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please share maximum this pravachan ''श्रवणबेलगोला स्थित गोम्मटेश्वर भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक में शामिल होना सभी का कर्तव्य'' -आचार्य_विद्यासागर जी महाराज #AcharyaVidyasagar
गोम्मटेश्वर भगवान बाहुबली महामस्तिकाभिषेक की प्रभावना रथ यात्रा अतिशय क्षेत्र चंद्रगिरि ड़ोंगरगढ़ में संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी महराज के आशीर्वाद हेतु पहुँची। परम पूज्य आचार्य श्री ने ससंघ पहुँच कर रथ में विराजमान सभी प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के दर्शन किये एवं रथयात्रा के राष्ट्रीय संयोजक पं. श्री सुरेश जैन “मारौरा” इंदौर एवं उनकी पूरी टीम तथा समस्त समिति को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया ।
दोपहर में आयोजित धर्मसभा में पू, आचार्य श्री ने कहा कि गोम्मटेश्वर भगवान बाहुबली की प्रतिमा 1000 वर्षों से त्याग और एकता का संदेश समस्त विश्व को दे रही है। दूरी काफी होने की वजह से महमस्तकाभिषेक में शामिल होना हमारे लिए संभव नही है। आचार्य श्री ने आगे कहा कि दिगम्बर जैन धर्म की एकता के प्रतीक भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक में सभी श्रावकों को अपना कर्तव्य समझ कर शामिल होना चाहिए और सभी को अभिषेक करना चाहिए।
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विशेष- #जिज्ञासा_समाधान मुनिपुंगव -श्री सुधासागर जी महामुनिराज् #MuniSudhasagar
13 पंथ 20 पंथ पूजा पद्धति के भेद हैं, इनको लेकर कषाय नहीं करना चाहिए।* अपने पंथ को लेकर इस प्रकार के षड्यंत्र दिगंबर मुनि को शोभा नहीं देता। जो स्वयं पैरों में चप्पल पहना है, वह साधु हो ही नही सकता। जो चारित्र भ्रष्ट होता है, वही इस प्रकार के षड्यंत्र करता है। *कुछ शिथिलाचारी साधु, जब अपने चरित्र के बल पर, समाज में अपना स्थान नहीं बना पाते, तो वह पंथवाद की को लेकर, समाज को अपने पक्ष में इकट्ठा करने का प्रयास करते हैं। ऐसे में पंथ व्यामोह में समाज गुरु को न देख कर पंथवाद में उलझ जाती है।
पूज्यवर शांतिसागर महाराज के अनंत उपकार रहे हैं। उन्होंने कभी भी पंथ वाद का समर्थन नही किया। जहां जैसी परंपरा रही है, वह उसी के समर्थक रहे हैं।* ब्यावर में उनका ऐतिहासिक चातुर्मास रहा, वहां कभी उन्होंने परम्परा बदलने की कोशिश नही की। *उनका आश्रय लेकर अपने 20 पंथ का पोषण करने वालों से मैं पूछता हूं, एक सबूत ऐसा बताओ जहां उन्होंने कभी 13 पंथ की बुराई या 20 पंथ का समर्थन किया हो। मात्र वीडियो में उनकी मौजूदगी इस बात का समर्थन नही करती।
कई स्थानों पर जहां 20 पंथी परम्परा थी वहां मेरे सामने पंचामृत अभिषेक हुआ है, और उसका वीडियो भी बना है। तो इसका मतलब यह नहीं, कि मैंने उसका विरोध नहीं किया तो मैं उसका समर्थक हो गया। परन्तु जब सत्य-असत्य का निर्णय करेंगे, तो डंके की चोट पर मैं कहता हूं, कि पहली शताब्दी से जो परंपरा है वही परंपरा और प्राचीन है। सातवीं शताब्दी के बाद पंचामृत अभिषेक देखने को मिलता है।
जो शांति सागर महाराज को 20 पंथी कहता है, वह उनका बहुत बड़ा अपमान करता है। साधु का कभी 13 पंथ-20पंथ नहीं होता। साधु का मूलाचार होता है, और सब साधुओं का मूलाचार समान है। शांति सागर महाराज जितना 20 पंथियों के थे, उतना ही उनपर 13 पंथियों का भी अधिकार है। उनकी रक्षा करना 13 पंथियों का भी कर्तव्य है।
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पैठण के अतिशयकारी मुनिसुव्रतनाथ भगवान् के दर्शन कर अतितृप्त हुईं आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती माता जी (ससंघ) #AryikaGyanmati
Ganini Pramukha Aryika Shri Gyanmati Mataji (Sanskrit Āryikā Jñānamati Hindi: आर्यिका श्री ज्ञानमति) is considered as an iconic Jain nun, known for undertaking several projects related to Jainism. The Ganini Pramukh Āryikā is considered as the legendary figure reflecting the true spirit of Jainism among the disciples. She is also eminent for construction of the Jain temples representing Jain cosmology models at Jambudweep, Hastinapur, Uttar Pradesh, which were supported by former Prime Minister of India, Indira Gandhi.
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