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📣 #ओडिशा में #अहिंसा_यात्रा
#शांतिदूत गुरुदेव #आचार्य_श्री_महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से #मनोरम दृश्य एवं प्रेरणा #पाथेय। 📺
31.12.2017
प्रस्तुति> तेरापंथ मीडिया सेंटर
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रहो भीतर, जीयो बाहर: #आचार्य_श्री_महाश्रमण
-लगभग #12_किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे तरनी ठकुरानी महाविद्यालय
31.12.2017 घटगांव, क्योंझर (#ओड़िशा):- ओड़िशा की धरा को अपने चरणरज से पावन बनाते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण से रविवार को घटगांव स्थित तरनी ठकुरानी महाविद्यालय का प्रांगण पावन हो उठा। अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार की प्रातः ओड़िशा आदर्श विद्यालय से लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर घटगांव के तरनी ठकुरानी महाविद्यालय में पधारे।
जन कल्याण के लिए #अहिंसा_यात्रा लेकर निकले आचार्यश्री आज से एक वर्ष पूर्व असम राज्य के धुबड़ी जिले को पावन कर रहे थे और आज आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा व धवल सेना के साथ ओड़िशा राज्य क्योंझर जिले को पावन बना रहे थे।
यहां उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने #वर्ष_2017 के अंतिम दिवस पर अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि एक सूक्त आता है रहो भीतर, जीयो बाहर। आदमी यदि भीतर रहने का अभ्यास कर ले तो मानों वह सुरक्षित हो जाता है और बाहर रहने वाला आदमी असुरक्षित हो सकता है। भीतर रहने का अर्थ है आदमी को अपनी आत्मा में या आत्मा के आसपास रहने का प्रयास करना चाहिए। आत्मस्थ आदमी अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। आदमी को अपनी आत्मा की सतत रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी की रक्षा इन्द्रियों को सयंमित रखने से हो सकेगी।
असुरक्षित आत्मा दुःखी हो सकती है। असुरक्षित आत्मा को कष्ट सहन करना पड़ सकता है, किन्तु सुरक्षित आत्मा सुखी और कष्टों से मुक्त रह सकती है। जैसे अपने कवच में छुपा हुआ कछुआ सुरक्षित होता है, उसी तरह संयम के आवरण में सुरक्षित की गई आत्मा सुरक्षित हो सकती है। आदमी इन्द्रियों के संयम के द्वारा अपनी आत्मा में रह सकता है। आदमी को गुप्त रहने का प्रयास करना चाहिए। बाहर के कार्यों को करते हुए भी आदमी को अपने भीतर अर्थात् अपनी आत्मा के आसपास रहने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को पापों से बचाने के लिए आदमी को आत्मस्थ रहने का प्रयास करना चाहिए।
पदार्थों के बीच रहते हुए भी आदमी को पदार्थों से अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। पहले इन्द्रियों का संयम और फिर अनासक्ति का प्रयास हो तो आदमी आत्मा में रह सकता है और अपनी आत्मा को पापों से बचा सकता है। सुरक्षित आत्मा मोक्ष प्राप्ति की ओर गति कर सकती है और असुरक्षित आत्मा संसारी अवस्था में फंसकर जन्म-मरण के चक्र में रहने वाली हो सकती है। राग-द्वेष की भावना से मुक्त रहकर आदमी को अपनी आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने इस वर्ष के अंतिम दिन अपना पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि वर्ष और काल बीत रहे हैं। आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि इस वर्ष में हम केवल भौतिकता की दौड़ में फंसे रहे या अपनी आत्मा के निकट भी आने का प्रयास किया। कोई ऐसा कार्य किया, जिसके द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण हो सके। अपनी आत्मा के भीतर रहने का कितना प्रयास किया। व्यवहार जगत में रहते हुए भी आदमी आत्मस्थ होकर अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करे।
गत कई दिनों से आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे #बेंगलुरु #ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के सम्मुख कौव्वाली के माध्यम से अपनी भावनाओं के सुमन चढ़ाए। वहीं ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी जिज्ञासाएं भी प्रकट की और आचार्यश्री से समाधान प्राप्त किया।
जैन श्वेतांबर तेरापंथी #महासभा
31.12.2017
प्रस्तुति > #तेरापंथ मीडिया सेंटर
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News in Hindi
🙏 #जय_जिनेन्द्र सा 🙏
दिनांक- 31-12-2017
तिथि: - #पौष शुक्ल #तेरस (13)
#रविवार त्याग/#पचखाण
★आज #भिखुस्याम मन्त्र की कम से कम 03 #माला फेरने का #संकल्प करे।
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जय जिनेन्द्र
#प्रतिदिन जो त्याग करवाया जाता हैं। सभी से #निवेदन है की आप स्वेच्छा से त्याग अवश्य करे। छोटे छोटे #त्याग करके भी हम मोक्ष मार्ग की #आराधना कर सकते हैं। त्याग अपने आप में आध्यात्म का मार्ग हैं।
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🙏तेरापंथ मीडिया सेंटर🙏
🔯 गुरुवर की अमृत वाणी 🔯
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