Update
👉 मुम्बई - तेयुप, दक्षिण मुम्बई द्वारा स्नेह मिलन का आयोजन
👉 मदुराई - जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
👉 सिरसा - जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
👉 कूचविहार - जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा द्वारा अभिनंदन समारोह का आयोजन
👉 ईरोड - प्रेक्षा धयान एवं हास्य थेरेपी कार्यशाला का आयोजन
👉 राउरकेला - ज्ञानशाला संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
*पुज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 *तूफान का खलल: महातपस्वी ने प्रवास स्थल को ही बनाया प्रवचन पंडाल*
👉 *-दृढ़संकल्पी आचार्यश्री के सामने नतमस्तक प्राकृतिक आपदा, तूफान व बारिश में किया मंगल प्रवचन*
👉 *-प्रवास स्थल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने सुगति प्राप्ति का बताया मार्ग*
👉 *-चारित्रात्माओं में सबसे लंबे आयुष्य पर्याय की साध्वी बिदामांजी को आचार्यश्री ने प्रदान किया ‘सुदीर्घजीवी’ उद्बोधन*
👉 *-आचार्यश्री ने उनके प्रति की मंगलकामना, साध्वीवर्याजी ने व्यक्त की मंगलकामना*
👉 *-जैन विश्व भारती ने आचार्यश्री के समक्ष प्रदान किए और दो अन्य पुरस्कार*
👉 *-पूर्व परिवहन व श्रममंत्री श्री आॅस्कर फर्नांडिस ने किया आचार्यश्री के दर्शन, दी भावाभिव्यक्ति*
दिनांक - 09-10-2017
प्रस्तुति -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
Update
👉 अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा निर्देशित आध्यात्मिक अनुष्ठान की जानकारी
👉 सूरत - पटाखा मुक्त दीवाली मनाने का संदेश
👉 सूरत - चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
👉 दिल्ली - उपसर्गहर स्त्रोत का अनुष्ठान
👉 मैसुर - जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
👉 विशाखापट्टनम - जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
👉 रायपुर - चित्त समाधि शिविर का आयोजन
👉 इंदौर - जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
Source: © Facebook
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆
जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 170* 📝
*विवेक-दर्पण आचार्य वज्रसेन*
गतांक से आगे...
वज्रसेन अनुभवों के धनी थे। दुष्काल के इन क्षणों में वज्रस्वामी के आदेशानुसार वहां से ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए कुंकुण देश पहुंचे। मुनि वृंद से परिवृत गणाचार्य वज्रसेन का पदार्पण वीर निर्वाण 592 (विक्रम संवत 122, ईस्वी सन 65) में सोपारक नगर में हुआ। दुष्काल इस समय समाप्ति पर था। सोपारक देश का राजा जीतशत्रु एवं रानी धारिणी थी। वहां का धनी-मानी श्रेष्ठी जिनदत्त निर्ग्रंथ धर्म का उपासक था। उसकी पत्नी का नाम ईश्वरी था। धृति संपन्न एवं विपुल संपत्ति का स्वामी होते हुए भी श्रेष्ठी जिनदत्त दुष्काल के उग्र प्रकोप से विक्षुब्ध हो उठा। क्षुधा-पिशाचिनी के क्रूर प्रहार से प्रताड़ित श्रेष्ठी का परिवार जिंदगी की आशा खो चुका था। श्राविका ईश्वरी का धैर्य धान्याभाव के कारण डगमगा गया। पारिवारिक जनों ने परस्पर परामर्शपूर्वक सविष भोजन खाकर प्राणांत करने की सोची। ईश्वरी ने एक लक्ष स्वर्ण मुद्रा मूल्य के शालि पकाए। वह भोजन में विष मिलाने का प्रयत्न कर रही थी। नगर में भिक्षार्थ पर्यटन करते हुए आचार्य वज्रसेन श्रेष्ठी जिनदत्त के घर पहुंचे। मुनि को देखकर ईश्वरी एवं जिनदत्त प्रसन्न हुए। उन्होंने अपना अहोभाग्य माना। विषपूरित पात्र को भोजन से दूर रख दिया एवं मुनि को विशुद्ध भावों से दान दिया।
