Update
👉 अणुव्रत महासमिति की संगठन यात्रा पुलिस के घेरे में
👉 खारूपेटिया (आसाम) - अणुव्रत महासमिति की संगठन यात्रा की शुरुआत
👉 उधना, सूरत - जैन जीवन शैली कार्यशाला
👉 राजरहाट (कोलकाता) - जैन जीवनशैली कार्यशाला का आयोजन
👉 बोरावड़ - मेरी संस्कृति मेरी पहचान विषय पर कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*
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31 अक्टूबर का संकल्प
*तिथि:- कार्तिक शुक्ला एकादशी*
जानकारी में रहेगी हमारी जब हर श्वास - निश्वास।
चित्त की बढ़ेगी एकाग्रता जगेगा आत्मविश्वास ।।
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
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https://youtu.be/5PAEGyXcBw8
दिनांक 30-10-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
👉 सिलीगुड़ी - राष्ट्रीय महासभा अध्यक्ष संगठन यात्रा पर
👉 राजरहाट (कोलकाता) - आचार्यप्रवर एवं साध्वी प्रमुखा जी का सान्निध्य एवं सेवा का अवसर प्राप्त
👉 सैंथिया - तेयुप द्वारा सेवा कार्य
👉 आमेट: 104 वां आचार्य श्री तुलसी जन्मोत्सव "अणुव्रत दिवस" का आयोजन
👉 कोयम्बत्तूर: तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा "Being Women" -Talk show एवं बांदरवाल प्रतियोगिता का आयोजन
👉 रायपुर - जागे बोध श्रावक संबोध प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम
👉 कालांवाली - दम्पति सम्मेलन का आयोजन
👉 जयपुर - सी स्कीम महिला मंडल द्वारा इम्प्रूवमेंट ऑफ गर्ल्स कार्यक्रम का आयोजन
👉 लाडनूं - बहिन सिमरण बैद के संस्था प्रवेश पर मंगल भावना कार्यक्रम
👉कांटाबांजी - 113 तेलों का सामूहिक तप अनुष्ठान
👉 कांटाबांजी - सामायिक कार्यशाला व दम्पति शिविर का आयोजन व तप अभिनन्दन
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 185* 📝
*आगम-पिटक-आचार्य*
*स्कन्दिल, हिमवन्त, नागार्जुन*
आचार्य देवर्द्धिगणी ने इन दोनों आचार्यों की भावपूर्ण शब्दों में स्तुति की है। वाचनाचार्य स्कंदिल के विषय में उनका प्रसिद्ध श्लोक है—
*जेसिं इमो अणुओगो पयरइ अज्जावि अड्ढभरहम्मि।*
*बहु नगरनिग्गयजसे ते वंदे खंदिलायरिए।।32।।*
*(नंदी सूत्र)*
प्रस्तुत पद्य में आचार्य स्कंदिल के अनुयोग को संपूर्ण भारत में प्रवृत्त बताकर उनके प्रति देवर्द्धिगणी ने सम्मान प्रकट किया है। नंदी सूत्र के इस उल्लेख से आचार्य स्कंदिल के उदात्त व्यक्तित्व का वर्चस्व पूरे भारत में छाया हुआ था, ऐसा प्रतीत होता है।
वे आचार्य नागार्जुन के विषय में कहते हैं—
*मिउमद्दवसंपण्णे अणुपुव्विं वायगत्तणं पत्ते।*
*ओहसुयसमायारे णागज्जुणवायए वंदे।।35।।*
*(नंदी सूत्र)*
मृदुतादि गुणों से संपन्न, सामायिक श्रुतादि के ग्रहण से अथवा परंपरा से विकास की भूमिका का क्रमशः आरोहणपूर्वक वाचक पद को प्राप्त ओघश्रुत समाचारी में कुशल आचार्य नागार्जुन को मैं प्रणाम करता हूं।
आचार्य देवर्द्धिगणी ने नागार्जुन को वंदन करते समय उनका गुणानुवाद किया है।
उन्होंने आचार्य स्कंदिल की स्थिति में उनके अनुयोग का संपूर्ण भारत में प्रभाव प्रदर्शित कर स्कंदिली वाचना को प्रमुख स्थान दिया।
*वैशिष्ट्य—* आर्य स्कंदिल और नागार्जुन की अध्यक्षता में आगमों की महत्त्वपूर्ण वाचनाएं हुईं। आगम वाचना के समय दुष्काल के प्रभाव से क्षत-विक्षत एकादशांगी का संकलन कर इन दोनों अनुयोगधर आचार्यों ने जैन शासन पर असीम उपकार किया है एवं रत्नपिटक की भांति आगम को सुरक्षित रखा है।
इतिहास के पृष्ठों पर आचार्य स्कंदिल और नागार्जुन की आगम वाचनाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
वाचनाचार्य हिमवंत का नंदी स्थविरावली में उल्लिखित आगम का गहन स्वाध्यायी रूप आगम ज्ञान की विशिष्टता का सूचक है।
तीनों आचार्य आगम वाणी के महापिटक थे।
*समय-संकेत*
