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#अहमदाबाद - *'शासन श्री' #मुनि श्री #राकेश कुमार जी का सगारी संथारे में देवलोक गमन*
👉 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती '#अणुव्रत प्राध्यापक' 'शासन श्री' मुनि श्री राकेश कुमार जी* का आज दिनाक 30-07-2017 को रात्रि 09:10 पर सगारी संथारे में देवलोकगमन हो गया है।
👉 मुनि श्री का जीवन परिचय
प्रस्तुति -🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 115* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्रांतिकारी आचार्य कालक (द्वितीय)*
गतांक से आगे...
देश-देशांतर में विहरण करते हुए आचार्य कालक का पदार्पण एक बार पुनः अवंती में हुआ। इस समय आचार्य कालक वृद्धावस्था में थे। वार्धक्य की चिंता नहीं कर वे अपने शिष्यों को अत्यंत जागरूकता के साथ आगम वाचना देते थे। आचार्य कालक जैसा उत्साह उनके शिष्यों में नहीं था। सभी शिष्य आगम-वाचना ग्रहण करने में अत्यंत उदासीन थे। अपने शिष्यों के इस प्रमत्त भाव से आचार्य कालक खिन्न हुए। उनको शिक्षा देने की दृष्टि से आचार्य कालक ने शिष्यों से अलग होने की बात सोची। मन ही मन सूरिजी ने गहराई से चिंतन किया
*"आसन्नऽविनयाः शिष्या दुर्गतौ दोहदप्रदाः।"*
*।।129।।* *(प्रभावक चरित्र पृष्ठ 26)*
अविनीत एवं प्रमादी शिष्य कष्टदायक होते हैं। उनके साथ रहने से दुर्गति का बंधन होता है अतः सुविधा की परवाह किए बिना इन शिष्यों का मोह त्याग कर अन्यत्र चले जाना मेरे लिए श्रेयस्कर है।
गंभीरता से विचार करने के बाद शय्यातर के पास जाकर आचार्य कालक बोले "मैं अपने अविनीत शिष्यों को यहां छोड़कर इन्हें बिना सूचित किए अपने प्रशिष्य सागर के पास स्वर्णभूमि की ओर जा रहा हूं। सोचता हूं शिष्यों द्वारा अनुयोग नहीं ग्रहण करने पर इनके साथ रहना उपयुक्त नहीं है, प्रत्युत इन शिष्यों की उच्छृंखलता कर्म बंधन का हेतु है। हो सकता है मेरे पृथकत्व से वे संभल जाएं और उन्हें अपनी भूल समझ में आ जाए, पर मेरे चले जाने की सूचना शिष्यों को आग्रहपूर्वक पूछने पर उन्हें सरोष स्वरों में बताना।" शय्यातर को इस प्रकार अपनी बात पूरी तरह से समझाकर शिष्यों को सूचित किए बिना आचार्य कालक ने गुप्त रूप से विहार कर दिया।
आचार्य कालक का यह साहस भरा निर्णय था पर शिष्यों को जागरूक बनाने के लिए एक बार उनका त्याग करना आवश्यक था अतः आचार्य कालक द्वारा ऐसा कदम उठाया गया था।
मार्गवर्ती बस्तियों को पार करते हुए आचार्य कालक सुदूर स्वर्णभूमि में सुशिष्य सागर के पास पहुंचे। आगम वचनारत शिष्य सागर ने उन्हें सामान्य वृद्ध साधु समझकर अभ्युत्थानादि पूर्वक स्वागत नहीं किया। अर्थ-पौरुषी (अर्थ-वाचना) के समय शिष्य सागर के सम्मुख आसीन आचार्य कालक को संकेत करते हुए पूछा "वृद्ध मेरा कथन समझ में आ रहा है?" आचार्य कालक ने ओम् कहकर स्वीकृति दी। सागर सगर्व बोले "वृद्ध अवधानपूर्वक सुनो।" आचार्य कालक गंभीर मुद्रा में बैठे थे। आचार्य सागर अनुयोग प्रदान में प्रवृत्त हुए।
उधर अवंती में आचार्य कालक के शिष्यों ने देखा उनके बीच आचार्य कालक नहीं है। उन्होंने इधर-उधर खोज की पर वे कहीं नहीं मिले। शय्यातर से जाकर शिष्यों ने पूछा "आचार्य देव कहां है?" मुखमुद्रा को वक्र बनाकर शय्यातर ने कहा "आपके आचार्य ने आपको भी कुछ नहीं कहा, मुझे क्या कहते?" शिष्यों ने पुनः आचार्य कालक को ढूंढने का प्रयत्न किया पर वे असफल रहे। आग्रहपूर्वक पूछने पर शय्यातर ने कठोर रुख बनाकर शिष्यों से कहा "आप जैसे अविनीत शिष्यों की अनुयोग ग्रहण करने में असफलता के कारण खिन्न आचार्य कालक स्वर्ण भूमि में प्रशिष्य सागर के पास चले गए।" शय्यातर के कटु उपालंभ से लज्जित उदासीन शिष्यों ने तत्काल अवंती से स्वर्णभूमि की ओर प्रस्थान किया। विशाल श्रमण संघ को विहार करते देख लोग प्रश्न करते "कौन जा रहे हैं?" शिष्य कहते *"आचार्य कालक"*
*क्या शिष्य आचार्य कालक से मिल पाए और सागर ने आचार्य कालक को पहचाना...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 115📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
लय— वन्दना आनन्द...
