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कषाय तेरे,
कर्म नही पूछेंगे,
पंथ कौनसा?
-एक अज्ञानी
अज्ञानी प्राणी पंथों के अतिरेक में पड़कर कर्म बंधन कर लेता है जो धर्म मोक्ष प्राप्ति में सहायक है उसको पाकर भी संसार बढा लेता है,, और पंथवाद के फलस्वरूप अपने ही भाई जो दूसरे पंथ का आग्रह लिए है उनसे बैर भाव करता है बल्कि उनको हर समय अपने से नीचा दिखाने का प्रयत्न करता है हर समय जिनवाणी को खँगालता है इसलिए कि कोई गाथा ऐसी मिल जाए जो मेरी मान्यता को पुष्ट करे और अगर वह गाथा मिल गई तो अनेकांत धर्म से विमुख वह उछलने लगता है और उसे लोगों को बताकर अपने पंथ को सच्चा साबित करता है, किन्तु यह उसी तरह है जैसे गधे के पीठ पर लदा पुस्तकों का बोरा! ऐसे ही पंथी जीव है वह जिनवाणी का अध्ययन करके भी आत्मकल्याण में सहायक चीज नहीं ले पाता और व्यर्थ के प्रपञ्चों में फस जाता है। और जब कर्म भोगने का समय आता है तो चारों तरफ ताकता है किन्तु जब कषाय के कारण कर्म का बंध होता है तब कर्म यह नहीं देखते कि आप किस पंथ के हो या जिस पंथ के आप समर्थक हो वह सत्य है या गलत। परिणाम विपरीत हुए/मलिन हुए तुरंत कर्मबन्ध! कर्म कब ये कहकर आते है कि तुम कौनसे पंथ के हो, सो पंथ को त्यागो,कषाय भाव छोड़ो ताकि कर्मबन्धन न हो मोक्षमार्ग अनेकांतमयी है।
- गौरव जैन
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सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते | - आचार्य श्री विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया की एक पिता अपने बेटे को सही राह (धर्म मार्ग) बताता है परन्तु बेटे को पिता की बात कम समझ में आती है वह केवल अपनी इक्षाओं की पूर्ति हेतू प्रयत्न करता है और उसमे सफलता भी प्राप्त करता है | जब उसके पास उसकी इक्षा अनुरूप सभी साधन और सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती है तो वह बैठा सोचता है की उसके पास आज सभी चीजें जो वो अपनी ज़िन्दगी में चाहता है उसके पास उपलब्ध है किन्तु मन मान नहीं रहा है तब उसे अपने पिता की बात याद आती है और वह अगले दिन देश वापस आता है और अपने देश की मिट्टी को माथे से लगता है और फिर अपने पिता से मिलता है | पिता उसे देखकर खुश हो जाते हैं और एक पिता अपने बेटे के कार्यानुसार उसके भविष्य को अच्छी तरह जानता है | उन्हें मालूम था की एक दिन उनका बेटा सही राह (धर्म की राह) पर जरुर आएगा | यहाँ पर एक वाक्य चरितार्थ होता है की ‘’सुबह का भूला शाम को लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते’’ | आज चंद्रगिरी में भी जगदलपुर से आप लोग देव बनकर आयें है हमें यह देखकर प्रसन्नता हुई की आप लोग अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए हैं | प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभूमि से हमेशा जुड़े रहना चाहिये जिससे की उसके संस्कार हमेशा बने रहे | जगदलपुर में पंचकल्याणक की भूमिका डोंगरगांव में मात्र एक दिन में बनी थी यह वहाँ के लोगों का पुण्य है और उनका प्रयास भी सराहनीय है जो इतना बड़ा कार्य कर रहे हैं | जगदलपुर एक आदिवासी इलाका है वहाँ जिन मंदिर होना अपने आप में एक अलग बात है इससे वहाँ के आस - पास के लोग भी जुड़ सकेंगे जैसे कोंडागांव, गीदम आदि | यह एक आदिवाशी बहुल क्षेत्र प्रकृति की गोद में है जो की अपने आप में एक प्राकृतिक सुन्दरता धारण किये हुए है |
यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
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