भी अनुकरणीय है। काश! इस दिशा में होने वाली संभावना को प्रायोगिक रूप मिल पाता।
*48.*
रत्नाधिक निर्देश से, करे शैक्ष सब काम।
चर्या में निश्चिंतता, खुले नए आयाम।।
*23. रत्नाधिक निर्देश से...*
स्वतंत्र मनोवृत्ति के युग में जीने वाले व्यक्ति बड़े-बुजुर्गों के चिंतन से अपने चिंतन को अधिक महत्त्व देते हैं। इसी कारण पुत्र पिता को नहीं पूछता और बहू सास को नहीं पूछती। तेरापंथ धर्मसंघ में बड़ों के प्रति विनय और छोटों के प्रति वात्सल्य का कोई अपूर्व योग है। छोटे साधु-साध्वियों के व्यक्तित्व निर्माण में बड़ों का जो योग है, उसकी सार्थकता छोटों के विनय भाव और समर्पण में है। इसी दृष्टि से प्रस्तुत पद्य में यह बताया गया है कि शैक्ष— नवदीक्षित साधु-साध्वी अपना हर काम बड़े साधु-साध्वियों के निर्देश से करें। इससे दो लाभ होते हैं—
*1.* बड़ों का निर्देश प्राप्त कर काम करने वाला व्यक्ति निश्चिंत रहता है।
*2.* बड़ों के निर्देशानुसार काम करने से विकास के नए आयाम खुलते रहते हैं।
*रत्नाधिक साधु-साध्वियों के प्रति विनय का एक मानक है 'वंदना व्यवहार'* इसके बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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👉 बोरावड़: "तप अभिनंदन" समारोह का आयोजन
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 113* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्रांतिकारी आचार्य कालक (द्वितीय)*
गतांक से आगे...
एक दिन शास्त्रार्थ में आचार्य कालक से पराभव को प्राप्त राजपुरोहित ने उनके निष्कासन की योजना सोची। उसने बलमित्र और भानुमित्र से निवेदन किया "राजन्! आचार्य कालक के चरण हमारे लिए परम वंदनीय हैं। पथ पर अंकित उनके चरण चिन्हों पर नागरिकों के पैर टिकने से अथवा उनका अतिक्रमण होने से आचार्य की आशातना होती है। यह आशातना राजा के लिए विघ्नकारक है। इससे राष्ट्र में अमंगल हो सकता है।"
भ्रातृद्वय के सरल हृदय में निकटवर्ती राजपुरोहित की यह बात जंच गई पर पावसकाल में आचार्य कालक का निष्कासन होने से अपवाद का भय था। इस अपवाद से बचने के लिए राजा का आदेश प्राप्त कर राजपुरोहित ने घर-घर में आधाकर्म दोष निष्पन्न गरिष्ठ भोजन आचार्य कालक को प्रदान करने की घोषणा की। नागरिक जनों ने वैसा ही किया। एषणीय आहार प्राप्ति के अभाव में शासन व्यवस्था की ओर से अनुकूल परिषह उत्पन्न हुआ जानकर आचार्य कालक ने पावस के मध्य ही विहार कर दिया।
वहां से आचार्य कालक प्रतिष्ठानपुर पधारे। प्रतिष्ठानपुर के नरेश शातवाहन के हृदय में जैन धर्म के प्रति अनुराग था। पौरजनों सहित शासक शातवाहन ने आचार्य कालक का सम्मान किया। भाद्रव शुक्ला पंचमी का दिन निकट था। संवत्सरी पर्व को अत्यंत उत्साह के साथ मनाने की चर्चा चल रही थी। प्रतिष्ठानपुर में इसी दिन इंद्रध्वज महोत्सव भी मनाया जाता था। दोनों पर्वों के कार्यक्रम में सम्मिलित होने की भावना से प्रेरित होकर नरेश शातवाहन ने कालक से प्रार्थना की "आर्य! संवत्सरी पर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाए, जिससे मैं भी इस पर्व की आराधना कर सकूं एवं सब के साथ सामूहिक तप की साधना में सहभागी बन सकूं।"
आचार्य कालक मर्यादा के प्रति दृढ़ थे। राज भय से इस पर्व तिथि का अतिक्रमण करना उनकी दृष्टि से उचित नहीं था। उन्होंने निर्भय होकर कहा "मेरु प्रकम्पित हो सकता है, पश्चिम दिशा में रवि उदय हो सकता है पर इस पर्व की आराधना में पंचमी की रात्रि का अतिक्रमण नहीं हो सकता।"
राजा ने संवत्सरी पर्व को चतुर्थी के दिन मनाने का प्रस्ताव रखा। आचार्य कालक की दृष्टि में इस पर्व को एक दिन पूर्व मनाने में बाधा नहीं थी। उन्होंने नरेश शातवाहन के इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अतिशय उल्लास के साथ आचार्य कालक के नेतृत्व में सर्वप्रथम चतुर्थी के दिन संवत्सरी पर्व मनाया गया।
निशीथ चूर्णि के अनुसार आचार्य कालक अवंती से एवं प्रभावक चरित्र के अनुसार भरौंच से चातुर्मासकाल की स्थिति में विहार कर प्रतिष्ठानपुर गए। वहां उन्होंने संवत्सरी पर्व चतुर्थी को मनाया।
*क्रांतिकारी आचार्य कालक के प्रभावक जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 113📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
लय— देव! तुम्हारे...
