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25 वर्षीय बेलगाव, कर्नाटक के विनोद जैन की पेंसिल के लीड के ऊपर कला कृति #sangali #maharashtra #india #jain
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today pravachan मोल का त्याग करोगे तो अनमोल की प्राप्ति होगी - आचार्य श्री विद्यासागर जी
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गाये होती है उसके गले में रस्सी डाली जाती है और वह जब जंगल आदि जगह चरने जाती है तो वह रस्सी उसके गले में ही रहती है और वह चरने के बाद अपने यथा स्थान पर आ जाती है किन्तु बछड़े के गले में रस्सी नहीं होती है वह अपनी माता (गाये) के इर्द - गिर्द ही घूमता रहता है और दौड़ कर दूर भी निकल जाये तो गाये की आवाज के संपर्क में रहता है और भाग कर वापस अपनी माँ (गाये) के पास आ जाता है | इसी प्रकार भगवान् से भी हमारा कनेक्शन ऐसा ही होना चाहिये इसके लिए देव, शास्त्र और गुरु के संपर्क में रहकर उनके कनेक्शन से जुड़े रहना चाहिये | जिस प्रकार बल्ब जब तक तार से जुड़ा हुआ रहता है तो वह करंट मिलने से चालू रहता है और प्रकाश देता रहता है यदि तार का कनेक्शन कट जाये तो उसका प्रकाश खत्म हो जाता है | देव, शास्त्र और गुरु से जुड़े रहने से मन शांत और अंतर्मन में दिव्य प्रकाश एवं अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है | जिन लोगों के पास अधिक धन आ जाता है उन्हें उसे संरक्षित रखने का भय सताते रहता है वे लोग कहते हैं महाराज आशीर्वाद दो की हमारी धन - सम्पदा संरक्षित रहे | आचर्य श्री कहते हैं की ‘’मोल का त्याग करोगे को अनमोल की प्राप्ति होगी’’ इसलिये समय - समय पर दान देने से परिग्रह का त्याग होता है और अंतर्मन प्रशन्न और अत्यंत सुख की अनुभूति होती है जो की सहज ही उपलप्ध हो जाती है इसके लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है |
यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
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News in Hindi
आचार्य विद्यासागर जी के दर्शन हेतु पधारे आचार्य वर्धमानसागर जी /दक्षिण वाले.. (मुनि विद्यासागर जी के गुरु) आदर्शों के आदर्श महासंत के परम दर्शन
भावलिंगी श्रमण की परिभाषा को अपनी जीवंत साधना के माध्यम से प्रतिपल प्रस्फुटित करने वाले संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज के परम दर्शनार्थ स्वस्थ दिगंबर गुरुकुल श्रमण परम्परा के ज्येष्ठतम आचार्यश्री सन्मतिसागर जी मुनिराज (दक्षिण) के परम पट्टशिष्य जिनशासन प्रवर्धक आचार्य प्रवर श्री वर्धमानसागर जी मुनिराज (दक्षिण) अपने ससंघ सहित सम्मेदशिखर जी से लम्बा विहार करके आज पधारे।
यह बड़ा ही गर्व का क्षण है जब एक अन्य आचार्य पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी मुनिराज के दर्शनार्थ लंबी दूरी तय करके डोंगरगांव पधारे और अपने कुलगुरुसमान आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी मुनिराज के मंगलमय दर्शन किए
अगर आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज को श्रमण परम्परा का कुलगुरु कहे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि गुरुदेव श्री ने रसातल की ओर जाते धर्म को 20वीं-21वी शताब्दी में पुनः वह ऊँचाइयाँ दी है जो आचार्य कुंदकुंद समन्तभद्र ने सहस्त्र वर्षों पूर्व दी थी। #AcharyaVidyasagar • #AcharyaVardhmansagar
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