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जैसे की आप हमारे अपने आचार्य श्री #विद्यासागर जी महामुनिराज की चतुर्थ कालीन चर्या से सभी परिचित हैं आचार्य श्री के साथ-साथ उनके द्वारा दीक्षित शिष्य भी चर्या में एक से बढ़कर एक है, उन्हीं शिष्यों में से एक हैं मुनि श्री #शाश्वतसागर जी मुनिराज -जिनका दीक्षा के बाद से एक आहार व एक उपवास चल रहा हैं smile emoticon:))
ऐसे मुनिराज जो आचार्य श्री के सबसे छोटे शिष्यों में से एक है,पर तप,चर्या में सुमेरु के समान उच्च है, मुनि श्री के तप की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है,या यों कहे कि सूरज को दीपक दिखाने जैसी है, मुनि श्री शाश्वतसागर जी ने आचार्य श्री से 1993 में ब्रह्मचर्य व्रत लिया था व लगभग 2004 में ही आजीवन वाहन का त्याग कर दिया, दस साल तक आपने ब्रह्मचारी अवस्था में पदविहार ही किया,व ब्रह्मचारी रहकर भी एक मुनि के समान आचरण को धारण किया,व जन-जन तक धर्म की प्रभावना की। 16 अक्टूबर 2014 को शीतलधाम विदिशा में आपको आचार्य श्री ने मुनि दीक्षा प्रदान की।
उसी दिन से आजतक आपके एक उपवास एक आहार चल रहा है,भयंकर गर्मी हो या लम्बा विहार आप एक आहार एक उपवास की साधना अनवरत ढ़ाई साल से करते आ रहे हैं,
48 घण्टे में एक बार विधिपूर्वक आहार ग्रहण करने की साधना करने वाले योगियों के दर्शन पंचमयुग में दुर्लभता से प्राप्त होते है। वीरप्रभु से यही कामना कि मुनि श्री शाश्वतसागर जी मुनिराज अपने रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त करे,व शाश्वत सिद्ध पद के धारी बने।
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कभी इस देश में लोगों ने बैंकों में नोट लेने के लिए लाईन लगाई थी। आज पूज्य गुरूवर सुधासागर जी का अतिशय देखिए, लोग उन्ही नोटो को हाथ में लेकर मुनिसुव्रतनाथ भगवान के अभिषेक की लाईन में खड़े है। #Nareli • #MuniSudhasagar • #AcharyaVidyasagar
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प्रज्ञापराध को रोकना आवश्यक, भय से भयभीत नहीं होना चाहिये —आचार्य श्री विद्यासागर जी #WorthyRead
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने दोपहर के प्रवचन में कहा की चंद्रगिरी में दो दिवसीय शिविर में बाहर से आये चिकित्सकों द्वारा आप सभी को स्वास्थ्य लाभ मिला | चिकित्सकीय सुविधाओ के बारे में हर संप्रदाय के शास्त्रों, ग्रंथों एवं पुराणों में उल्लेख मिलता है क्योंकि यह एक प्रकार से मानव सेवा का कार्य है जिसे हर संप्रदाय के लोग बहुत अच्छे से इसकी व्यवस्था आदि करते हैं | एक चिकित्सक का उद्देश्य मानव की जीवन रक्षा और दया धर्म का होता है | चिकित्सक औषधियों, दवाइयों एवं व्यायाम आदि के द्वारा रोगियों के रोगों को दूर करता है और उन्हें स्वस्थ्य लाभ प्रदान करता है | हमें किसी ने बताया की एक मृत व्यक्ति को भी वेंटीलेटर में रखा जाता है जो की पहले ही went हो चूका है (go - went - gone) मतलब जिसकी आयु समाप्त हो चुकी है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता है | कुछ लोगों ने तो यह बताया की कुछ दिन पहले भारत की राजधानी दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में रिहायसी अस्पताल (जहाँ केवल पैसे वाले ही ईलाज करा सकते हैं) जहाँ खोका चलता है (खोका में धोखा ही मिलता है) वहाँ एक जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया गया था जो की मानव सेवा के इस कार्य में माफ़ करने योग्य नहीं है | यह ‘’प्रज्ञापराध’’ में आता है | अब ये ‘’प्रज्ञापराध’’ क्या होता है? यदि चिकित्सक ‘’चरक’’ नामक किताब के चार पन्ने ही पढ़ ले तो उन्हें सब समझ आ जायेगा | एक चिकित्सक का कर्त्तव्य होता है की वह निःस्वार्थ भाव से मानव कल्याण के लिए अपनी चिकित्सा सुविधा प्रदान करे जिसमे जीवन रक्षा एवं दया धर्म का होना अनिवार्य है किन्तु ऐसा आज कल देखने को नहीं मिलता आज एक चिकित्सक केवल स्वार्थ के लिए मरीजों को ऐसी दवाइयां दे रहे हैं जिससे उनके स्वस्थ्य में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है इसे ही ‘’प्रज्ञापराध’’ कहा जाता है | यह केवल हमारे भारत में ही हो रहा है जबकि विदेशों में चिकित्सक की एक गलती पर उसकी छुट्टी कर दी जाती है जबकि हमारे यहाँ उनपर कोई कार्यवाही नहीं की जाती, इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान होना आवश्यक है | हमने सुना है की आज एक चिकित्सक बन्ने के लिये योग्यता से ज्यादा पैसे की आवश्यकता पड़ती है बंडल पे बंडल लगाना पड़ता है तब जाकर चिकित्सक की उपाधि मिलती है इसी कारण वह चिकित्सक बन्ने के बाद उन पैसों को मरीजों से वसूलता है जो उसने अपनी उपाधि के लिए खर्च किये हैं | यह एक सेवा का कार्य है जो की व्यापार के रूप में परिवर्तित हो गया है | इस कारण भारत में चिकित्सा का स्तर गिरता जा रहा है जो की विचारणीय है और इसका समाधान होना अत्यंत आवश्यक है |
शास्त्रों में भय के भेद बताये गए हैं जिसमे से एक मृत्यु भय भी होता है | जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है | मृत्यु के भय से भयभीत नहीं होना ही मृत्युंजय कहलाता है | संसारी व्यक्ति मृत्यु से डरता है जबकि मोक्ष मार्गी मृत्यु का स्वागत करता है | आज तक कोई नहीं जानता की मृत्यु कैसे आती है, वह कैसी दिखती है फिर भी आप उससे डरते हैं उसका नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं | बच्चों को आप लोग कैसे डराते हो की वहाँ मत जाना वहाँ बाऊ पकड़ लेगा, बच्चा बुढा होते तक उस बाऊ से डरता रहता है जबकि उसने कभी उसको देखा ही नहीं है जो की वास्तविक में होता ही नहीं है | इसलिए आपको अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये और बच्चे को डाटने के सांथ - सांथ पुचकारना भी चाहिये और ऐसे बाऊ के चक्कर से बच्चों को दूर रखना चाहिये |
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