आचार्य स्कंदिल, हिमवंत, नागार्जुन तीनों समकालीन थे। आचार्य मेरुतुङ्ग ने विचार श्रेणि में आचार्य स्कंदिल की काल-निर्णायकता के विषय में लिखा "श्री विक्रमात् 114 वर्षेवज्रस्वामी तदनु 239 वर्षे स्कंदिलः।" (विक्रम संवत् 114 में वज्रस्वामी का स्वर्गवास हुआ। आचार्य स्कंदिल का समय आचार्य वज्र के स्वर्ग संवत् से 239 वर्ष बाद का है।) 'वीर निर्वाण संवत् जैन कालगणना' में प्राप्त वर्णनानुसार वज्रस्वामी एवं आचार्य स्कंदिल दोनों का मध्यवर्ती समय 242 वर्ष का है। वज्रस्वामी के बाद 13 वर्ष आर्य रक्षित के, 20 वर्ष पुष्यमित्र के, 3 वर्ष वज्रसेन के, 69 वर्ष नागहस्ती के, 59 वर्ष रेवतीमित्र के, 78 वर्ष ब्रह्मद्वीपकसिंह के हैं। कुल जोड़ 242 वर्ष का है। इस 242 की संख्या में वज्रस्वामी के 114 वर्ष एवं अनुयोग प्रवर्तक प्रसिद्ध वाचनाकार आचार्य स्कंदिल के युगप्रधान काल में 14 वर्ष मिलाने से उनका (आर्य स्कंदिल) समय वीर निर्वाण 827 से 840 तक का स्वीकृत किया गया है। यही काल स्कंदिली वाचना का मान्य है।
आचार्य हिमवंत से संबंधित जीवन प्रसंग का काल संवत् प्राप्त नहीं है।
अनुयोगधर आचार्य नागार्जुन का स्वर्गवास वीर निर्वाण 904 (विक्रम संवत् 434) में बताया गया है। आचार्य स्कंदिल जिस समय वृद्धावस्था में थे, उस समय आचार्य नागार्जुन युवा थे।
*अर्हन्नीति-उन्नायक आचार्य उमास्वाति का प्रभावक चरित्र* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 9* 📝
*मूणदासजी कोठरी*
केलवा तेरापंथ की जन्मभूमि और स्वामी भीखणजी की तपोभूमि है। वहां पर स्वामीजी सम्वत् 1817 आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को पधारे। दो दिन पश्चात पूर्णिमा के दिन भाव दीक्षा ग्रहण कर तेरापंथ को मूर्त्त रूप दिया। चातुर्मास के प्रारंभकाल में वहां श्रद्धालु कोई नहीं था, विरोधी प्रायः सभी थे। परंतु चातुर्मास समाप्ति काल तक अनेक परिवार स्वामीजी के अनुयायी बन चुके थे।
प्रारंभकालीन विरोध चाहे प्रकट दिखाई नहीं दिया, परंतु आंतरिक रूप से वह बहुत स्पष्ट था। इसी कारण से उन्हें ठहरने के लिए अंधेरी ओरी वाला मंदिर बतलाया गया। सभी जानते थे कि वह स्थान भयकारक है। रात को वहां ठहरने वाला प्रातःकाल जीवित नहीं बचता। वे लोग यही तो चाहते थे। इसमें उन्हें कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं थी। सब कुछ स्वतः हो जाने की कामना से प्रेरित होकर ही उन्होंने मंदिर का वह स्थान उन्हें प्रदान किया। "सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे" इस कहावत को वे लोग अपने यहां चरितार्थ होते देखना चाहते थे। यद्यपि जैन होने के कारण प्रत्यक्ष हिंसा करने या उसमें सम्मिलित होने के संस्कार उनमें नहीं थे, परंतु दुरभिसंधि के द्वारा वैसा स्थान प्रदान करने वाले लोग परोक्ष हिंसा से कैसे बच सकते थे?
"नहीं मामा से तो काणा मामा ही अच्छा" यही सोचकर स्वामीजी उस अंधेरी ओरी में ठहरे। प्रथम रात्रि में ही बाल साधु भारमलजी के पैरों में सर्प द्वारा आंटे दिए गए। वह कोई साधारण भय की बात नहीं थी, पर वे तो स्वामी भीखणजी तथा उनके प्रमुख शिष्य भारमलजी ही थे जो उन सभी भयों को सहजता से पार कर गए। वे भयों के हलाहल में से भी निर्भयता का अमृत निकालना चाहते थे। लोग यह जानकर चकित हो गए कि जो अन्यों के लिए मृत्यु का संदेशवाहक था, वही देव उनके लिए विनीत और सहयोगी बन गया।
बुराई अपने कर्त्ता के लिए तो सदैव बुरी ही होती है। परंतु जिसके लिए की जाती है, उसके लिए वह कभी-कभी बढ़ी हितकारक भी हो जाती है। स्वामीजी के लिए ऐसा ही हुआ। अंधेरी ओरी में रहने के साहस ने उनको देवपूज्य तो बनाया ही, जनता के लिए श्रद्धास्पद भी बना दिया। चमत्कार को सभी नमस्कार करने लगे।
*मूणदासजी को जब उक्त घटना का पता लगा तो उन पर क्या प्रभाव पड़ा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
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