*44.*
खुला निमंत्रण है आमय को,
जीना हो आरामतलब।
रक्तचाप मधुमेह पीनता,
हार्टट्रबल होता जब-तब।।
*45.*
अत्यावश्यक है शरीर श्रम,
श्रम प्रधान हम सभी श्रमण।
आर्य भिक्षु का उदाहरण लें,
खड़े-खड़े नित प्रतिक्रमण।।
*21. अत्यावश्यक है शरीर श्रम...*
श्रमण संस्कृति श्रमप्रधान, पौरुषप्रधान संस्कृति है। इस संस्कृति में पलने वाले श्रमण कभी श्रम की उपेक्षा नहीं कर सकते। आचार्य भिक्षु श्रमण संस्कृति के आदर्श पुरुष रहे हैं। उनके जीवन से श्रमशीलता की बहुत प्रेरणा मिल सकती है। प्रस्तुत संदर्भ में एक घटना का उल्लेख किया जा रहा है।
आचार्य भिक्षु ने 77 वर्षों की उम्र पाई। उम्र के आठवें दशक में भी वे प्रतिक्रमण खड़े-खड़े करते थे। एक साधु ने निवेदन किया— 'स्वामीजी! अब तो आप की अवस्था आ गई। आप प्रतिक्रमण खड़े-खड़े क्यों करते हैं?' यह बात सुन आपने कहा— 'अरे भोले! तुम समझते नहीं हो। मैं खड़ा खड़ा प्रतिक्रमण करता हूं तो आनेवाली पीढ़ी के साधु बैठे-बैठे करेंगे। यदि मैंने बैठकर प्रतिक्रमण करना शुरू कर दिया तो आने वाले लेटे-लेटे करेंगे।'
मधुर विनोद के साथ स्वामीजी ने कितनी गहरी बात कह दी। महापुरुष वही होते हैं, जो भविष्य के बारे में चिंतन करते हैं। मेरी क्रिया का भविष्य पर क्या प्रभाव होगा— ऐसा चिंतन करने वाले अपनी भावी पीढ़ी के लिए अनमोल संस्कारों की विरासत छोड़ जाते हैं।
*जीने की कला में सबसे बड़े आश्वास अनुशासन* के बारे में आगे और जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 विजयनगरम - जैन विद्या क्विज प्रतियोगिता का आयोजन
👉 चेन्नई: अणुव्रत समिति द्वारा 'कल्याण गर्ल्स हॉयर सेकंडरी स्कूल' में कार्यक्रम
👉 बलांगीर -महासभा अध्यक्ष की संगठन यात्रा
👉 जोरहाट - नेत्र चिकित्सा शिविर
👉 कालावांली - तप अभिनंदन समारोह
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29 जुलाई का संकल्प
*तिथि:- सावन शुक्ला षष्ठी*
शनिवार है आज सपरिवार हों सामायिक में लीन।
शाम 7 से 8 हो जाएं गुरु इंगित की आराधना में तल्लीन।।
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👉 सवा करोड़ नवकार मंत्र जप
👉 चेन्नई - अणुवृत समिति के तत्वावधान में Don Bosco school में नशा मुक्ति कार्यक्रम का भव्य आयोजन रखा गया
👉 भवानीपटना - महासभा अध्यक्ष श्री डागलिया की "संगठन यात्रा"
👉 कोलकत्ता - कन्या मण्डल अधिवेशन में नगर श्रेणी में जयपुर प्रथम स्थान पर सम्मानित
👉 राजाराजेश्वरी नगर, बैंगलोर: तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 बाड़मेर: मासखमण "तप अभिनंदन" समारोह का आयोजन
👉 विजयनगरम - महिला मंडल द्वारा कार्यक्रम आयोजित
👉 राउरकेला - तप अनुमोदना का कार्यक्रम आयोजित
👉 नोहर - चित्त समाधि शिविर का समापन समारोह
👉 सूरत - स्वस्थ जीवन शैली कार्यशाला
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News in Hindi
👉 पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल -"राजरहाट", कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
दिनांक - 29/07/2017
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