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आज नवपद ओलीजी का तीसरा दिन।
आचार्य पद की आराधना का दिन।
9 पदों में किसी भी व्यक्ति विशेष को वंदना नही की गयी है।
जो जो आत्मा उन उन महान गुणों तक पहुँचे है उन सभी गुणीजनों को एक साथ वंदना की गयी है।
@ आचार्य पद को नमन
शासन की स्थापना अरिहंत परमात्मा करते हे
सिद्ध परमात्मा को नमन कर के..
अरिहंत परमात्मा की अनुपस्थिति मेँ आचार्य भगवंत जिन शासन का प्रतिनिधित्व करते हे।।
साधु साध्वी श्रावक श्राविका आदि चतुर्विध संघ का निर्वहन करते हे।
सिद्ध प्रभु ने हमको निगोद से बाहर निकाला।
अरिहंत प्रभु ने हमको धर्म का उपदेश दिया।
वीर प्रभु के निर्वाण से आज तक 2500 साल हुए हैं। और परमात्मा का शासन 18500 वर्ष तक चलेगा । इतने लंबे समय तक शासन को आचार्य भगवंत चलाएंगे।
वर्तमान में अपने भरत क्षेत्र में अरिहंत परमात्मा सदेह विराजित नही होने से उनकी अनुपस्थिति में
आचार्य पद धारी प्रभु हमे जिन वाणी का अर्थ समझाते है।
पञ्च परमेष्ठी में आचार्य का स्थान बीच में है।
आचार्य का वर्ण colour है पीला।
gold जैसा।
आचार्य खुद भी प्रकाशित है
औरों को भी खुद की कान्ति से प्रकाशित करते है।
नमो आयरियाणं mins
कोई 1 आचार्य को वंदन नही है।
जगत में जितने भी आचार्य है उन्हें वंदना की गयी है।
जिनशासन में कोई भी कार्य आचार्य भगवंत को पूछे बिना नही किया जा सकता।
क्योंकि संघ को चलाने की जिम्मेदारी उनको दी गयी है।
गच्छाचार पयन्ना में आचार्य को तीर्थंकर के समान कहा गया है।
आचार्य के गुण 36 होते है।
आचार्य क्षमा की साक्षात मूर्ति होती है।
उनके उपदेश से संघ में
समाज में
लोगो के मन में सहज ही स्नेह का वातावरण निर्मित होता है।
आराधना
साधना
तपस्या
व्रत
पच्चखान आदि उनकी साक्षी में करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
उनके 36 गुण का वर्णन
5 इंद्रिय का संवरण
9 प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति के धारक
4 प्रकार के कषाय से मुक्त
5 महाव्रत से युक्त
5 आचार के पालक
5 समिति के पालक
3 गुप्ति के धारक
ये 36 गुण हुए।
ऐसे आचार्य प्रभु को हमारा भाव भरा
नमन।
वंदन।
उनसे 1 की प्रार्थना है कि
आपके आशीष से हमारे जीवन में पंचाचार की सुवास प्रकट हो।
नमो आयरियाणं।
बोलिये आचार्य पद की जय।
बोलिये दादा गुरुदेव की जय।
आचार्य पद की आराधना का दिन।
9 पदों में किसी भी व्यक्ति विशेष को वंदना नही की गयी है।
जो जो आत्मा उन उन महान गुणों तक पहुँचे है उन सभी गुणीजनों को एक साथ वंदना की गयी है।
@ आचार्य पद को नमन
शासन की स्थापना अरिहंत परमात्मा करते हे
सिद्ध परमात्मा को नमन कर के..
अरिहंत परमात्मा की अनुपस्थिति मेँ आचार्य भगवंत जिन शासन का प्रतिनिधित्व करते हे।।
साधु साध्वी श्रावक श्राविका आदि चतुर्विध संघ का निर्वहन करते हे।
सिद्ध प्रभु ने हमको निगोद से बाहर निकाला।
अरिहंत प्रभु ने हमको धर्म का उपदेश दिया।
वीर प्रभु के निर्वाण से आज तक 2500 साल हुए हैं। और परमात्मा का शासन 18500 वर्ष तक चलेगा । इतने लंबे समय तक शासन को आचार्य भगवंत चलाएंगे।
वर्तमान में अपने भरत क्षेत्र में अरिहंत परमात्मा सदेह विराजित नही होने से उनकी अनुपस्थिति में
आचार्य पद धारी प्रभु हमे जिन वाणी का अर्थ समझाते है।
पञ्च परमेष्ठी में आचार्य का स्थान बीच में है।
आचार्य का वर्ण colour है पीला।
gold जैसा।
आचार्य खुद भी प्रकाशित है
औरों को भी खुद की कान्ति से प्रकाशित करते है।
नमो आयरियाणं mins
कोई 1 आचार्य को वंदन नही है।
जगत में जितने भी आचार्य है उन्हें वंदना की गयी है।
जिनशासन में कोई भी कार्य आचार्य भगवंत को पूछे बिना नही किया जा सकता।
क्योंकि संघ को चलाने की जिम्मेदारी उनको दी गयी है।
गच्छाचार पयन्ना में आचार्य को तीर्थंकर के समान कहा गया है।
आचार्य के गुण 36 होते है।
आचार्य क्षमा की साक्षात मूर्ति होती है।
उनके उपदेश से संघ में
समाज में
लोगो के मन में सहज ही स्नेह का वातावरण निर्मित होता है।
आराधना
साधना
तपस्या
व्रत
पच्चखान आदि उनकी साक्षी में करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
उनके 36 गुण का वर्णन
5 इंद्रिय का संवरण
9 प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति के धारक
4 प्रकार के कषाय से मुक्त
5 महाव्रत से युक्त
5 आचार के पालक
5 समिति के पालक
3 गुप्ति के धारक
ये 36 गुण हुए।
ऐसे आचार्य प्रभु को हमारा भाव भरा
नमन।
वंदन।
उनसे 1 की प्रार्थना है कि
आपके आशीष से हमारे जीवन में पंचाचार की सुवास प्रकट हो।
नमो आयरियाणं।
बोलिये आचार्य पद की जय।
बोलिये दादा गुरुदेव की जय।