*49.*
वन्दना रत्नाधिकों को हो, विनय से भाव से,
सहें अनुशासन बड़ों का 'तहति' कह समभाव से।
सीख रत्नाधिक सदा दें मधुरिमा वात्सल्य से,
मिले प्रोत्साहन प्रगति में, बचें अविनय-शल्य से।।
*24. वन्दना रत्नाधिकों को...*
रत्नाधिक– दीक्षा पर्याय से ज्येष्ठ साधु-साध्वियों के प्रति विनय का एक मानक है 'वंदना व्यवहार'। यह व्यवहार मात्र औपचारिक बनकर न रह जाए, इसलिए विनयपूर्ण और भावपूर्ण वंदना का निर्देश दिया गया है। साथ ही बड़ों द्वारा किए गए अनुशासन को सहन करने की विधि बताई गई है।
प्रस्तुत पद्य में केवल नवदीक्षित या छोटे साधु-साध्वियों को ही शिक्षा नहीं दी गई है, इसमें बड़ों को भी मार्गदर्शन दिया गया है कि वे भी मधुरता और वात्सल्य के साथ शिक्षा दें। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग है। इससे प्रगति में प्रोत्साहन मिल सकता है और अविनय रूप शल्य से बचाव हो सकता है।
*50.*
साधु में चारित्र आत्मा साध्वियों में भी वही,
तपस्या श्रम साधना संकल्प में पीछे नहीं।
परस्पर अभिवादना आमोद से उत्साह से,
भावना मुदिता रहे उदिता समुन्नत चाह से।।
*25. साधु में चारित्र आत्मा...*
बहुत वर्षों पहले एक प्रश्न सामने आया था— साधु साध्वी को वंदना करें या नहीं? इस प्रश्न की पृष्ठभूमि बहुत गहरी है। उसके अनुसार साध्वी कितनी ही बड़ी या पुरानी क्यों न हो, वह एक दिन के दीक्षित साधु को वंदना करती है। इधर नवदीक्षित साधु अवस्था प्राप्त साध्वी को भी वंदना नहीं करता। यह विधि तीर्थंकरों की उपस्थिति में थी या नहीं, कोई प्रमाण नहीं मिलता। चूर्णि और भाष्य काल से इस परंपरा के प्रचलन की पुष्टि होती है।
उक्त प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने पर हमने इसे इस रुप से समाहित किया— वंदना न पुरुष को की जाती है और न स्त्री को। वंदनीय है चारित्र आत्मा। जिसमें चारित्र आत्मा हो, वह स्त्री हो या पुरुष, वंदनीय है। चारित्र आत्मा के साथ तपस्या, श्रम, साधना, यात्रा, प्रवचन, वक्तृत्व, लेखन आदि किसी भी कार्य में साध्वियां पीछे नहीं हैं। ऐसी स्थिति में साधु-साध्वियों को परस्पर अभिवादन करना चाहिए। इसमें न हीनता की बात है और न अहं का प्रश्न है। यह तो प्रमोद भावना का प्रयोग है। इसमें किसी प्रकार का संकोच क्यों हो?
*सिर्फ मेरा ही वर्चस्व बढ़े किसी दूसरे का वर्चस्व बढ़ ही न पाए। इस चिंतन से अनेक प्रकार की कठिनाइयां पैदा हो जाती है।* इस संदर्भ में उदाहरण द्वारा समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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दिनांक 30-07-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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👉 पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल -"राजरहाट", कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में..
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
दिनांक - 30/07/2017
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👉 अभातेयुप द्वारा 24 अगस्त 2017 को आयोजित होने वाले सवा करोड़ नवकार महामंत्र जप का पोस्टर
संप्रेषक - *तेरापंथ संघ संवाद*
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👉 बाड़मेर: "तप अभिनंदन" समारोह का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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30 जुलाई का संकल्प
*तिथि:- सावन शुक्ला सप्तमी*
ज्ञान व ज्ञानी की करें हरदम सादर उपासना ।
ज्ञानावरणीय कर्म का हेतु है इनकी आशातना ।।
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