ईश्वरी चतुर महिला थी। उसने अपने अंतर्द्वंद्व को मुनि के सामने रखा एवं लक्ष मुद्रा मूल्य के शालि पाक को विष मिश्रित करने की योजना बताई। यह सुनते ही आचार्य वज्रसेन को दश पूर्वधर वज्रस्वामी के कथन का स्मरण हो आया और जिनदत्त श्रेष्ठी के समग्र परिवार को आश्वासन देते हुए वे बोले "भोजन में जहर मत मिलाओ, अब यह कष्ट अधिक समय का नहीं है। दुष्काल चरम सीमा पर पहुंच गया है। मुझे दश पूर्वधर वज्रस्वामी ने कहा था, जिस दिन लक्ष मुद्रा मूल्य के शालि पाक की उपलब्धि होगी, वही दुष्काल की परीसमाप्ति का दिन होगा। इस कथन के आधार पर कल ही सुखद प्रभात का उदय होने वाला है।"
आचार्य वज्रसेन के अमृतोपम वचनों को सुनकर जिनदत्त श्रेष्ठी एवं उसके परिवार को आत्मतोष की अनुभूति हुई एवं भोजन के साथ विष मिश्रण की योजना स्थगित कर सारा परिवार सुकाल की प्रतीक्षा में समता से कालयापन करने लगा।
दूसरे दिन प्रभात में अन्न से भरे पोत नगर की सीमा पर आ गए। आचार्य वज्रसेन की वाणी सत्य प्रमाणित हुई। श्रेष्ठी का पूरा परिवार काल कलवित होने से बच गया।
प्रस्तुत घटना वृत्त के बाद संसार से विरक्त होकर जिनदत्त श्रेष्ठी और ईश्वरी ने अपने पुत्र नागेंद्र, चंद्र, विद्याधर और निवृत्ति के साथ आचार्य वज्रसेन से वीर निर्वाण 592 (विक्रम संवत 122) में आर्हती दीक्षा ग्रहण की। चारों पुत्रों के नाम पर चार कुल गणेश स्थापित हुए। प्रत्येक शाखा में अनेक प्रभावक आचार्य हुए हैं। नागेंद्र आदि चारों मुनियों के लिए कुछ कम दशपूर्वधारी होने का उल्लेख भी मिलता है।
आचार्य वज्रसेन द्वारा सोपारक में धर्म की अतिशय प्रभावना हुई। जिनदत्त का परिवार अन्नाभाव के कारण मृत्यु का ग्रास बनने जा रहा था, उस समय आचार्य वज्रसेन ने अत्यंत विवेक से काम लिया। दुष्काल की परिसमाप्ति के बाद श्रेष्ठी जिनदत्त का परिवार मुनिचर्या को स्वीकार कर धर्म के प्रचार प्रसार में आचार्य वज्रसेन का अनन्य सहयोगी बना।
जैन इतिहास का यह प्रभावक प्रसंग आचार्य वज्रसेन के विवेक बोध को युग-युग तक दोहराता रहेगा।
*समय-संकेत*
विवेक दर्पण आचार्य वज्रसेन दीर्घजीवी आचार्य थे। वे नौ वर्ष की अवस्था में श्रमण बने। उन्होंने युगप्रधान के रूप में आचार्य पद का दायित्व ध्यान योगी आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के बाद वीर निर्वाण 617 (विक्रम संवत 147, ईस्वी सन 90) में संभाला। संयम पर्याय का उन्होंने 119 वर्ष तक पालन किया। उनकी सर्वायु 128 वर्ष की थी। वे वीर निर्वाण 620 (विक्रम संवत 150, ईस्वी सन 93) में स्वर्गवासी बने।
*आचार्य-काल*
(वीर निर्वाण 617-620)
(विक्रम संवत 147-150)
(ईसवी सन् 90-93)
*आलोक कुटीर आचार्य अर्हद्बलि का प्रभावक चरित्र* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆
👉 *कालू - तेरापंथ धर्म संघ के इतिहास में प्रथम शतायु साध्वी शासन श्री बिदामांजी का अभिवंदना कार्यक्रम*
प्रस्तुति -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
News in Hindi
Source: © Facebook